स्वप्न संजोए आंखों में,
संकल्प लिए आगे बढ़ता।
संघर्षों में भी जो प्रसन्न,
नित नई सीढ़ियां चढ़ता।।
धैर्यवान प्रेरणा पुंज।
जीवन अनुपम वरदान।
कथा सदा ही याद रहे,
संकल्प जिनका प्रधान।।
कालजयी देवत्व लिए,
चित्रित उर में सदा रहें।
मैं भी कदम बढ़ा पाऊँ,
सतत साधना बांह गहें।।
मैं खोज रहा ऐसे प्रवीण,
गढ़ें बढ़ें और साथ चलें।
भारत की नींव बने उनसे,
स्वर्णिम युग के चित्र डलें।।
– बृजेंद्र
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