राघवेंद्र प्रसाद मिश्र
लखनऊ: देश में एक समय हुआ करता था जब राजनीतिक पार्टियों की प्रचारक की सूची में कोई न कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा हुआ करता था। मस्जिदों से पार्टी के समर्थन अपील की जाती थी। चुनाव से पहले नेता जालीदार टोपी पहनकर मजारों की परिक्रमा करना शुरू कर देते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में हिंदुत्वाद की जो अलख जागई उसको वर्ष 2017 से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस तरह से बरकरार रखा, उसी का नतीजा है कि जो नेता कभी हिंदुत्व का विरोध करते थे, आज वह मंदिर जाने लगे हैं और खुद को हिंदू साबित करने का पूरा प्रयास भी कर रहे हैं।
हालांकि भाजपा के हिंदुत्व की विपक्षी पार्टियों और कुछ बुद्धिजीवियों की तरफ से अलग व्याख्या भी की जा रही है। लेकिन तुष्टिकरण की आड़ में देश की जनता के साथ जो छल किया गया है, वह अब सबके सामने आ चुका है। शायद यही वजह है कि वर्ष 2014 के बाद से विपक्ष देश की जनता का विश्वास हासिल नहीं कर पा रहा है।
बीजेपी को बदनाम करने की तमाम कोशिशें की गईं। आरक्षण समाप्त करने, सीएए कानून पर मुस्लिमों को देश से बाहर निकालने, कृषि कानूनों पर किसानों की जमीन छीनने आदि साजिशों को हवा देकर विपक्ष ने देश को आग में झोंकने का जो कुचक्र रचा, देश की अधिकांश जनता इस बात को बाखूबी समझ रही है। जिनका मकसद किसी तरह से सत्ता में काबिज रहने की रही, वह सत्ता से बाहर होते ही जल बिन मछली की तरह तड़प रहे हैं। इसी तड़प में वह वहीं गलती करते चले आ रहे हैं, जो बीजेपी चाहती है।
यह अलग बात है कि इस बार यूपी के चुनाव में मोदी की वह लहर नहीं है, जो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में थी। और शायद यही वजह भी है कि भाजपा इसबार मोदी के नाम पर नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ के नाम पर यूपी चुनाव लड़ रही है। ऐसे में अगर प्रदेश में एकबार फिर योगी की सरकार बनती है तो भाजपा विरोधियों को यह संदेश देने में कामयाब हो जाएगी कि पार्टी में मोदी के बाद योगी का भी चेहरा है जिसकी बदौलत चुनाव जीता जा सकता है।
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प्रदेश में सीएम योगी का जो प्रखर हिंदुत्ववादी छवि है, उसका तोड़ उत्तर प्रदेश क्या अन्य राज्यों में भी नहीं है। कानून व्यवस्था, बेराजगारी, मंहगाई आदि मुद्दों पर विपक्ष भाजपा सरकार को लगातार घेरने की कोशिश कर रही है। लेकिन जब बात गरीबों को मिलने वाले फ्री राशन की आती है, तो विपक्ष के मंहगाई के मुद्दे की हवा निकल जाती है। यही हाल कानून व्यवस्था की भी है। सपा सरकार में प्रदेश में कानून व्यवस्था का क्या हाल था, वह प्रदेश की जनता भुगत चुकी है। रही बात पुलिस की तो खादी के भेष में कुछ भेड़िए बैठे हैं, जो सुधरने को तैयार नहीं है। इसी का नतीजा रहा कि योगी सरकार की तरफ से छूट मिलते ही, प्रदेश में अपराधियों से ज्यादा अपराध यूपी पुलिस ने किया। जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या, गोमती नगर में एप्पल कर्मचारी की गोली मारकर हत्या, कानपुर में व्यवसाई मनीष गुप्ता की हत्या व विकास दुबे जैसे अपराधियों की मुठभेड़ में मौत के मामले में पुलिस भी भूमिका दागदार रही है।
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