Narendra Bhadoria
नरेन्द्र भदौरिया

क्षणिक राजनीतिक उलटफेर को देखकर भारत के कुछ लोग बड़ी भूल कर बैठते हैं। वह नहीं जानते कि धार्मिक आस्था का उपहास बहुत भारी पड़ता है। जातीय अपमान यदि प्राणलेवा सिद्ध हो सकता है, तो फिर धार्मिक आस्थाएं भला इतनी सस्ती कैसे हो सकती हैं। भारत में एक ओर धर्म निरपेक्षता के नाम पर इस्लाम समर्थक कुछ दलों के नेताओं द्वारा आरक्षण की मांग की जा रही है, तो दूसरी ओर विद्वेष भड़काने के लिए हिन्दू संस्कृति, पूजा पद्धति, परम्पराओं और मान्यताओं को लेकर ओछी बातें की जा रही हैं।

चुनाव परिणामों के तत्काल बाद यह विमर्श उत्पन्न करने के प्रयास किये गये कि हिन्दुत्व की धार्मिकता का अब कोई अर्थ नहीं रह गया। भारत के अधार्मिक और धर्म विराधी समूह ऐसा कर रहे हैं। इनके पीछे विशुद्ध राजनीतिक उद्देश्य पूरा करने वाले लोग लगे हैं। यह सही है कि वामपन्थी बिरादरी का एक वर्ग सोशल मीडिया पर मनगढ़न्त बातें पोस्ट करके लम्बे समय से हिन्दुओं को चिढ़ाता आ रहा है। हिन्दुओं के सद्ग्रन्थों के कथानकों और प्रेरक कथाओं को तोड़ मरोड़ कर उपहास करने वालों की बाढ़ आ गयी है। देश में भाजपा को लोकसभा की कम सीटें मिलना इनके उन्माद का मुख्य कारण है। इसे वह अपनी जीत मान रहे हैं। आक्रामकता में उत्तर प्रदेश के दो विपक्षी दलों के कतिपय लोगों की संलिप्तता यह सिद्ध कर रही है कि आने वाले दिनों में धार्मिक आस्था को लेकर राज्य में टकराव पैदा करने के यत्न शुरू हो गये हैं। ऐसा टकराव करके प्रदेश में हिन्दुओं में जाति विद्वेष बढ़ाने की चेष्टा निहित है।

समझदारी का बाँध टूटना समाज के हित में नहीं होता। अपने मजहब को सर्वोपरि बताने वाले मुस्लिम समाज से लम्बे अरसे से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह अपनी आस्था की परिधि को अपने तक सीमित रखे। किसी के मुख से अपनी प्रशंसा करना शोभा दे या न दे उसे यह अधिकार तो है कि अपने आप को सर्वोपरि बताये। किन्तु दूसरों की आस्था के प्रति निन्दा का भाव सार्वजनिक करना सर्वाधिक निन्दनीय है। उत्तर प्रदेश में ऐसी प्रवृत्ति बढ़ गयी है। जिसे हिन्दुओं के कुछ राजनीतिक समूह बढ़ावा देने में लगे हैं। तमाम रोकटोक के बाद भी लव जिहाद के प्रसंग बढ़ रहे हैं। विधिक प्रावधान इन्हें रोक नहीं पा रहे। ऐसी बाते बार-बार प्रकाश में आ रही हैं कि हिन्दू समाज की लड़कियों को मुस्लिम युवक अपने चंगुल फंसाते हैं। फिर उनका मतान्तरण कराकर इस्लाम की स्त्री सम्पत्ति बना देते हैं। विधि वेत्ताओं को उन जटिलताओं का उल्लेख सरकार के समक्ष करना चाहिए, जिनके चलते लव जिहाद के मामले न्यायालयों से पुष्ट हो रहे हैं। वास्तविकता जानकर बड़ी बेचैनी होती है कि एक ओर सरकार कहती है कि लव जिहाद पर अंकुश लगाने के लिए कानून बन गया है तो दूसरी ओर न्यायालय की ढेहरी पर पहुँचते ही मतान्तरण और निकाह के यह मामले विधिक बन जाते हैं। निश्चित रूप से टकराहट का नया आधार तैयार हो रहा है। यह कहकर आंख नहीं बन्द की जा सकती कि लव जिहाद और धर्म परिवर्तन के विरुद्ध जितना कड़ा प्रतिबन्ध लगना चाहिए वह सम्भव नहीं हो पा रहा है।

