Acharya Vishnu Hari Saraswati
आचार्य विष्णु हरि सरस्वती

आचार्य विष्णु हरि सरस्वती

कहते हैं कि कुंआ कोई दूसरे लिए नहीं खोदता है, अपने लिए खोदता है। चीन ने एक ऐसा कुंआ खोदा था, जिसमें डूबो कर भारत और अमेरिका को मारना चाहता था और भारत व अमेरिका की आर्थिक प्रगति के विस्तार को रोकना चाहता था, विध्वंस करना चाहता था। इतना ही नहीं बल्कि कूटनीति के क्षेत्र में वैश्विक वर्चस्व को स्थापित करना चाहता था। ऐसी अंहकार भरी और साजिश पूर्ण योजना के लिए बहुत बड़े-बड़े हथकंडे अपनाये गये थे। झूठ का बीजारोपण हुआ था, लालच दिखाया गया था, रातोरात आर्थिक शक्ति बनने का सपना दिखाया गया था। चीनी हथकंडे और लालच तथा साजिश में बहुत सारे देश शामिल हो गये। बहुत सारे देश अपनी अस्मिता और स्वतंत्रता की कीमत पर भी शामिल हो गये। यह देखने की कोशिश भी नहीं हुई कि इस चीनी हथकंडे का कोई दुष्परिणाम भी हो सकता है। भविष्य में आर्थिक विध्वंस का कारण बनेगी, विकास को रौंदने वाली होगी और सपने को कुचलने वाली होगी। चीन के इस हथकंडे में समर्पण करने वाला पहला देश पाकिस्तान था। उसके बाद अन्य कई देश भी समर्पण करने का कार्य किये। सबसे आश्चर्य की बात इटली की थी। इटली ने भी चीन के हथकंडे, साजिश और अहंकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। अब इटली को समझ में आ गया कि उसने चीन के सामने आत्मसमर्पण कर अपना ही नुकसान किया है और अपनी ही अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है।

यहां चीन के एक बहुत बड़े हथकंडे, झूठ, साजिश और अहंकार से लिप्त बेल्ट एंड रोड परियोजना की बात हो रही है। बेल्ट एंड रोड परियोजना क्या है, इस परियोजना की झूठ क्या है, इस परियोजना की साजिश क्या है, इस परियोजना को लेकर चीन की वैश्विक कूटनीति क्या है? यह सब जानने के पहले आइए देखते हैं कि इटली की पीड़ा क्या है, उसका नुकसान क्या है, उसकी अर्थव्यवस्था को कैसे नुकसान पहुंच रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था कैसे इस परियोजना की भार से दब कर विध्वंस होगी? सबसे पहले हम इटली सरकार की वर्तमान नीति और चिंता को भी देख लेते हैं। इटली के रक्षा मंत्री गोइदो कोसेटो ने एक बयान जारी किया है। गोइदो कोसेटो ने अपने बयान में कहा है कि चीन की बीआरआई परियोजना में शामिल होना एक तबाह करने वाली नीति थी, इस पर निर्णय लेते हुए इटली की अस्मिता और संप्रभुत्ता का ख्याल नहीं रखा गया, इटली के हित का ख्याल नहीं रखा गया, इटली की अर्थव्यवस्था के विध्वंस होने के खतरे को ध्यान में नहीं रखा गया। जब कोई बड़ी लागत वाली परियोजनाओं में हिस्सेदारी की सहमति होती है, तो इसके पूर्व वर्तमान और भविष्य में होने वाले लाभ और हानि पर भी विचार विमर्श होता है, उसकी रूप रेखा तैयार होती है। लेकिन इटली का तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने इस प्रकार की सावधानियां न तो बरती और न ही समझने की कोशिश की थी। इस परियोजना में शामिल होने का नुकसान इटली झेल रहा है। चीन ने इटली में अपना निर्यात काफी बढ़ा दिया, जबकि इटली का निर्यात काफी निचले स्तर पर हैं। यानी इस परियोजना में शामिल होने लाभ इटली को प्राप्त नहीं हो रहा है।

इटली अब बीआरआई परियोजना से हटना चाहता है, निकलना चाहता है। लेकिन इटली इस परियोजना से कैसे निकलेगा, उसके लिए इस संबंध में कई चुनौतियां हैं। इटली के रक्षा मंत्री गोइदो क्रोसेटो कहते हैं कि हम चीन से संबंध खराब किये बिना इस परियोजना से निकलना चाहते हैं। अगर इटली इस परियोजना से निकलना चाहेगा, तो इससे चीन कभी खुश नहीं होगा। चीन आसानी से इटली को वाकओवर दे नहीं सकता है, चीन क्यों चाहेगा कि उसकी कमाई बंद हो और उसकी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो। सबसे बड़ी बात यह है कि दो देशों के बीच में जो सहमतियां बनती है, जो नीतियां तय होती हैं और जो संधियां होती हैं उस पर अनिवार्य तौर अमल करने की बाध्यता होती है। इटली अगर स्वयं की नीति के बल पर हटना चाहेगा, तो फिर चीन अवरोधक खड़ा करेगा, इटली को चीन अंतरराष्टीय नियामकों में घसीट सकता है, इसके अलावा चीन अपना निर्यात रोक कर और कूटनीतिक बखेड़ा खड़ा कर इटली को नुकसान पहुंचा सकता है।

