ज्येष्ठ मास रीती सरिताएँ,
रीते मन के क्षोभित कोने!
सुलग रही हैं दसों दिशाएँ,
चली चंचला उतान सोने!!
ठुमुक-ठुमुककर बत्तखों जैसी,
चाल भवानी की मतवाली!
गदरानी कुम्हलाती बाँहें,
कमसिन है पर दिखती आली!!
लाल आलता पाँव परा है,
चला जा रहा किस्मत खोने…
सुलग रही हैं दसों दिशाएँ,
चली चंचला उतान सोने!! (१)
विंध्य की छाती रौंद रही वो,
पाठा पाँव बढ़ाये जाये!
एक छुटंकी संग लियो है,
गोया, जैसे उसकी धाय!!
राजकुमारी सी बलखाती,
जा रही जोगन ख़ुशियाँ बोने…
सुलग रही हैं दसों दिशाएँ,
चली चंचला उतान सोने!! (२)
लाल-अँगरखा पूरा-पूरा,
सिर पर टोपरा भूरा-भूरा!
भूरे टोपर पर जो धन है
चार-ठो चोंथी, नहीं अधूरा!!
क्या कहने हैं दृश्य निराला,
अभी-अभी ही चाँद झरा है!
उस चपला का मुख तो देखो,
मानों कुल महताब धरा है!!
विस्तृत खेतों में इक कुल है,
गोबरधन का ढेर विपुल है!
चपला ने इत-उत नहिं देखा,
उस पर लाकर तसला फेंका!!
धाय उठाकर तसले को निज
कटि-प्रदेश में जकड़ा।
राजकुमारी राजतरंगिणी
देखो अपनी सुध में!
चित्त परी खेतन में ऐसे,
भाड़ में झाये लफ़ड़ा!!
आज सुहावन दृश्य है कैसा!
मिट्टी में ख़ुशियाँ हैं सारी।
गोबरधन में धूर मिली जो,
धूर भी सोना हो गई सारी!!
मिट्टी में जो चित्त परा है,
चित्त सकल कुल देह भरा है!
हे! हे चंचला!! धन्य हो तेरा,
तुझसे जीवन पाठ पढ़ा है!!
छोड़ सकल मिथ्या सुख साधन,
क्या पाने-क्या खोने!
मइया की गोदी में मंगल
चला-मैं उतान सोने!!
इसे भी पढ़ें: ओ मुसाफिर अनवरत चलना पड़ेगा