उत्तराखंड। उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने के बाद मलबा जमा होने के कारण ऋषिगंगा नदी की ऊपरी धारा में बहाव रुक गया है। बहाव थमने के चलते नदी के पानी ने झील की शक्ल ले ली है। लगातार पानी के बढ़ते दबाव के कारण अगर झील टूटी तो पहाड़ों से पानी काफी रफ्तार से नीचे आएगा, जो निचले इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो राहत कार्य भी प्रभावित होगा।

मौके पर पहुंचे वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार चूंकि, जमा पानी का रंग नीला दिखाई दे रहा है। इसलिए हो सकता है कि यह पानी काफी पुराना हो और ऋषिगंगा की ऊपरी धारा में इस तरह की पहले से कोई झील हो। अगर ऐसा है तो यह बहुत चिंता की बात नहीं है। वहीं अगर मलबा और गाद जमा होने के कारण ऋषिगंगा का प्रवाह रुका है तो इसका मतलब है कि नदी का पानी कहीं न कहीं इकट्‌ठा हो रहा है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि ऋषिगंगा के पास जो झील दिख रही है, वह कितनी बड़ी है और उसमें कितना पानी जमा है। अगर झील बड़ी हुई तो उसके टूटने से पहाड़ के निचले हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थिति बन सकती है। अगर झील बड़ी हुई तो वहां से पानी को कंट्रोल्ड तरीके से निकालने के उपाय करने होंगे।

कैसे टूटकर नीचे गिरा ग्लेशियर?

वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जीयोलॉजी के ग्लेशियोलॉजी ऐड हाइड्रोलॉजी के सीनियर साइंटिस्ट के अनुसार, चमोली आपदा की तीन वजह सामने आ रही हैं। ग्लेशियर का कुछ हिस्सा 6000 से अधिक की ऊंचाई से टूट कर गिरा। इसके अलावा सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि दो फरवरी को यहां बर्फ काफी कम थी। लेकिन पांच फरवरी को बर्फ अधिक थी।

हादसा सात फरवरी को हुआ। ऐसे में बर्फ के वजन और ग्रेविटी की वजह से ग्लेशियर टूटकर नीचे गिरा होगा। हालांकि, इतनी जल्दी बर्फ पिघल तो नहीं सकती, लेकिन घर्षण के कारण काफी तेजी से पिघली होगी। यही पिघलकर पानी बनी होगी और दो किलोमीटर तक नीचे आई। तीसरा पहलू यह है कि कुछ कुछ ग्लेशियर लेक इन जगहों पर हैं, लेकिन इसकी पुष्टि कम है।

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