कर्नाटक में जीत क्या मिली, कांग्रेस ऐसी उछल रही है, इस तरह का राजनीतिक संदेश दे रही है कि अब भाजपा और नरेन्द्र मोदी के पांव उखड़ ही गये हैं और देश की जनता कांग्रेस व राहुल गांधी को सत्ता सौंपने के लिए तैयार बैठी है? खुशी और खुशफहमी में बहुत बड़ा अंतर है। खुशी सकारात्मक होती है, लेकिन खुशफहमी नकरात्मक होती है, खुशी शक्ति में बढ़ोतरी करती है, आत्मविश्वास भरती है पर खुशफहमी विनाश और संहार के प्रतीक होते हैं, लक्ष्य के प्रति नकरात्मक सक्रियता की ओर ले जाती है। कांग्रेस अगर खुशी मनाती है तो यह एक अच्छी बात है, इससे कांग्रेस के अंदर आत्मविश्वास उत्पन्न होगा। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को जोश भरेगा, जनांकाक्षाएं पूरी करने के लिए प्रेरणा मिलेगी। कांग्रेस ने खुशी मनायी है, जमकर मनायी है, नाच-नाच कर खुशी मनायी है।
लेकिन कांग्रेस की खुशी सकारात्मक है क्या? कांग्रेस की खुशी में अहंकार है या नहीं? कांग्रेस की खुशी में नरेन्द्र मोदी और भाजपा को नीचा दिखाने की कोशिश है या नहीं? इन सभी प्रश्नों का उत्तर यह है कि कांग्रेस की खुशी में नकारात्मकता भरी पड़ी हुई है, अहंकार भरा पड़ा हुआ है और नीचा दिखाने की मानसिकता भी भरी हुई है। इस तरह की प्रवृति से कांग्रेस को लाभ तो नहीं होगा, बल्कि नुकसान ही होगा। हम यह भी कह सकते हैं कि इस तरह की प्रवृति से कांग्रेस को नुकसान ही होगा, कांग्रेस आत्मघात ही कर रही है। कर्नाटक की जीत कांग्रेस की अपनी हो सकती है, कांग्रेस दावा कर सकती है कि कर्नाटक की जनता ने उन्हें शासक के तौर पर स्वीकार किया है। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जनता ने उसे अपना शासन मान लिया? यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है। कर्नाटक पूरा देश नहीं है। विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के प्रश्न अलग-अलग होते हैं। कर्नाटक चुनाव परिणाम मात्र की कसौटी पर नरेन्द्र मोदी की शक्ति का परीक्षण और निष्कर्ष नहीं हो सकता है।
ये क्या, प्रियंका गांधी झटका देकर राहुल गांधी से हाथ क्यों छुड़ा रही है
भाई-बहन के बीच सब कुछ ठीक तो है ना ? pic.twitter.com/T308x6Vx9q— Sanjay Tirthwani (@TirthwaniSanjay) May 20, 2023
कांग्रेस अपना इतिहास क्यों नहीं देखना चाहती है? 2018 में कांग्रेस को तीन तीन राज्यों में जीत मिली थी। वह भी बड़े-बड़े प्रदेशों में कांग्रेस ने भाजपा को पराजित किया था, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ में भाजपा पराजित हुई थी। उस समय भी कांग्रेस बहुत उछली थी और इस तरह सें अहंकारी हो गयी थी कि उसके सामने भाजपा और नरेन्द्र मोदी का अब कोई अस्तित्व ही नहीं बची है। इसके साथ ही साथ वह संदेश दे रही थी कि 2019 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस फिर से सत्तासीन हो जायेगी और नरेन्द्र मोदी की सरकार का पतन हो ही जायेगा। यह सही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व एक साथ तीन-तीन राज्यों में हुई पराजय की कोई छोटी घटना नहीं थी, एक बहुत बड़ा राजनीतिक आघात था।
प्रोफेशनल राजनीतिक विश्लेषक भी यह मान चुके थे कि देश की राजनीतिक मानसिकता बदल चुकी है और देश की जनता नरेन्द्र मोदी के भाषण से उब चुकी है, सिर्फ भाषण से राशन नहीं मिलता है, राशन नहीं मिलेगा तो फिर रोटी भी नहीं मिलेगी, हिन्दुत्व से लोगों का पेट नहीं भरेगा, राममंदिर से रोजगार नहीं मिलेगा। इसके अलावा भी बहुत सारे अन्य प्रश्न भी खड़े किये गये थे जो सीधे तौर पर भाजपा के हिन्दुत्व के खिलाफ थे। भाजपा के हिन्दुत्व को सांप्रदायिकता करार दे दिया गया था। भारत एक लोकतांत्रित देश है और यहां पर धर्मनिरपेक्षता की हवा बहती है, इसलिए हिन्दुत्व की हवा बहुत दिनों तक चल नहीं सकती है, हिन्दुत्व की हवा 2019 के लोकसभा चुनावों तक ठहर जायेगी।
कांग्रेस के पास आत्मघाती और जिहादी संस्कृति के सलाहकारों की कोई कमी नहीं है। मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट मानसिकता के सलाहकारों ने कांग्रेस में अहंकार भर दिया था, कांग्रेस में खुशफहमी भर दी थी कि हिन्दुत्व को निशाना बनाओ, हिन्दुत्व की खिल्ली उड़ाओ, हिन्दुत्व को सांप्रदायिक घोषित कर दो, तो फिर नरेन्द्र मोदी की सरकार का पतन होना निश्चित है। जनता धर्मनिरपेक्षता के प्रति गोलबंदी दिखायेगी, नेहरू-इंदिरा गांधी की धर्मनिरपेक्षता अब भी भारत की जनता के सिर पर चढ़ कर बोलती है। मोदी का हिन्दुत्व तो एक बुलबुला मात्र था, बुलबुले में शक्ति तो क्षनिक होती है।
