अरविंद कांत त्रिपाठी
अरविंद कांत त्रिपाठी

प्रकृति, जीवन में आज तक हमारी अमीरी, गरीबी, आचरण, व्यवहार, तर्क, बुद्धिमत्ता और जीवनस्तर आदि की परीक्षा लेती रही है किन्तु अब वह पूरजोर ढंग से हमारी जीवटता को, हमारे आत्मबल को, हमारे धैर्य व संयम को परखने में लगी है। धन, वैभव, अमीर, गरीब, शिक्षित व अनपढ़ सबको “एक हौद” में डालकर तेजी से मथ रही है। क्रोधाग्नि में दहकती प्रकृति के लिए धन, पद, पैसा, प्रभाव व पहुंच राख के समान है। धूल के समान।

वह सिर्फ और सिर्फ आपका हौसला नाप रही है। जिगरा नाप रही है, उसमें आप कम कहां? वही तो आपकी थाती है। पहचान है। बुलंद हौसले वाले हजारों-हजार ICU से वापस आ रहे हैं। यह भी सच है। जोरदार संघर्ष के इस काल में प्रकृति स्वयं- आत्मबल वालों को विजेता बना रही है। यह भी सत्य है। दैनन्द्नीय जीवन में लापरवाही सहज स्वभाव है। हौसले, साहस, ऊर्जा, विश्वास और जीवटता से लबरेज हम सब भी थोड़ा लापरवाह हैं, यह भी सच है। इस थोड़े का अभी—अभी तुरंत अंत करिए।

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मगन रहिए “हम विजेता होकर निखरेंगे” यह शब्द नहीं, औपचारिक कथन नहीं अपितु विधि का विधान है। समय बदलेगा यही “अटल सत्य” है। अगले पल जो होगा वह होकर रहेगा। जीवन में (साधारण समय में भी) कभी अगले पल का ठिकाना नहीं रहा है। केवल अनुमान था कि हम कल, परसों, तरसों और वर्षों रहेंगे। वह अनुमान सत्य होता था, उसी को हम शान्तीमय, सुखद और सहज जिंदगी कहते थे। यह सच है कि आज स्थिति विपरीत है। लेकिन कल भी रहेंगे, वर्षों रहेंगे यह अनुमान तो पहले जैसा ही है फिर घबड़ाने वाला लबादा ओढ़ने की क्या जरूरत?

corona way

अतीत में भी पल का ठिकाना नहीं था, लेकिन कल के सुखद भविष्य की योजनाएं थीं। चिन्ता थी। आज उसका हरण क्यों? कोरोना तो है लेकिन हमारी नकारात्मक सोच भी जिम्मेदार है ना!

एक और परम सत्य पर ध्यान दें

“जब तक तय नहीं है, मृत्यु नहीं आ सकती और जब आ जाएगी तब उसका अनुभव करने के लिए हम नहीं रहेंगे।” फिर मृत्यु से भय क्यों?

-यूनानी दार्शनिक जेनोफेनिज

हां एक बात और

एक अदद इंसान के रूप में सशरीर आप सबकी (समाज की, राष्ट्र की) सश्रम किसी भी तरह की नि:शुल्क सेवा को तैयार व तत्पर हूं। निर्देश दें।

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