नई दिल्ली। बड़ेबुजूर्ग कहा गए हैं कि जिंदगी में कोर्टकचहरी के पचड़े में पड़ने से बचना चाहिए। यह सही बात भी हैक्योंकि कोर्टकचहरी के चक्कर में जो पड़ाउसकी जिंदगी बर्बादी की कगार पर पहुंच गई। मुकदमा पिता जी से शुरू होता है और फैसला बेटेपोते को मिलता है। यही इस देश की न्याय व्यवस्था हैजिसमें सुधार लाने की प्रक्रिया में निरंतर काम जारी है। बावजूद इसके यहां का सरकारी सिस्टम इतना मरा हुआ है कि मरने के बाद फरियादी को इंसाफ मिलता हैतो वहीं कुछ ऐसे लोग भी है जो जिंदा होते हुए भी खुद को जिंदा साबित करने के लिए सरकारी चौखट पर भटकने को मजबूर हैं। सिस्टम में सुधार लाने के लिए इस तरह की घटनाओं पर कई फिल्में भी बन गईलेकिन व्यवस्था आज भी जस की तस बनी हुई है। अभी हाल में आई सच्ची घटना पर बनी फिल्म कागज में भी दिखाया गया है कि एक जिंदा व्यक्ति को इस मुर्दे सिस्टम के सामने खुद को जिंदा साबित करने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा।

इस समय इसी तरह के दो मामले सामने आए हैंजो काफी हैरान करने वाले हैं। इनमें से पहला मामला मुंबई से है जहां एक दोषी को मरने के 20 साल बाद कोर्ट ने उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया है। जबकि दूसरा मामला उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जनपद से हैजहां एक 80 साल की बुजुर्ग महिला को मरा बताकर उसकी पेंशन बंद कर दिया गया है। अब वह बुजुर्ग महिला खुद को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों के चक्कर काट रही है। वहीं पहले मामले में कोर्ट ने एक षडयंत्र के मामले में 25 साल पहले वर्ष 1985 के आरोपी सेल्स टैक्स ऑफिसर को दोषी करार दिया था। इसमें ऑफिसर को 18 महीने की सजा और 26 हजार रुपए जुर्माना लगाया था। इस दोषी आफिसर की सजा पूरी होने से पहले (बीस वर्ष पहले) मौत हो गई। कोर्ट ने दोषी अफसर के मरने के 20 साल बाद अब उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया है।

जबकि दूसरे मामले में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की रहने वाली 80 साल की महिला को सरकारी रिकॉर्डों में मरा बता दिया गया है। इसके चलते बुजुर्ग महिला खुद को जिंदा साबित करने के लिए मुर्दा सिस्टम से अपने हक की कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। इस बारे में महिला ने बताया कि उसकी पेंशन दो वर्ष पहले बंद कर दी गई। जब उसने पेंशन बंद किए जाने के बारे में पता किया तो मालूम चला कि कागज में उसे मृत घोषित किया जा चुका है। बीते सप्ताह महिला ने संपूर्ण समाधान दिवस में शिकायत करने पहुंची लेकिन यहां उसकी फरियाद सुनने को कोई तैयार नहीं है।

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