प्रदीप उपाध्याय
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की चुनावी पहेली लगातार उलझती ही चली जा रही है। सपा और भाजपा गठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला है, लेकिन बसपा और कांग्रेस को सिरे से नकार दिया जाना एकदम सही नहीं रहेगा। अखिलेश मैनपुरी के करहल सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। सीएम योगी की बात तो कुछ हद तक ठीक है, लेकिन चंद्रशेखर रावण क्या सोच समझ कर गोरखपुर पहुंच गए, पुरबिया लोग पश्चिम की राजनीति नहीं समझते। वैसे अखिलेश से हाथ न मिलाकर रावण ने गलती की। हवा का रुख नहीं भांप सके वह। यही गलती अपर्णा यादव ने भी की। भाजपाई अखिलेश और सपा को चिढ़ाने के लिए अपर्णा को आगे करेंगे। वैसे भी मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधु होने के अलावा उनकी क्या खासियत है। परिवार में रहतीं तो आसानी से समायोजन हो जाता। अखिलेश यादव पर भी दबाव बना रहता अब तो दोनोें भाइयों में और तकरार बढ़ेगी। पहले से भी इनके बीच खास रिश्ते नहीं हैं। अकेली अपर्णा ही नहीं मुलायम सिंह यादव के दो और रिश्तेदार भाजपा में चले गए हैं।
भाजपा अगर साम्प्रदायिक कार्ड न खेल पाई तो उसकी लुटिया डूब जाएगी, माना अमित शाह एक बार तुरुप चाल चल गए, लेकिन इस बार तो बाजी पलट गई है। चुनाव आयोग की तरफ से जो पाबन्दियां लगाई गई हैं, उसमें रैली, रोड शो व नुक्कड सभाओं की गुंजाइश नहीं बची। भाजपा को उसकी ट्रोल आर्मी और मीडिया वैसे ही जितवा रहे हैं, जैसे 2012 में बहन को जितवा रहे थे। हकीकत तो यह है कि भाजपा प्रत्याशी व उनके समर्थकों को जनता गांवों में नहीं घुसने दे रही है। अखिलेश चुन चुन कर ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं जो जनता को अपील कर रहे हैं। किसानोें को एमएसपी, पुरानी पेंशन योजना की बहाली, तीन सौ यूनिट बिजली मुफ़्त, नौजवानों और महिलाओं के लिए भी बहुत कुछ।
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सबसे दिलचस्प बात यह है कि सपा के समर्थक उत्साहित हैं और बदलाव की उम्मीद के साथ मैदान में आ डटे हैं, जबकि भाजपा हलकान है, उसका हर दांव खाली जा रहा है। सत्ता विरोधी रुझान अलग से है। अंदरूनी मामला चाहे जो हो मोदी बनाम योगी की लड़ाई खेल बिगाड़ रही है, संघ परिवार भी इन प्रतिकूल परिस्थितियों से निपट नहीं पा रहा है। उत्तर प्रदेश का चुनाव अगर भाजपा के हाथ से निकल गया तो देश भर में उसके खिलाफ जो माहौल बनेगा, दो हजार चौबीस की लड़ाई बेहद कठिन हो जाएगी। यह बात पीएम मोदी से बेहतरीन और कौन समझ सकता है।
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