रविंद्र प्रसाद मिश्र
Samajwadi Party: ‘जो तार से निकली है, वो धुन सबने सुनी है। मगर जो साज पर गुजरी है, उसे किसने जाना है।’ (Samajwadi Party) सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनके जाने का गम न सिर्फ पार्टी व परिवार में दिख रहा है, बल्कि उन्हें चाहने वालों को भी पता है कि उन्होंने एक अच्छा साथी, संरक्षक व अभिभावक खो दिया है। नेताजी के अंतिम दर्शन में चाहने वालों की उमड़ी भीड़ ने यह बता दिया कि मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) जन जन के नेता था। वह राजनीति के ऐसे पुरोधा थे, जिन्हें सदियों तक याद किया जाएगा। अपनों का कैसे ख्याल रखा जाता है, इसे मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) से सीखा जा सकता है। उनका परिवार प्रदेश के सबसे बड़ा कुनबा माना जाता है। आपसी मतभेद के बावजूद परिवार का हर सदस्य नेताजी का सम्मान करता था।
मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) वह शख्सियत बने जो अपनी बदौलत न सिर्फ समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को खड़ा किया, बल्कि देश के सबसे बड़े सूबे के तीन बार मुख्यमंत्री भी चुने गए। देश के रक्षा मंत्री भी चुने गए। अपने जीते जी बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया। लेकिन समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में अखिलेश (Akhilesh Yadav) राज आने के बाद हालात काफी नाजुक हो गए। पार्टी की नींव माने जाने वाले चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) को जहां अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने बाहर का रास्ता दिखा दिया, वहीं पार्टी में गुटबाजी भी तेज हो गई। इन सबके बावजूद भी मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के सामने किसी में तेवर दिखाने की कुबत नहीं दिखी।
क्या हाशिए की राजनीति से ऊपर उठेंगे शिवपाल (Shivpal Yadav)
चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) बनाने के बावजूद भी दिल से समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को दोबारा उत्तर प्रदेश की सत्ता में लाने के लिए यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में जी तोड़ मेहनत भी की। बावजूद इसके चुनाव नतीजे आने के बाद उन्हें फिर से हाशिये पर कर दिया गया। शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) के साथ अखिलेश यादव के इस व्यवहार से उनके समर्थकों को तगड़ा झटका लगा, लेकिन नेताजी के सम्मान में किसी नेता ने इसका विरोध करने की हिमाकत नहीं की।
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अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के सामने कड़ी चुनौती
पार्टी सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अब विरोध की आग धंधक सकती है। जो नेता अपमान सहने के बाद भी पार्टी में जुड़े रहे वह अब अपना तेवर दिखा सकते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प हो गया कि पार्टी में बन रही परिस्थिति से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) किस तरह पार पाते हैं। अखिलेश यादव का अंदाज पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को लंबे समय से अखर रहा था। राजनीतिक विशलेषकों की मानें तो मुलायम सिंह के साथ उनके समाजवाद का भी अंत हो चुका है।
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नये समाजवाद की सुगबुगाहट
ऐसे में माना जा रहा है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व में नये समाजवाद का उदय होगा। क्योंकि उनके सामने परिवार को साधने के साथ पार्टी के दिग्गज नेताओं को साधने की बड़ी चुनौती है। हालांकि नेताजी के निधन के बाद चाचा शिवपाल के रुख में नरमी देखी जा रही है। एकबार फिर वह अभिभावक के रूप में अखिलेश यादव के साथ सबकुछ संभालने की भूमिका में नजर आ रहे है। उन्होंने साफ कर दिया है कि पार्टी को संभालने के लिए उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी जाएगी उसका वह निर्वाहन करेंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) क्या उन्हें पार्टी में तवज्जों देंगे या फिर खुद के नेतृत्व में पार्टी को संभालेंगे।
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