लखनऊ: भारतीय समाज-शास्त्र एक ओर सैद्धान्तिक तौर पर नारी को आदर और सम्मान का पात्र घोषित करता है और “यत्र नार्यन्ति पूज्यंते तत्र रमन्ते देवता” जैसी उद्घोषणाएँ करता है तो दूसरी ओर उसे दासता की बेड़ियों में बाँधकर रखता है। स्त्रियों के प्रति वस्तुवादी और भोगवादी मानसिकता से ग्रस्त पुरुष समाज उसके लिए ऐसी ही भाषिक अभिव्यक्तियाँ भी गढ़ लेता है जो उसे उसे महज एक उपभोग की वस्तु की पहचान दिलाता है। स्त्री उपरोक्त आदर्शमूलक घोषणाओं के बावजूद भी विश्व समाज में स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार से वंचित है।

नारी जीवन की ऐसी ही अनकही विसंगतियों और वर्जनाओं पर यह पुस्तक केंद्रित है, जिसमें गर्भ में पल रही एक बच्ची के मनोभावों से लेकर बूढी बेबस लाचार मां तक की व्यथा का सजीव वर्णन किया गया है। नारी जीवन के हर पक्ष को उकेरा गया है- चाहे वो सशक्त हो या लाचार।

इस पुस्तक की वैसे तो सभी कविताएं बहुत अच्छी हैं परंतु कुछ कविताएं बेहद ही उत्कृष्ट है जैसे, गुजरा जमाना याद आता है, गर्भ में ही मारो, खुद के लिए तू जीना सीख, महफिल की जान, मां, जीवन बीत गया, तुमको भी सिखला दू बोलो, फोन का कनेक्शन, उन्माद, सहना सीखो, जीवन भर जलना होगा, इत्यादि कविताएं। इन कविताओं का कथ्य, सत्य और गयात्मकता, लयात्मकता तथा भावात्मकता को तर्क के साथ इस तरह प्रस्तुत किया गया है जिससे समकालीन जीवन का यथार्थ समग्रता में उभर आता है।

इसे भी पढ़ें: ‘बच्चे हैं अनमोल’ जागरूकता अभियान की शुरुआत

51 कविताओं का यह संग्रह आपको अनेक अनकहे मनोभावों का रसास्वादन कराएगा, जिसमें नारी जीवन की प्रत्येक अवस्था के बहुतेरे रंग परिलक्षित होंगे।

इन कविताओं में नारी की मन:स्थिति, परिस्थिति और अवस्थिति का सजीव वर्णन किया गया है जो नि:सन्देह किसी भी मानव हृदय को झकझोर देगा तथा उसे चिन्तन-मनन हेतु विवश कर देगा।

लेखिका परिचय :

मेरा नाम सीमा त्रिपाठी है। मैंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एमए (मनोविज्ञान), एमएड, पीएचडी की है।

लेखनी मुझे विरासत में मिली है, मेरे पिताजी बहुत अच्छे कवि थे। मैंं 13 साल की उम्र से कविताएं लिख रही हूँ।

मैने इंडियन एयरलाइंस, दूरदर्शन में काम करने के अतिरिक्त शिक्षण का कार्य भी किया लेकिन संतुष्टि नहीं मिली। फिर मै एक एनजीओ के माध्यम से समाज सेवा में जुडी़, विशेषकर लेखन, प्रशिक्षण, क्षमता वर्धन आदि के कार्यों में। इस दौरान मैने महिला किसानों की स्थितियों, बाढ़-सूखा व कृषि, महिला सशक्तिकरण, मोटे अनाज, जैविक कृषि, जेन्डर, महिला स्वास्थ्य आदि अनेक विषयों पर 10 पुस्तकें भी लिखीं।

मुझे भारत की महिला किसानों पर व्याख्यान और सेमिनार हेतु कैलिफोर्निया (अमेरिका) और नैरोबी (साउथ अफ्रीका) भी बुलाया गया।

इसी दौरान पिताजी के निधन पर मैने उनके नाम से सड़क किनारे/झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीब और वंचित बच्चों के लिए जीबी मेमोरियल नामक एक नि:शुल्क विद्यालय का संचालन प्रारंभ कर दिया। जिसकी शुरुआत तो 8 बच्चों से की थी लेकिन वर्ष भर में वो संख्या 45 तक पहुंच गई। उनके एक समय का नाश्ता, कपडे़ (स्कूल व घर दोनों के) कापी किताब सब कुछ मुफ्त था। विद्यालय के सालाना जलसे में शहर के मेयर, कमिश्नर, विधायक आदि आते थे और बच्चों की हौसलाफजाई होती थी वो अपने को किसी कान्वेंट स्कूल से कम का नहीं समझते थे।

इसी परिप्रेक्ष्य में ईटीवी उत्तर प्रदेश ने मेरे स्कूल पर एक कार्यक्रम रिकॉर्ड कर के प्रसारित किया और मुझे वर्ष 2015 में “वीमेन एचीवर्स अवार्ड” अमर उजाला के सौजन्य से विश्व विख्यात बाक्सर ‘मैरी कॉम’ द्वारा दिया गया।

जीवन की इस आपाधापी में कविताएं हमेशा मेरे साथ रहीं, जहाँ भी कुछ भाव बनते, मैं शब्दों को कागज पर उतार लेती। महिलाओं पर ही मैने सबसे ज्यादा लिखा है और उन्हीं की परिणति के रूप में मेरी पहली पुस्तक “अनकही अभिव्यक्ति” छप कर सामने आई है।

इसे भी पढ़ें: फैक्ट’ और ‘फिक्शन’ एक ही घाट पर 

Spread the news