मुस्लिम समाज में महिलाओं का स्थान हिन्दू समाज से भिन्न है। वस्तुत: हिन्दू समाज की यह बड़ी दुर्बलता है कि अनेक हिन्दू परिवार अपनी बहकी हुई लड़कियों को समझा पाने में विफल सिद्ध हो रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के विरुद्ध चुनाव जीते कुछ प्रत्याशियों ने अपनी जीत की रैलियों में हिन्दू आस्था को लेकर बड़े आघात किये। इण्डी गठबंधन के प्रत्याशी इमरान मसूद की रैली सर्वाधिक चर्चा का विषय रही। जिसमें उन्होंने देवी-देवताओं से लेकर लड़कियों के सन्दर्भ में भी अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया। ऐसी रैलियां लम्बे समय तक चर्चा का विषय बनी रहती हैं। विपक्ष के किसी बड़े नेता ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

अयोध्या में भाजपा की हार विपक्ष के निशाने पर रहना स्वाभाविक कहा जा सकता है। किन्तु श्रीराम से जोड़कर इस बात को उपहास का विषय बनाना आस्था पर आघात है। हद तो तब हो गयी जब राज्य के कई आततायियों पर योगी सरकार की कार्रवाई के विषय को भी चुनौती पूर्ण ढंग से उछाला गया। ध्यान रखना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ की कार्रवाई विधिक परिधि के भीतर हुई है। जिसको कई बार अदालतों तक ले जाया गया। राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को सम्भालने का श्रेय यदि योगी सरकार को न दिया जाय तो किसे दिया जाय। पूर्ववर्ती सरकार के समय सड़कों पर निकलना भय और संशय से भरा रहता था। उपद्रव करने वाले किस समाज के लोग थे यह भी पता है।

आस्था का विषय मात्र किसी वर्ग की प्रसन्नता या अप्रसन्नता तक सीमित नहीं है। हिन्दू धर्म और सभी सम्प्रदायों, पन्थों की अपनी मान्यताएं हैं। सभी को अपनी स्वेच्छा के अनुसार अपने आदर्शों को मानने तथा उनकी रक्षा करने का अधिकार भारतीय संविधान देता है। धर्म निरपेक्षता और धार्मिक स्वतन्त्रता दोनों का अर्थ यह नहीं है कि दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण किया जाय। हिन्दुओं के विरुद्ध यह अतिक्रमण मतान्तरण और हिन्दू लड़कियों को अनैतिक और अवैध तरीके से हरण करने के कारण बढ़ता जा रहा है। भय प्रलोभन और लालच से मतान्तरण की मनाही संविधान में वर्णित है। तद्यपि भारत में धर्म अर्थात हिन्दू मतावलम्वियों की खरीद चल रही है।

Hinduism

हिन्दू धर्म के लोगों की खरीद से नये तरह के सामाजिक भूचाल की पृष्ठभूमि बन रही है। मतान्तरण के कारण केरल जैसा धार्मिक राज्य टकराव का बड़ा अखाड़ा बना हुआ है। केरल में हिन्दू जनसंख्या अब मात्र 54.73 प्रतिशत बची है। जबकि केरल की हिन्दू धार्मिकता पूरे संसार में प्रसिद्ध थी। यहाँ मुस्लिम जनसंख्या 27 प्रतिशत और ईसाई 19 प्रतिशत हो चुके हैं। हिन्दुओं के विरुद्ध मुसलमान और ईसाई मिलकर यहाँ सदैव आक्रामक रहते हैं। राजनीति के दो धड़े हैं। एक धड़े की अगुवाई कांग्रेस के पास है तो दूसरे धड़े की अगुवाई मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के पास है। ईसाई और मुस्लिम दोनों समुह हिंसा का भय दिखाकर हिन्दुओं पर दबाव बनाये रहते हैं। सत्ता सदा उन्हीं का साथ देती है।

