Poem: जाग रहा भारत फ़िर से
जाग रहा भारत फ़िर से हम जागें, कर पायें सद कर्म प्रभु से यह मांगें। पावन अतीत की थाती का गौरव ले, स्वर्णिम भवितव्य रचायें भ्रम भागें।। गति में मन…
जाग रहा भारत फ़िर से हम जागें, कर पायें सद कर्म प्रभु से यह मांगें। पावन अतीत की थाती का गौरव ले, स्वर्णिम भवितव्य रचायें भ्रम भागें।। गति में मन…
खड़े रहना उनकी मजबूरी नहीं रही बस उन्हें कहा गया हर बार चलो तुम तो लड़के हो खड़े हो जाओ छोटी-छोटी बातों पर वे खड़े रहे कक्षा के बाहर… स्कूल…
किसी चीज़ में डूबो तो ऐसे डूबो कि डूबना भी सुन्दर दिखे किसी चीज के साथ खेलो तो ऐसे खेलो कि खेलना भी सार्थक लगे किसी के साथ साझा करो…
अचानक किसी दिन कविता के साए मंडराने लगते देह के अज्ञात में तब वह अज्ञात सी जेहन में पुकार लगाती, दस्तक देती फिर एक आवाज़ गूंजती कठफोड़वे की ठक ठक…
‘भा’रत भारत पुनः खड़ा हो, स्वामी विवेकानन्द ने बोला था। स्वर्णिम अतीत को जानेंगे सब, नव स्वाभिमान पथ खोला था।। झंझावातों में बढ़ हम सब ने, है कटक पथ की…
मेघ जब बागन में बरसें, ताल में जीवन रस भर दे। मयूरी नाचे वन उपवन, मेघ जब मोतिन सा बरसे। मिटे तब धरती माँ की प्यास, पुराये गंगा की तब…