Sanjay Sherpuria
संजय शेरपुरिया

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (world environment day) मनाया जाता है। पर्यावरण आज के समय का एक प्रज्वलित विषय है, जिसका असर हर मनुष्य पर, मनुष्य की हर गतिविधि पर, और मनुष्य के हर पहलु पर पड़ता है। पर्यावरण हमारे जीवन के एक अभिन्न अंग है। पर्यावरण और मानव जाति का सम्बन्ध काफी गहरा है, क्योंकि मानव अपने भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यावरण पर निर्भर है। सभी मानव, जीव-जंतु, वनस्पतियां, पेड़ -पौधे, जलवायु, मौसम सभी पर्यावरण में ही समाहित है। जलवायु में संतुलन बनाये रखने और जीवन के लिए जरूरी चीजें उपलब्ध कराने का काम पर्यावरण करता है, इसलिए पर्यावरण की वास्तविकता को बनाये रखना जरूरी है। पेड़-पौधे हरियाली से ही हमारे मन का तनाव दूर होता है। यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करने में मदद करती है।

भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि उनका वास हर पेड़-पौधे में है, इसलिए तो हमारी भारतीय संस्कृति “वृक्ष में वासुदेव” की भावना को स्वीकार करती है और एक पौधे को अपने बच्चे जैसा प्यार और सम्मान देती है। पेड़ हमें छांव भी देते हैं, फल-फूल भी देते हैं, शुद्ध हवा या ऑक्सीजन भी प्रदान करते हैं। इसके अलावा पेड़ बाहरी वातावरण के असर से हमें बचाता है, पीने का पानी स्वच्छ करता है एवं विविध प्रकार की औषधि देकर हमारा जीवन भी सुरक्षित करता है। इसलिए हर आँगन में, हर गली में, हर रास्ते पर, हर गाँव में और हर शहर में ज्यादा से ज्यादा पेड़ का होना अत्यंत जरूरी है।

इसके अभाव में मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसलिए भौतिक सुख-सुविधाओं को हासिल करने के लिए मनुष्य को प्रकृति का जरूरत से ज्यादा दोहन नहीं करना चाहिए। वायु, जल, आकाश, अग्नि और भूमि ये पांच तत्व है जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है। यह हमें एक माँ के जैसा स्वास्थ्य और सुख देते हैं। पर्यावरण मानव के विचारों तथा चिंतन धारा, संस्कृति एवं व्यवहार को भी प्रभावित करती है। संसाधन की उपलब्धता मुख्यतः पर्यावरण पर ही निर्भर है। पर्यावरण की विभिन्न दशाओं में विभिन्न प्रकार के संसाधन पाए जाते है, जो मनुष्य के जीवन और कार्यों को प्रभावित करते है। जैसे मध्य पूर्व में तेल का अपार भंडार है तो छोटा नागपुर का पठारी क्षेत्र खनिज संसाधन के लिए प्रसिद्ध है।

मनुष्य का पर्यावरण से सम्बन्ध काफी गहरा है, और इनका अस्तित्व ही पर्यावरण पर टिका हुआ है। इसलिए मनुष्य एक तरफ पर्यावरण की रक्षा की बात करता है तो दूसरी ओर सुख सुविधाओं के लालच में पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचाता है। विकास एवं आधुनिकीकरण के नाम पर अविवेकपूर्ण दोहन और उपभोग के चलते प्राकृतिक व्यवस्था पर ही संकट खड़ा हो गया है। आज पर्यावरण का संकट इसलिए भी पैदा हो गया है कि जनसंख्या वृद्धि भी तेजी से हो रही है और यह विकराल रूप धारण करती जा रही है। साथ ही लोगों को सुविधायें मुहैया करने के लिए सरकार और लोग ज्यादा से ज्यादा फैक्ट्रियां और इंडस्ट्रियल एरिया विकसित कर रहे हैं। लोग नई-नई कारें और यातायात के नये-नये साधन और सुविधा तो जुटा ले रहे हैं पर वे भूल जाते है कि इसके बदले में वे पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं।

आज वनों को काट कर सड़क और इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। इससे शहरी जीवन शैली तो विकसित हो गई है, पर खामियाजे के रूप में वायु प्रदुषण, जल प्रदूषण, धवनि प्रदुषण आदि सामने आ खड़े हुए हैं। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी को काफी बढ़़ावा दिया जा रहा है पर इससे प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। आज इसकी वजह से पर्यावरण के लिए काफी बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। धरती का तापमान बढ़ने लगा है। वायुमंडल प्रभावित होने से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या पैदा हो गई है, जिससे मानव जीवन ही खतरे में पड़ गया है। इन सभी चीजों को तभी ठीक किया जा सकता है। जब हम लोग अपने पर्यावरण पर, पेड़-पौधे लगाने पर अपना ध्यान केन्द्रित करें और उसे अपने जीवन की एक मुहीम बना लें।

