Kahani: मम्मी-मम्मी, मैं उस बुढिया के साथ स्कूल नहीं जाउँगा, न ही उसके साथ वापस आउँगा। मेरे दस वर्ष के बेटे ने गुस्से से अपना स्कूल बैग फेंकते हुए कहा तो मैं बुरी तरह से चौंक गई। यह क्या कह रहा है? अपनी दादी को बुढिया क्यों कह रहा है? कहाँ से सीख रहा है इतनी बदतमीजी? मैं सोच ही रही थी कि बगल के कमरे से उसके चाचा बाहर निकले और पूछा- क्या हुआ बेटा ? उसने फिर कहा- चाहे कुछ भी हो जाए मैं उस बुढिया के साथ स्कूल नहीं जाउँगा। हमेशा डाँटती है और मेरे दोस्त भी मुझे चिढ़ाते हैं।

घर के सारे लोग उसकी बात पर चकित थे। घर में बहुत सारे लोग थे। मैं और मेरे पति, दो देवर और देवरानी, एक ननद, ससुर और नौकर भी। फिर भी मेरे बेटे को स्कूल छोड़ने और लाने की जिम्मेदारी उसकी दादी की थी। पैरों में दर्द रहता था, पर पोते के प्रेम मे कभी शिकायत नहीं करती थी। बहुत प्यार करती थी उसको, क्योंकि घर का पहला पोता था। पर अचानक बेटे के मुँह से उनके लिए ऐसे शब्द सुन कर सबको बहुत आश्चर्य हो रहा था। शाम को खाने पर उसे बहुत समझाया गया पर बह अपनी जिद पर अड़ा रहा।

पति ने तो गुस्से में उसे थप्पड़ भी मार दिया। तब सबने तय किया कि कल से उसे स्कूल छोड़ने और लेने माँ जी नहीं जाएँगी। अगले दिन से कोई और उसे लाने ले जाने लगा, पर मेरा मन विचलित रहने लगा कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया? मै उससे कुछ नाराज भी थी। शाम का समय था। मैंने दूध गर्म किया और बेटे को देने के लिए उसे ढूंढने लगी। मैं छत पर पहुँची तो बेटे के मुँह से मेरे बारे में बात करते सुन कर मेरे पैर ठिठक गये। मैं छुपकर उसकी बात सुनने लगी। वह अपनी दादी के गोद में सिर रख कर कह रहा था- मैं जानता हूँ दादी कि मम्मी मुझसे नाराज है,पर मैं क्या करता?

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इतनी ज्यादा गरमी में भी वो आपको मुझे लेने भेज देती थी। आपके पैरों में दर्द भी तो रहता है। मैंने मम्मी से कहा, तो उन्होंने कहा कि दादी अपनी मर्जी से जाती हैं। दादी मैंने झुठ बोला। बहुत गलत किया पर आपको परेशानी से बचाने के लिये मुझे यही सूझा।आप मम्मी को बोल दो मुझे माफ कर दें। वह कहता जा रहा था और मेरे पैर तथा मन सुन्न पड़ गये थे। मुझे अपने बेटे के झुठ बोलने के पीछे के बड़प्पन को महसुस कर गर्व हो रहा था। मैंने दौड़ कर उसे गले लगा लिया और बोली- नहीं, बेटे तुमने कुछ गलत नहीं किया। हम सभी पढे़- लिखे नासमझो को समझाने का यही तरीका था! धन्यवाद बेटा!

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