रवींद्र प्रसाद मिश्र
प्रयागराज। हर वर्ष 24 मई को राष्ट्रमंडल दिवस मनाया जाता है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर यह राष्ट्रमंडल दिवस है क्या, इसकी उपयोगिता क्या है और किस लिए इसको बनाया गया। मौजूदा प्रमाणों के अनुसार राष्ट्रमंडल दिवस को पहले एम्पायर दिवस के रूप में मनाया जाता था। हेराल्ड मैकमिलन ने सबसे पहले इसका नाम बदलकर राष्ट्रमंडल दिवस का नाम दिया था। वहीं इंग्लैंड की महारानी ने वर्ष 1901 में राष्ट्रमंडल दिवस मनाने का क्रि किया था। वर्ष 1902 में महारानी के निधन के बाद से इसे हर वर्ष राष्ट्रमंडल दिवस मनाया जाने लगा। राष्ट्रमंडल समूह के अंतर्गत वे देश आते हैं जो कभी न कभी ब्रिटेन शासन के अधीन रहे हैं। इस तरह से राष्ट्रमंडल उन प्रभुसत्ता—संपन्न देशों का एक स्वैच्छिक संघ है, जो ब्रिटिश सरकार और कानून के अधीन रह चुके हैं।
राष्ट्रमंडल का मुख्यालय लंदन (युनाइटेड किंगडम) में है और इसकी कार्यकारी भाषा अंग्रेजी है। राष्ट्रमंडल की एक खासियत यह भी है कि यह सबसे कम संस्थागतं स्वरूप वाले अंतर-सरकारी संगठनों में से एक है। राष्ट्रमंडल के प्रमुख अंग शासनाध्यक्षों की बैठक और सचिवालय हैं। शासनाध्यक्षों की द्वि-वार्षिक बैठकें होती हैं, जिसमें सामूहिक हित के मुद्दों पर चर्चाएं होती है और संगठन की गतिविधियों के मौलिक दिशा-निर्देशों का निर्धारण भी किया जाता है। इसके अलावा वैदेशिक मामलों, रक्षा, वित्त, कानून, कृषि, शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि विषयों पर सदस्य देशों के वरिष्ठ मंत्रियों के बीच विशेष परामर्श किए जाते हैं। जबकि विशिष्ट मुद्दों पर समन्वय स्थापित करने के लिए अनेक नियमित या तदर्थ आधार पर बैठकें भी होती रहती हैं।
इसे भी पढ़ें: 18+ वालों को टीकाकरण के लिए अप्वाइंटमेंट की जरूरत नहीं
राष्ट्रमंडल का उद्भव और विकास
तथ्यों के मुताबिक बीसवीं सदी के शुरू होते ही राष्ट्रमंडल ने अपना व्यापक रूप धारण करना प्रारंभ कर दिया। उस दौर में ग्रेट ब्रिटेन ने अपने कुछ उपनिवेशों में स्वशासन की ठोस पहल शुरू कर दी थी, जिसमें विशेषकर आस्ट्रेलिया, ब्रिटिश उत्तरी अमेरिका (कनाडा) और अन्य क्षेत्र जो बाद में दक्षिण अफ्रीका कहलाने लगा। वर्ष 1910 और 1920 के दशकों में ये उपनिवेश वैदेशिक मामले में भी स्वतंत्रता की ओर तेजी से आगे बढ़ने लगे। समुद्र पार इन समुदायों की बढ़ती परिपक्वता और स्वतंत्रता ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्र संघ में इनकी व्यक्तिगत सदस्यता ने युनाइटेड किंगडम की तुलना में इनके पद और संबंधों को फिर से परिभाषित करने के लिए मजबूर कर दिया। वर्ष 1926 के साम्राज्यवादी सम्मेलन ने बेलफॉर फार्मूला अपनाया, जिसे स्वतंत्र उपनिवेशों (उस समय छह देश-आस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरे (आयरलैंड), न्युजीलैंड, न्युफाउंडलैंड और दक्षिण अफ्रीका संघ शामिल थे) तथा ब्रिटेन के बीच संबंधों को राष्ट्रमंडल के स्वतंत्र समुदायों के रूप में परिभाषित किया।
1947 में भारत और पाकिस्तान बने सदस्य
स्वतंत्र होने के बाद भारत और पाकिस्तान वर्ष 1947 में राष्ट्रमंडल के सदस्य बने, जबकि श्रीलंका (तत्कालीन सिलोन) वर्ष 1948 में सदस्य बना। यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि राष्ट्रमंडल के मूल सदस्यों के विपरीत, नए सदस्य देशों की जनसंख्या मूल रूप से गैर-यूरोपीय थी। कई नये सदस्यों ने उस समय गणतंत्रीय संरचना अपनाने की भी इच्छा जाहिर की और ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति अपनी निष्ठा को समाप्त कर दिया। इसके राष्ट्रमंडल को नये सिरे से परिभाषित करना जरूरी हो गया। वर्ष 1949 में फिर एक नई पद्धति की शुरुआत हुई जब भारत को गणतंत्र घोषित करने और राष्ट्रमंडल का पूर्ण सदस्य बने रहने की मंजूरी दी गई। उस समय राजा को स्वतंत्र सदस्य देशों के स्वतंत्र संघ के प्रतीक के तौर पर मान्यता प्रदान की गई। इसके चलते एक साझा राजमुकुट के प्रति निष्ठा की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया गया।
इसे भी पढ़ें: दुनिया में मरने वाला हर 13वां शख्स भारतीय, जानें आंकड़े
राष्ट्रमंडल के सदस्य देश
राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों में एंटीगुआ, बरबूदा, ऑस्ट्रेलिया, बहामास, भारत, पाकिस्तान, जमैका, केन्या, किरिबाती, बांग्लादेश, बारबाडोस, बेलिज, बोत्सवाना, बूनेई, ब्रिटेन, कैमरून, कनाडा, साइप्रस, डोमिनिका, फिजी द्वीप समूह, घाना, ग्रेनेडा, गुयाना, लिसोथो, मलावी, मलेशिया, मालदीव, माल्टा, मॉरीशस, मोजाम्बीक, नीमीबिया, नौरू, न्यूजीलैंड, नाइजीरिया, पापुआ न्यू गिनी, रवांडा, श्रीलंका, स्वाजीलैंड, तंजानिया, सेंट किट्स और नेविस, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइन्स, सामोआ, सिशेल्स, सियरा लियोन,, सिंगापुर, सोलोमन द्वीप समूह, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद, टोबैगो, तुवालु, युगांडा, वनुआतू और जाम्बिया शामिल हैं।
इसे भी पढ़ें: तुलसी: पौधा नहीं जीवन का अंग