Kahani: एक बार एक बादशाह सर्दियों की शाम अपने महल में दाखिल हो रहा था, तभी उसने एक बूढ़े दरबान को देखा जो महल के मुख्य दरवाज़े पर बिलकुल पुरानी और फटी वर्दी में पहरा दे रहा था। बादशाह ने उस बूढ़े दरबान के करीब अपनी सवारी को रुकवाया और उससे पूछा, सर्दी नही लग रही तुम्हें, इन फटे हुए कपड़ों में कैसे रात गुजारते हो?

दरबान ने जवाब दिया, सर्दी मो बहुत लग रही है हुज़ूर! मगर क्या करूँ, गर्म कपड़े हैं नहीं मेरे पास, इसलिए मजबूरी में बर्दाश्त करना पड़ता है, कोई चारा भी नहीं है, और ड्यूटी तो करनी ही है ,नहीं तो गुजारा कैसे होगा? बादशाह का दिल पसीज गया और वह सोचने लगा कि इस बूढ़े के लिए क्या किया जाए? कुछ सोचकर बादशाह ने कहा, तुम चिंता मत करो। मैं अभी महल के अंदर जाकर तुरंत अपना ही कोई गर्म कपड़ा तुम्हारे लिए भेजता हूँ। तुम बस थोड़ी देर और इंतजार करो। दरबान ने बहुत खुश होकर बादशाह को दिल से सलाम किया, साथ ही उसके प्रति अपनी कृतज्ञता और वफादारी का भी इजहार किया। लेकिन बादशाह जैसे ही महल में दाखिल हुआ, वह अपनी रानी और बच्चों के साथ बातचीत में उलझ गया। कुछ देर के बाद वह दरबान के साथ किया हुआ अपना वादा भूल गया।

इसे भी पढ़ें: Kahani: भरोसा

उधर दरबान बेसब्री से इंतजार करता रहा, करता रहा। वह बार-बार झांक कर देखता कि महल के अंदर से कोई आ रहा है कि नहीं। इसी तरह इंतजार में ही दरबान की पूरी रात गुजर गई। सुबह महल के मुख्य दरवाज़े पर उस बूढ़े दरबान की अकड़ी हुई लाश पड़ी मिली और ठीक उसके करीब ही मिट्टी पर उसकी उंगलियों से लिखा गया ये शब्द भी जो चीख-चीखकर उसकी बेबसी की दास्तान सुना रहे थे। बादशाह सलामत, मैं कई सालों से लगातार सर्दियों में इसी फटी वर्दी में दरबानी कर रहा था, लेकिन मुझे कोई खास परेशानी नहीं हो रही थी। मगर कल रात सिर्फ़ आपके एक गर्म लिबास के वादे ने मेरी जान निकाल दी। मैं इस उम्मीद के साथ इस दुनिया से विदा ले रहा हूँ कि भविष्य में आप फिर किसी लाचार गरीब इंसान से कोई झूठा वादा नहीं करेंगे।

सहारे व्यक्ति को अंदर तक खोखला कर देते हैं और दूसरों के प्रति उसकी उम्मीदें उसे बेहद कमज़ोर बना देती हैं। इसलिए हम सब सिर्फ अपनी ताकत और सामर्थ्य के बल पर जीना शुरू करें। खुद की सहन शक्ति, ख़ुद की ख़ूबी पर भरोसा करना सीखें क्योंकि हमारा हमसे अच्छा साथी, दोस्त, गुरु और हमदर्द इस दुनिया में शायद और कोई नहीं हो सकता। ये हमें हमेशा याद रखने की जरूरत है कि जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठा करते हैं।

इसे भी पढ़ें: दस रुपये के बदले तेरह लाख

Spread the news