अरबिन्द शर्मा (अजनवी)
अरबिन्द शर्मा (अजनवी)

मन में उमंग अति हर्ष लिये।
आया बसंत नव वर्ष लिये।।
हरी भरी प्राकृति गोंद।
चिड़ियों की चहचह हास्य विनोद।।

संवरी वसुधा अनगिनत रंग।
हस रहे पुष्प भौरों के संघ।।
पेड़ों से उड़ते पुष्पराग।
गा रही कोकिला मधुर राग।।

उच्छृंखल झरनों की श्वेत धार।
सरिता व्याकुल संगम विचार।।
सागर मिलन विमर्श लिये।
आया बसंत नव वर्ष लिये।।

हरे भरे खलिहान खेत।
घांसो पर ओंस की, बूँद श्वेत।।
खिल गये फूल यह आस लिये।
अलि के चुम्बन की प्यास लिये।।

चंचल मन चकोर बन ताके।
चाँद कहीं बदली से झाँके।।
मंद पवन अब डोल रहा है।
प्रीत ह्रदय में घोल रहा है।।

विरह सताए प्रेयसी मन को।
ढूंढ़ रही आंखें प्रियतम को।।
आस मिलन उत्कर्ष लिये।
आया बसंत नव वर्ष लिये।।

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