क्या है बीआरआई परियोजना

बीआरआई परियोजना है क्या? इस परियोजना को तानाशाही परियोजना क्यों कहा जाता है? इस परियोजना को मौत की परियोजना क्यों कहा जाता है? इस परियोजना को भविष्य विध्वंसक परियोजना क्यों कहा जाता है, इस परियोजना को पाकिस्तान विध्वंस की परियोजना क्यो कहा जाता है? इस परियोजना से दुनिया के 71 देश क्यों जुड़ने के लिए तैयार हो गये? बीआरआई एक ऐसी परियोजना है जो चीन को अरब सागर से जोड़ने वाली है। यह परियोजना चीन के उस क्षेत्र से शुरू हुई है जिस क्षेत्र में चीन की संप्रभुत्ता को लेकर आतंकवाद की आग हमेशा जलती रहती है। झिजियांग क्षेत्र से यह परियोजना शुरू हुई है। झिजियांग में उईगर मुस्लिम आबादी रहती है। झिजियांग पर चीन का अवैध कब्जा है, ऐसा उईगर मुस्लिम आबादी मानती है, अपनी आजादी को लेकर मुस्लिम आबादी झिजिंयांग में आतंकवाद के रास्ते पर चल रही है और चीन विध्वंसक तरीके से मुस्लिम आतंकवाद का दमन कर रहा है।

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यह परियोजना पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम बलूचिस्तान से होकर गुजर रही है। बलूचिस्तान में इस परियोजना को लेकर बहुत बड़ा विरोध और हिंसा की आग जलती रहती है। दर्जनों चीनी इंजीनियरों की हत्या हुई है, विरोध की आग को दबाने के लिए बलूच मुस्लिम आबादी का दमन किया जा रहा है, उन्हे बर्बर हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है। पाकिस्तान भी इस परियोजना को लेकर त्राहिमाम कर रहा है। अपनी हिस्सेदारी पर आने वाले खर्च को लेकर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विध्वंस हो गयी है और उसे चीन का कर्जदार पर कर्जदार बनना पड़ रहा है। पाकिस्तान के अंदर में चीन की इस परियोजना को लेकर विद्रोह की स्थिति है। पाकिस्तानी कहते हैं कि चीन ने अपने हित में इस परियोजना के माध्यम से पाकिस्तान को कंगाल बना कर छोड़ा है।

चीन ने अपनी अराजक सामरिक, आर्थिक और बीटो की शक्ति का दुरुपयोग कर और एक हथकंडा बना कर बीआरआई को खड़ा किया है। यह परियोजना गुलाम कश्मीर से आगे बढ़ती है। गुलाम कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। गूलाम पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। भारत ने आपत्ति उठायी थी कि इस परियोजना के माध्यम से भारत की संप्रभुत्ता का हनन किया है। पहले चीन ने भारत को भी इससे जोड़ने और भारत को इस परियोजना के माध्यम से कंगाल बनाने की नीति अपनायी थी और लाभार्थी बनने का सपना दिखाया था। पर भारत ने चीन के इस जाल में फंसने से इनकार कर दिया था। इतना ही नहीं बल्कि भारत ने इस परियोजना को हानिकारक और संप्रभुत्ता हनन वाली बताया था। विश्व के देशों को अगाह भी किया था, भविष्य के खतरे भी दिखाये थे। पर भारत की चेतावनी के बाद भी दुनिया के कोई एक-दो देश नहीं बल्कि 71 देश इस परियोजना से जुड़ गये। इस परियोजना से जुडे देश आज घर के रहे न घाट के रहे, सिर्फ अपनी भूल और मूर्खता पर पश्चताप कर रहे हैं।

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चीन अब इस परियोजना की भार से खुद दब ही दब रहा है। एक टिलियन डॉलर की यह परियोजना अब उसके लिए भी खतरे की घंटी बन गयी है, अर्थव्यवस्था विध्वंस का पर्याय बन गयी है। परियोजना जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे खर्च भी बढ़ता जा रहा है, विरोध भी बढ़ता जा रहा है। परियोजना कब पूरी होगी, इसको लेकर संशय की स्थिति है। अगर परियोजना पूरी भी हो जाती है तो फिर परियोजना के रख-रखाव भी अर्थव्यवस्था विध्वंस के तौर पर ही उपस्थित रहेगा। इसके अलावा इटली सहित अगर कई देश अलग होना शुरू हो जाते हैं, तो फिर चीन के लिए यह परियोजना विनाश और आत्मघात का ही प्रतीक बनेगी। अगर भारत की चेतावनियां सुन लेते, तो आज इटली जैसे दर्जनों देश अपनी अर्थव्यवस्था की कीमत पर चीन की झोली भरने और चीनी जाल के शिकार होने से बच जाते।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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