Kavita: ज्यों निकल कर बादलों की गोद से

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी, सोचने फिर-फिर यही जी में लगी आह क्यों घर छोड़ कर मैं यूँ कढ़ी। दैव मेरे…

Kavita: नदियों की दुर्गति से समझें

है शरीर यदि स्वस्थ्य हमारा, हम कुछ भी कर सकते हैंI कोई असम्भव कार्य नहीं है, ऊंची उड़ान भर सकते हैं।। स्वस्थ शरीर के लिए चाहिए, नस नाड़ी सब स्वस्थ्…

Kavita: हारे हुए लोग कहाँ जायेंगे?

हारे हुए लोग कहाँ जायेंगे? हारे हुए लोगों के लिए कौन दुनिया बसाएगा? उन पराजित योद्धाओं के लिए, तमाम शिकस्त खाए लोगों के लिए। प्रेम में टूटे हुए लोग, सारी…

Kavita: लें राणा का संकल्प

जिसके जीवन में राष्ट्र प्रथम, जिसके उर में था पला ताप। क्षण-क्षण राष्ट्र समर्पित था जो, रण बांकुरा अमर राणा प्रताप।। सब सुविधाएं त्याग जो बढ़ा, झुका न टूटा कभी…

Poem: सबसे भारी क्या है?

सबसे भारी क्या है? पर्वत पहाड़ या दर्द से भारी मन, नहीं! सबसे भारी है माथे का वो घूंघट जिसमें संस्करों के नाम पर पिघल जाती हैं कितनी ही कलाएँ,…

Poetry: पुनरोदय का समय आ गया

पुनरोदय का समय आ गया, आओ मिल कर दीप जलाएं। लेकर संकल्प सिद्धि कर पूरी, स्वाभिमान का भाव जगाएं।। जो कुछ छूटा वह सब पायें, जो हुए दूर उनको अपनाएं।…

Poem: जाग रहा भारत फ़िर से

जाग रहा भारत फ़िर से हम जागें, कर पायें सद कर्म प्रभु से यह मांगें। पावन अतीत की थाती का गौरव ले, स्वर्णिम भवितव्य रचायें भ्रम भागें।। गति में मन…

Kavita: माँ सुबह का सूरज होती है

माँ भोर में उठती है कि माँ के उठने से भोर होती है ये हम कभी नहीं जान पाये। बरामदे के घोसले में बच्चों संग चहचहाती गौरैया माँ को जगाती…

Poem: लो मैंने तुम्हें मार दिया

बहुत-सी प्रेम कहानियाँ मर जाती हैं जातियों के तले दबकर, जातियाँ हँसती हैं और खिलखिला कर कहती हैं “लो मैंने तुम्हें मार दिया” और प्रेम अपनी आख़िरी साँस तक एक…