देश में पर्यावरण की रक्षा के लिए कई एजेंसियां काम कर रही है जैसे सीपीसीबी और एसपीसीबी जो क्रमशः केंद्र और राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण के लिए पूरी तरह से समर्पित है। इसके आलावा एनजीटी जैसे ट्रिब्यूनल भी पर्यावरण के मानकों और निर्धारित मानदंडों को पूरा कराने के लिए प्रतिबद्ध है। हाल ही में एनजीटी के आदेश पर पूरे देश में फॉर्मल्डिहाइड की वैसी इकाइयां जिनके पास पर्यावरण मंजूरी नहीं थी उन्हें बंद करने के आदेश दिए, जिससे सम्बंधित उद्योगों में हड़कंप मच गया।

भारत में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत सरकार के केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रम, प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण की उप-योजनाओं, हरित भारत मिशन और राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, राष्ट्रीय तटीय प्रबंधन कार्यक्रम, जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन को लागू किया। ये योजनाएं पर्यावरण के संरक्षण और विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के व्यावहारिक विकास के लिए सुधारात्मक उपायों के रूप में कार्य करती हैं। मंत्रालय संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) के कार्यान्वयन की निगरानी भी करता है और कन्वेंशन की गतिविधियों और अन्य दायित्वों को पूरा करता रहा है।

केंद्रीय योजनाओं के तहत भारत सरकार की ओर से शत-प्रतिशत वित्त पोषण किया जाता है। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत 2015-16 से संशोधित वित्त पोषण पैटर्न के अनुसार, शेष भारत के लिए भारत सरकार का हिस्सा 50 प्रतिशत और पूर्वोत्तर राज्यों और 3 हिमालयी राज्यों यानी जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के लिए 80 प्रतिशत है। वानिकी और वन्य जीवन से संबंधित योजनाओं में शेष भारत के लिए भारत सरकार का हिस्सा 60 प्रतिशत और पूर्वोत्तर राज्यों और 3 हिमालयी राज्यों के संबंध में 90 प्रतिशत है।

वुड पैनल इंडस्ट्री जो सीधे तौर पर वन पर्यावरण से जुड़ा है उसे आज से 25 साल पहले जो पूरी तरह वनों पर निर्भर था उसे न्यायलय के आदेश से एग्रो फोरस्ट्री पर स्थान्तरित कर दिया गया। आज सरकार और इस उद्योग के विकास के लिए एग्रो फॉरेस्टरी को बढ़ावा देने के लिए काफी प्रयास कर रही है। साथ ही देश की वन संसाधनों की रक्षा के लिए वुड पैनल और फर्नीचर इंडस्ट्री की निर्भरता टिम्बर इम्पोर्ट पर बढ़ती जा रही है।

पर्यावरण ऐसा रत्न है जिसके प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना बहुत आवश्यक है। पर्यावरण के सही रख-रखाव और देखभाल करने की जरूरत है। संसाधनों का सही उपयोग जरूरी है। पर्यावरण ज्यादा कुछ नहीं मांगती बस हरियाली बरकरार रहें। इसके लिए पेड़ लगाना जरूरी है, क्योंकि वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करता है, साथ ही यह पक्षियों और कई पशुओं का निवास स्थान है। पर्यावरण के सही रखरखाव से हम वातावरण को सतत रूप से बनाये रख सकते हैं। आज स्थानीय स्तर पर केंद्र और राज्य सरकार और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण की सुरक्षा के लिए काफी प्रयासरत है और जागरूकता के कार्यक्रम चला रहे हैं। इनमें से एक पर्यावरण दिवस भी है जिसे पूरी गंभीरता से पूरे विश्व में मनाया जाता है और पर्यावरण की रक्षा के लिए संकल्प लिया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस, जो पूरी दुनिया में हर साल 5 जून को मनाया जाता है, प्रकृति के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा आयोजित सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है। यह लोगों को यह बताने के लिए मनाया जाता है कि, प्रकृति का उसके मूल्यों के लिए सम्मान किया जाना चाहिए।

1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के पहले दिन पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना की। दो साल बाद 1974 में इसे पहली बार अमेरिका में मनाया गया। पहले विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘ओनली वन अर्थ‘ थी। 1987 में, इन गतिविधियों के केंद्र को एक देश से दूसरे देश में रखने का विचार शुरू हुआ ताकि विभिन्न देशों को इसके आयोजन की मेजबानी करने का अवसर मिल सके। तब से, विभिन्न मेजबान देश इसे मना रहे हैं। साल 2021 में विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘रीइमेजिन, रिक्रिएट, रिस्टोर’ थी क्योंकि वर्ष 2021 पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र के दशक की शुरुआत का प्रतीक है।