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जबकि सच्चाई यह थी कि 2018 के राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में स्थानीय स्तर के प्रश्न थे जिनके आधार पर भाजपा की पराजय हुई थी। राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की व्यक्तिगत पराजय था, ये तीनों शासकों के लिए हिन्दुत्व कोई खास चिंतन आधार नहीं रहा है, ये धर्मनिरपेक्षता नामक कीटाणु के शिकार रहे हैं और प्रशासनिक तौर पर भी कड़क नहीं रहे थे। स्थानीय जनता अधिकारियों की तानाशाही रवैये और भ्रष्टचार से परेशान थी, जिसकी सजा वसुधंरा राजे, शिवराज चौहान, रमन सिंह को मिली थीं। इसमें नरेन्द्र मोदी की सरकार के खिलाफ जनमत की कोई बात ही नहीं थी।
इसका प्रमाण बहुत ही जल्द मिल गया था। नरेन्द्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में रंगदारी दिखायी, डंके की चोट पर चुनाव जीत गए। नरेन्द्र मोदी ने कोई धर्मनिरपेक्षता नहीं दिखायी, कोई भाईचारा का रट नहीं लगाया, उसने कोई तुष्टिकरण नहीं की, उसने मुस्लिम आबादी से कोई वायदा नहीं किया, उसने सिर्फ इतना कहा था कि मैं शासन में कोई भेदभाव नहीं करता, मेरे लिए हिन्दू, मुस्लिम एक सामान हैं, सबका साथ और सबका विकास हमारी नीति है। भारत की जनता ने नरेन्द्र मोदी पर विश्वास जतायी। मुस्लिम वोट नरेन्द्र मोदी को नहीं मिला। यह भी भ्रम टूट गया कि भारत की सत्ता मुस्लिम आबादी ही बनाती है और बिगाड़ती है। 2019 ही नहीं बल्कि 2014 में भी मुस्लिम आबादी के भ्रम को मोदी ने तोड़कर सरकार बनायी थी और पूर्ण बहुमत भी पायी थी।
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कांग्रेस 2018 के उदाहरण का याद क्यों नहीं कर रही है? 2018 की भूल को सुधारना क्यों नहीं चाहती है। कांग्रेस अपनी आत्मघाती भूल को फिर से दोहरा रही है। फिर से वह वैसी ही गलती को दोहरा रही है जो उसने 2018 में की थी। फिर से हिन्दुत्व को निशाना बना रही है कांग्रेस। हिन्दुत्व के प्रश्न पर ही भाजपा फिर से जिंदा हुई, सिर्फ जिंदा ही नहीं हुई बल्कि देश की सत्ता पर सत्तासीन भी हुई और सिर्फ एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार पूर्ण बहुमत भी पायी है। अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में एक तरह से भाजपा का दाह संस्कार ही कर दिया था। वाजपेयी की धर्मनिरपेक्षता और मुस्लिम प्रेम ने भाजपा को जर्जर कर दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी की दो करोड़ मुस्लिम टीचर नियुक्त करने की घोषणा और लालकृष्ण आडवाणी की जिन्ना प्रेम की कहानी ने भाजपा की जड़ों में मट्ठा डाल दिया था। अगर कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी नहीं लाती और हिन्दुओं को आतंकवादी नहीं कहती तो फिर भाजपा कभी भी सत्ता में वापसी नहीं करती। निश्चित तौर पर कांग्रेस की हिन्दुत्व के खिलाफ करतूतों पर बैठ कर ही नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने।
कर्नाटक में भाजपा की पराजय के बाद जिस तरह से कांग्रेस अंहकार में भरी हुई है, बेलगाम बयानबाजी कर रही है। मुस्लिम संगठन जिस तरह से बेलगाम होकर मांगे रख रहे हैं और कर्नाटक की जीत को इस्लाम की जीत घोषित किया जा रहा है, उसके राजनीतिक संदेश काफी जहरीले हैं। कर्नाटक में पाकिस्तान जिंदाबाद के भी नारे सरेआम लगे हैं, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे कोई छिप कर नहीं लगाये गये हैं, बल्कि सरेआम लगाये गये हैं। ऐसी धूर्तता पर लगाम लगनी ही चाहिए। ऐसी मानसिकता सीधे तौर देशद्रोह को ही बढ़ावा देती है। ऐसी मानसिकता का दमन जरूरी है। भारत में रह कर कोई आबादी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये, यह सिर्फ भारत में ही हो सकता है, ऐसी आबादी को दूसरे देश में सीधे तौर पर देश द्रोही घोषित कर जेलों में डाल दिया जाता, लेकिन कांग्रेस अपने जन्मकाल से ही ऐसी मानसिकता पर उदासीनता बरतती रही है। इसका दुष्प्रपरिणाम देश की एकता और अखंडता पर पड़ता है। इसका उदाहरण कश्मीर है।
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कांग्रेस ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर पहले ही आत्मघाती नीति अपना चुकी है। कर्नाटक जीत पर संयम बरतने की जरूरत थी। कांग्रेस संयम बरत नहीं रही है। अगर मुस्लिम आबादी अराजक होकर सक्रियता दिखाती है तो यह कांग्रेस के लिए भी हानिकारक है। भाजपा कांग्रेस को हिन्दू विरोधी घोषित करने की सक्रियता पर चल ही रही है। इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी फिर से तीसरी बार सत्ता में आकर कांग्रेस के भविष्य पर कुठाराघात भी कर सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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