रवींद्र प्रसाद मिश्र

प्रयागराज: जो जितना संगठित होगा वह उतना ही मजबूत होगा। यहां प्राकृति का भी नियम है और राजनीति का भी। जातीय दुराव खत्म करने का नेताओं की तरफ से भले ही ढोंग किया जाता रहा हो, पर सच यही है कि जातीय भेदभाव को बढ़ावा राजनीतिक दलों और नेताओं ने ही दिया है। यही वजह है कि जितना जातीय भेदभाव को खत्म करने का प्रयास किया गया यह उतना ही बढ़ता चला गया। देखते ही देखते जातियां नाम के साथ-साथ दुकान, मकान और गाड़ियों पर दिखने लगीं। चुनाव करीब आते ही राजनीतिक दलों की तरफ से जातीय समीकरण साधने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सभी दल जातीय को रिझाने के लिए अपने-अपने मोहरे चलने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में बीजेपी भी अपने नाराज नेताओं को मनाने और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की कोशिश में लग गई है।

उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गई है। राजनीतिक दल अपनी सियासी जमीन तैयार करने में जुट गए हैं। मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संघ बड़े नेता सरकार्यवाह दत्तात्रे होसबाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के घर पहुंचे थे। मौका था केशव प्रसाद के नवविवाहित पुत्र व पुत्रवधु को आशीर्वाद देने का। लेकिन सियासत में हमेशा एक तीर से कई निशाने साधे जाते रहे हैं। सियासी रणनीतिकारों की मानें तो यहां भी यही कोशिश की गई। इसी बहाने यह संदेश देने की कोशिश की गई कि हम सब एक हैं।

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गौरतलब है कि डिप्टी सीएम केशव मौर्य के बेटे का 21 मई को रायबरेली में विवाह हुआ है। कोरोना प्रोटोकाल के चलते कार्यक्रम में सीमित लोगों को ही आमंत्रित किया गया था। वहीं पुत्र व पुत्रवधु को आशीर्वाद और आयोजित भोज में शामिल होने के लिए कल दोपहर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल और क्षेत्रीय प्रचारक अनिल कुमार के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विक्रमादित्य मार्ग स्थित डिप्टी सीएम केशव के आवास पर पहुंचे। इस दौरान पार्टी के लगभग सभी दिग्गज नेता मौजूद रहे। बता दें इससे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने अगले सीएम को लेकर बयान दिया था, जो अप्रत्यक्ष रूप से योगी के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर रहा था।

बताते चलें कि पिछड़ों का संगठन काफी मजबूत है। यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल पिछड़ों को साधने की कोशिश में लगे रहते हैं। जातीय समीकरण का आलम यह है कि सपा, बसपा, निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय पार्टी आदि का वजूद ही जाति पर टिका है। हालांकि जातीय राजनीति करने से कोई दल अछूते नहीं हैं, चाहे वह बीजेपी हो या फिर कांग्रेस। ऐसा करना पार्टियों की मजबूरी भी है। क्योंकि बिना जातीय समीकरण को साधे सत्ता की सीढ़ी चढ़ पाना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है। हम लोगों के आस पास कई ऐसे नेता हैं जो क्षेत्र में बिना कुछ काम कराए केवल जाति आधारित वोटों से चुनाव जीतते आए हैं। हालांकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से जातीय तिलिस्म टूटा है और चुनाव विकास के नाम पर लड़ा गया।

जातीय तिलिस्म टूटने का परिणाम रहा कि जिन राजनीतिक दलों का वजूद जा​तीयों पर टिका था व न सिर्फ सत्ता से दूर हुए बल्कि उनकी नींव तक हिल चुकी है। उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों के सामने अपने नेताओं को संभालने की चुनौती बनी हुई है। बसपा से दिग्गज नेताओं के जाने का सिलसिला जारी है तो वहीं बीजेपी के सामने अपनों को खुश रख पाने की चुनौती है। ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य के घर दिग्गज नेताओं के जुटने के पीछे जो संदेश है वह साफ झलक रहा है।

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