इसे भी पढ़ें: तेज हवाओं के साथ हो सकती है बारिश

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के सहयोग से, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के महत्व को उजागर करने के लिए ग्लोबल होस्ट ऑफ दी डे मनाया गया। इस आयोजन में सालाना 143 से अधिक देशों की भागीदारी होती है। ‘इकोसिस्टम रेस्टोरेशन’ शब्द का अर्थ पारिस्थितिक तंत्र की बहाली में सहायता करना है, जिसे वनों की कटाई, प्रदूषण और अन्य मानवीय गतिविधियों से नुकसान पहुंचाया गया है। पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के उपाय करके भी इसे बढ़ावा दिया जा सकता है जो अभी भी जारी है।

पारिस्थितिक तंत्र की बहाली अन्य तरीकों से की जा सकती है, जिसमें पेड़ लगाना, शहरों को हरा-भरा करना, आहार बदलना या नदियों और तटों की सफाई करना और बगीचों को फिर से बनाना शामिल हैं। समृद्ध जैव विविधता और हरित पारिस्थितिक तंत्र अत्यधिक लाभ प्रदान करते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पूरी दुनिया के 70 से अधिक देशों द्वारा रेस्टोरेशन के कार्यों के प्रस्ताव के बाद पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक की घोषणा की है। संयुक्त राष्ट्र का दशक 2021 से 2030 तक चलता रहेगा, जो कि सतत विकास के लक्ष्यों की समय सीमा भी है और इसकी समय रेखा वैज्ञानिकों ने विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अंतिम अवसर के रूप में पहचान की है।

इसे भी पढ़ें: ‘नैरेटिव’ से ज्यादा जरूरी है ‘सच’

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यह दिन हमें पर्यावरण को संरक्षित और बढ़ाने में समुदायों, उद्यमों और व्यक्तियों द्वारा एक प्रबुद्ध राय और जिम्मेदार आचरण के आधार को व्यापक बनाने का अवसर देता है। पर्यावरण ने मानव जाति को जो कुछ भी दिया है उसका सम्मान करना और उसकी रक्षा करना ही हम सब व्यक्तियों का कर्तव्य है। पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ उपाय और सरकारी संस्थाओं द्वारा इसका कड़ाई से पालन करना आवश्यक है जैसे उद्योग से निकलने वाला दूषित पदार्थ और धुंए का सही तरीके से निपटान करना चाहिए या इसकी रिसाइकिलिंग कि जानी चाहिए।

पर्यावरण हमारे लिए अनमोल है इसलिए इसकी सुंदरता बढ़ाने के लिए हमें साफ-सफाई का भी बहुत ध्यान रखना चाहिए। पेड़ों का महत्व समझ कर हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना चाहिए। घने वृक्ष वातावरण को शुद्ध रखते हैं और हमें छाया प्रदान करते हैं, इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगानी चाहिए। वाहनों का इस्तेमाल बेहद जरूरत के समय ही किया जाना चाहिए। दूषित और जहरीले पदार्थों को निपटाने के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए। लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।

प्रकृति के संपर्क में रहना फायदेमंद है और जीवित प्राणियों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण भी है। अब प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है। भारत सरकार ने प्रकृति के संरक्षण में उभरती गिरावट का मुकाबला करने के लिए काफी उल्लेखनीय काम किया है। लेकिन हमें अभी भी एक लंबा सफर तय करना है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। यह पर्यावरण संतुलन के लिए ही बनाया गया एक उपक्रम है। इस तरह हमें अपने पर्यावरण को बचाना चाहिए। लोगों को पर्यावरण का महत्व समझाना चाहिए। स्वच्छ पर्यावरण शांतिपूर्ण और स्वास्थ्य जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक है।

इसे भी पढ़ें: संजय शेरपुरिया को जीनियस लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड

पर्यावरण हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है ओर इसके लिए सिर्फ बाते करना और योजनाए बनाना अच्छी बात नहीं है, बल्कि इसके लिए हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी ओर इसके लिए काम करना होगा ।हर व्यक्ति को 5 से 10 पौधे अपने घर के आँगन में, अपनी गली या सोसायटी में लगाना होगा और उसका जतन भी करना होगा। आज कोरोना महामारी के इस भयावह समय में हम सभी को ऑक्सीजन का महत्व और इसकी कीमत नजर आ गई है। पेड़-पौधे हमें बिना किसी भी मूल्य के शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, इसलिए हमें भी उनका सम्मान करना चाहिए। मनुष्य जीवन के स्वास्थ्य का आधार पेड़-पौधे हैं, इसलिए कृपया उसको ज्यादा से ज्यादा लगाए, उसकी पूजा करें और जतन करें। यह कार्य सिर्फ सरकार का नहीं है, बल्कि जन-भागीदारी का भी कार्य है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

Spread the news