नई दिल्ली। एक घटना किसी को हीरो बनाने के लिए काफी है। दिल्ली हिंसा के बाद बैकफुट पर आये किसान आंदोलन के बाद कल तक किसान नेता राकेश टिकैत के बारे में यह कहा जा रहा था कि जल्द ही उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। लेकिन रात में उनके छलके आंसू ने उन्हें एड बार फिर से मसीहा बना दिया है। आज वही उत्तर प्रदेश की सीमा अपने समर्थकों के साथ प्रशासन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है। कैमरे के सामने उनके रोने का यह असर हुआ कि प्रदेश के अलग-अलग शहरों से उनके समर्थन में लोग शुक्रवार की सुबह से जुटना शुरू हो गए।

कल तक भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत का नाम कुछ लोगों को पता था, लेकिन आज शायद ही कोई ऐसा हो जो राकेश टिकैत को न जानता हो। वहीँ राकेश टिकैत इससे पहले क्या थे और मौजूदा समय में उनके पास कितने करोड़ की संपत्ति है यह बात शायद कुछ ही लोगों को ही पता है। यहां हम उनके जीवन की कुछ जानकारियों साझा कर रहे हैं, जिसे सुनकर हो सकता है आपको भी हैरानी हो। जिस राकेश टिकैत की पहचान किसान नेता के नाम से हो रही है वह कभी दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के तौर पर नौकरी कर चुके हैं। आज वह करोड़ों की संपत्ति के मालिक भी हैं।

राकेश टिकैत दो बार चुनाव भी लड़ चुके है, लेकिन दोनों बार उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। मजे की बात यह  कि राकेश टिकैत को किसान की राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान के अध्यक्ष थे। ज्ञात कि राकेश टिकैत का जन्म 4 जून, 1969 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के सिसौली गांव में हुआ था। मेरठ यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए की पढ़ाई करने के बाद एलएलबी की और वकालत  पेशे में आ गए। इसके बाद वह पुलिस में भर्ती हुए। राकेश टिकैत वर्ष 1992 में दिल्ली में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात थे। महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में वर्ष 1993-94 में दिल्ली में किसान आंदोलन चल रहा था। चूँकि महेंद्र सिंह टिकैत राकेश टिकैत के पिता थे, इसलिए आंदोलन को समाप्त कराने के लिए उनपर अपने पिता को मनाने के लिए उनपर दबाव डाला गया। मगर राकेश टिकैत किसी दबाव में आने की जगह नौकरी छोड़कर किसानों के साथ खड़े हो गए।

राकेश टिकैत की तरफ से  वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिए गए शपथ पत्र के मुताबिक उनकी संपत्ति 4,25,18,038 रुपए है। इसके अलावा उनके पास 10 लाख रुपए कैश भी था। राकेश टिकैत दो बार चुनाव लड़े, लेकिन दोनों बार उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा। आंदोलन के दौरान इस बार भी वह बैकफुट पर आ गए थे, लेकिन कैमरे के सामने रो करके की गई भाबुक अपील काम कर गई और वह किसानों के सबसे बड़े  नेता के तौर पर खुद को खड़ा कर लिया।

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