राहुल गांधी केरल के वायनाड से चुनाव क्यों लड़े। इसका सीधा जवाब यह है कि वहाँ 40% मुस्लिम और 20% ईसाई रहते हैं। वायनाड सहित कई जिलों में प्रतिवर्ष हिन्दुओं पर हिंसक हमले होते रहते हैं। प्रकृति का सुन्दर घर कहा जाने वाला केरल इस समय धर्म निरपेक्षता की क्रूर कहानियों से भरा हुआ है। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य को मुस्लिम और ईसाई मिलकर संयुक्त रूप से अपना गढ़ बनाने की योजना पर कार्य कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में इस समय मुस्लिम जनसंख्या का दबाव तेजी से बढ़ रहा है। घुसपैठ और जन्मदर बढ़ाकर उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी में तीव्र वृद्धि का क्रम जारी है, दूसरी ओर ईसाई मिशनरियां भारी बजट के साथ मतान्तरण की प्रक्रिया में लगी हैं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट बहुल अनेक जिले मुस्लिम जनसंख्या के दबाव से राजनीतिक उलट पुलट करने में सक्षम हैं। बागपत जो चौधरी चरण सिंह का प्रिय क्षेत्र रहा है वहां मुस्लिम जनसंख्या 27 प्रतिशत हो चुकी है। अलीगढ़ में 21.7 प्रतिशत तो मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बिजनौर, बुलन्दशहर, मेरठ और पीलीभीत जैसे जिले आने वाले चुनाव में हिन्दुत्व समर्थक प्रत्याशियों के लिए बड़ी टेढ़ी खीर सिद्ध होंगे। पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम जनसंख्या का विस्तार बहुत तेज गति से चल रहा है। बहराइच, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, बस्ती, श्रावस्ती, गाजीपुर आदि जिलों में मुस्लिम नेताओं की धमक भविष्य का बखान करती है। यह कहना सही है कि उत्तर प्रदेश में 16 करोड़ 53 लाख से अधिक हिन्दू रह रहे हैं। ध्यान देने की बात है कि 2001 की जनगणना में कहा गया था कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में हिन्दू 80.61 प्रतिशत हैं। पर हिन्दुओं में धर्म नहीं जातीय स्वाभिमान का प्राबल्य है। चुनाव के समय हिन्दू अपनी जाति देखता है। जबकि मुसलमान और ईसाई मजहब व रिलीजन की बात करते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में जितने लोगों ने पिछले एक साल में हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार किया उनमें 77 प्रतिशत हिन्दू थे। इनमें 63 प्रतिशत महिलाएं थीं। विश्व हिन्दू परिषद का कहना है कि उत्तर प्रदेश में प्रतिवर्ष 12 लाख से अधिक हिन्दू या तो मुस्लिम बन रहे हैं या फिर ईसाई। यह बदलाव इतना गम्भीर है कि इसे रोका नहीं गया तो बहुत घातक परिणाम सामने आएंगे।

प्यू रिसर्च सेण्टर का कहना है कि 2050 तक भारत में मुसलमानों की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या की 40 प्रतिशत अर्थात 10 करोड़ से बढ़कर 31 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। इस्लाम संसार में इतनी तेजी से कहीं नहीं बढ़ रहा जितनी तेजी उसने भारत में पकड़ ली है। भारत को बचाना है तो हिन्दुत्व को बचाना पड़ेगा। यदि हिन्दू धर्म के लोग इसे भार मानते हैं तो उन्हें अपनी सोच में बदलाव करना ही पड़ेगा। यह सही है कि राजनीतिक शक्ति के बिना भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में हिन्दू समाज अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता। विपक्ष में होने पर भी कई राजनीतिक दल गैर हिन्दू समुदायों विशेषत: मुस्लिम और ईसाई समुदायों के लिए रक्षक की भूमिका निभाते हैं। हिन्दुओं के सामाजिक और धार्मिक संगठनों की तरह राजनीतिक समर में उतरने वाले एक मात्र दल भाजपा की शक्ति का क्षरण किसी भी रूप में हिन्दू आस्था पर हो रहे आघात को रोक नहीं पाएगा। राजनीतिक चिन्तन से इतर जातीय वैमनस्य की बढ़ती भावना को रोकना बड़ी चुनौती है। भाजपा विरोधी दल जातीय वैमनस्य को बढ़ाने में गहरी अभिरुचि ले रहे हैं। इसीलिए हिन्दू आस्था पर हमले बढ़े हैं।

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अनेक बार ऐसे प्रश्न उठते हैं कि जिस तरह मुस्लिम समुदाय के लिए मजहबी संगठन योजनाबद्ध रीति से कार्य कर रहे हैं। तो दूसरी ओर ईसाई रिलीजन के लिए मिशनरियां जुटी हैं। इन दोनों की कार्य प्रणाली को परिणाम परक बनाने के लिए धन की व्यवस्था करने से लेकर निगरानी तक का कार्य संस्थागत रूप में हो रहा है। तो फिर हिन्दू समाज के लोगों के लिए ऐसी व्यवस्था अब तक क्यों नहीं बन पायी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, आर्य समाज, सिख और जैन पन्थ के विविध संगठन हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए कार्यरत हैं। भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 76 लाख से अधिक हिन्दू साधु और संन्यासी विचरण करते रहते हैं। पर इनमें से कोई मतान्तरण को रोकने के लिए सीधे तौर पर क्रियाशील नहीं दिखायी देता। सरकारों की ओर से भी मतान्तरण रोकने के सन्दर्भ में तर्क दिया जाता है कि संविधान के प्रावधान इस सन्दर्भ में बहुत लचीले हैं। कई राज्यों में ऐसे दलों की सरकारें हैं जो हिन्दुओं के मतान्तरण का खुला समर्थन करते हैं। लव जिहाद का विषय भी ऐसे दलों के समर्थन के चलते उग्र रूप लेता चला जा रहा है। मजहब और रिलीजन को मानने वाले समुदायों का संख्या बल प्रबल होने से यह समस्या विकराल हो गयी है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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