क्या सूरज कभी कहीं छुपता है,
क्या देख चुनौती वो रुकता है।
अहर्निश जीवन प्रकाश बांटता,
क्या सूरज तेज ताप चुकता है।।
वह तो सदा स्वंय की लय में,
अपनी गति से चलता रहता।
है जीवन देने का गुण उसमें,
सदा बांटता न कुछ कहता।।
हम भी ‘भा’रत उसके वंशज,
अपनी शक्ति तेज को जानें।
आच्छादित व्यक्तित्व जगाये,
है क्या कर्तव्य उसे पहचानें।।
तुम से आशाएं समाज को,
विश्व देखता भारत की ओर।
मानवता के शीर्ष तुम्ही हो,
वसुधा बढ़े शान्ति की ओर।।
यह प्रभु कार्य तुम्हें है करना,
देखो! समय पुकार रहा है।
कर्त्तव्य बोध ले उठो बन्धुओ,
विश्व भी तुम्हें निहार रहा है।।
बृजेन्द्र पाल सिंह
राष्ट्रीय संगठन मंत्री, लोकभारती
केन्द्र लखनऊ
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