Pauranik Katha: संत नामदेव बचपन में अपने ननिहाल में रहते थे, इनके नाना का नाम बामदेव था, जो ठाकुर जी के परम वैष्णो भक्त संत थे। बचपन में नामदेव काठ के खिलौनों एवं मिट्टी के खिलौनों से खेला करते थे, लेकिन इनका खेल, साधारण बच्चों की तरह नहीं था। नामदेव उन खिलौनों के साथ में जिस प्रकार से कोई भक्त पूजा करता है। भगवान को नहलाता है, उनका ध्यान करता है आसन देता है और फिर उनका भोग लगाता है। इसी प्रकार से यह खेला करते थे और अपने नाना को देखते थे कि नाना जो ठाकुर जी को दूध का भोग लगाते थे। वही दूध संत नामदेव को प्रसाद रूप में मिलता था।

नामदेव अपने नाना की भक्ति देखकर बचपन से ही बार-बार नानाजी से कहते थे कि नाना जी भगवान की सेवा मुझे दे दीजिए। नाना जी कहते थे ठीक है थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो दे दूंगा। इस प्रकार से कुछ दिन बीता तो एक दिन फिर नामदेव अपने नाना से अड़ गए और कहने लगे नानाजी अब तो मुझे ठाकुर जी की सेवा दे दीजिए। इस बात पर नाना जी ने कहा, नामदेव कुछ दिन बाद मुझे तीन दिन के लिए किसी गांव में किसी काम से मुझे जाना है। यदि तुम उन तीन दिनो में अच्छे से ठाकुर जी की सेवा की। उनको दूध का भोग लगाना और जो बचे तो स्वयं का भोग लगाना। यदि तुम अच्छे से तीन दिन सेवा कर लोगे, तो आने पर ठाकुर जी से पूछ कर तुम्हें हमेशा के लिए सेवा दे दूंगा।

इस प्रकार से समय बीतता गया। एक दिन वह समय आ गया जब नाना को उस गांव में जाना पड़ा। नाना जी ने कहा कि नामदेव अच्छे से भगवान की सेवा करना और दूध का भोग लगाना दूध भगवान को पिला देना। नामदेव जी, दो किलो दूध गर्म करते करते जब एक कटोरा दूध रह गया, तो उसमें मेवा, मिश्री इत्यादि मिलाकर के तुलसी पत्र का भोग लगाया और भगवान का पर्दा हटाकर ठाकुर जी के सामने कटोरा रख दिया। थोड़ी देर प्रभु से प्रार्थना करने लगे कि प्रभु आकर के भोग लगाइए, दूध रखा हुआ है प्रभु आकर दूध पीजिए। इस प्रकार थोड़ी देर बाद जब, पर्दा हटा कर देखा तो दूध का कटोरा वैसे का वैसे ही रखा है।

अब तो नामदेव को बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने सोचा कि हो सकता है कि मेरी श्रद्धा में कोई कमी रह गई हो, भगवान दूध नहीं पी रहे हैं। इस प्रकार से अगला दिन भी बीता। नामदेव बहुत ही दुखी हो गए, परंतु यह बात घर में किसी को बताया नहीं अपने मन के अंदर रखा। मन में खींचा तान चलती रही कि कल नाना जी का तीन दिन पूरा हो जाएगा। यदि भगवान ने दूध नहीं पिया, तो नानाजी आकर पूछेंगे तो फिर मुझे ठाकुर जी की सेवा नहीं मिल पाएगी।

इसी प्रकार से प्रातः काल तीसरा दिन हुआ तीसरे दिन नामदेव जी उठे भगवान का बढ़िया से श्रृंगार किया और फूल माला प्रभु को अर्पण करके बढ़िया दूध का कटोरा तैयार किया, और उसमें मिश्री और भगवान का तुलसी पत्र मिलाकर के सामने रखा। भगवान से कुछ देर प्रार्थना की, देखा कि कटोरा वैसे का वैसे रखा है। भगवान अभी दूध पीने के लिए नहीं आए, तभी उन्होंने आत्मसमर्पण करते हुए प्रभु के सामने, अपने हाथ में छूरी उठा ली और कहा- हे प्रभु यदि आज आप दूध नहीं पिएंगे तो मैं अपने प्राणों को स्वयं ही समाप्त कर दूंगा।

इतना कहकर ज्यों ही, अपनी गर्दन पर छुरी का प्रहार करना चाहा तुरंत ही ठाकुर जी प्रकट हो गए। ठाकुर जी ने छुरी को पकड़ लिया और नामदेव से कहा कि हम दूध पी रहे हैं आप ऐसा न करें। इस प्रकार भगवान ने नामदेव के हाथों से दूध पिया, अगले दिन नानाजी जब घर पर आए तो नानाजी ने सेवा के बारे में पूछा, तब नामदेव ने दूध पीने की भगवान की लीला को बताया। उनको विश्वास नहीं हुआ उन्होंने कहा यह मेरे सामने भगवान दूध पिए तो मैं मान लूंगा। अगले दिन प्रातः काल नामदेव ने इसी प्रकार से भगवान के सामने दूध रखा, परंतु भगवान दूध पीने के लिए नहीं आए। तब नामदेव ने भगवान से कहा कि कल मेरे सामने जब दूध पीकर गए तो आज क्यों नहीं आए मुझे झूठा बनाते हो। इतना कहकर के हाथ में छुरी उठा लिया और जैसे ही अपनी गर्दन पर चलाना चाहा तुरंत भगवान अपने दिव्य रूप में प्रकट हो गए।

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भगवान दूध का सारा कटोरा पीने ही वाले थे, तो नामदेव जी ने कहा प्रभु थोड़ा मेरे लिए भी छोड़ देना, क्योंकि बचपन से हम नाना जी के हाथ से आपका ही भोग लगाया दुग्ध पान करता आ रहा हूं। नामदेव के द्वारा नाना बामदेव को भगवान के दर्शन हुए और सभी भगवान के दर्शन करके कृतकृत्य हो गए। उसी दिन से नाना जी ने नामदेव को भक्ति समर्पित कर दी, अर्थात ठाकुर जी की सेवा दे दी।

शिक्षा:- इस प्रकार से संस्कार यदि आपके परिवार में या आपके नाना, नानी, मामा या आपके संपर्क में जिसके पास में बचपन से ही भगवान की कृपा भगवत भक्ति प्राप्त हो जाती है उसका जीवन धन्य हो जाता है। इस कथा के माध्यम से अपनी भक्ति को पुष्ट करें और आगे बढ़े, तथा जीवन के अपने अंतिम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करें।

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