Pauranik Katha: नारद देवताओं के प्रभाव की चर्चा कर रहे थे। देवराज इंद्र अपने सामने दूसरों की महिमा का बखान सुनकर चिढ़ गए। वो नारद से बोले- आप मेरे सामने दूसरे देवों का बखान कर कहीं मेरा अपमान तो नहीं करना चाहते। नारद तो नारद हैं, किसी को अगर मिर्ची लगे ,तो वह उसमें छौंका भी लगा दें। उन्होंने इंद्र पर कटाक्ष किया यह आपकी भूल है, आप सम्मान चाहते हैं, तो दूसरों का सम्मान करना सीखिए, अन्यथा उपहास के पात्र बन जाएंगे।
इंद्र चिढ़ गए, मैं राजा बनाया गया हूँ तो दूसरे देवों को मेरे सामने झुकना ही पड़ेगा। मेरा प्रभाव दूसरों से अधिक है। मैं वर्षा का स्वामी हूँ। जब पानी नहीं होगा तो धरती पर अकाल पड़ जाएगा। देवता भी इसके प्रभाव से अछूते कहाँ रहेंगे। नारद ने इंद्र को समझाया- वरुण, अग्नि, सूर्य आदि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के स्वामी हैं। सबका अपना सामर्थ्य है। आप उनसे मित्रता रखिए, बिना सहयोगियों के राजकार्य नहीं चला करता।
आप शंख मंजीरा बजाने वाले राजकाज क्या जानें? मैं देवराज हूँ, मुझे किसका डर? इंद्र ने नारद का मजाक उड़ाया। नारद ने कहा, किसी का डर हो न हो, शनि का भय आपको सताएगा। कुशलता चाहते हैं तो शनिदेव से मित्रता रखें, वह यदि कुपित हो जाएं तो सब कुछ तहस−नहस कर डालते हैं। इंद्र का अभिमान नारद को खटक गया। नारद शनि लोक गए, इंद्र से अपना पूरा वार्तालाप सुना दिया। शनिदेव को भी इंद्र का अहंकार चुभा। शनि और इंद्र का आमना−सामना हो गया। शनि तो नम्रता से इंद्र से मिले, मगर इंद्र अपने ही अहंकार में चूर रहते थे। इंद्र को नारद की याद आई, तो अहंकार जाग उठा।
शनि से बोले, सुना है आप किसी का कुछ भी अहित कर सकते हैं। लेकिन मैं आपसे नहीं डरता, मेरा आप कुछ नहीं बिगाड़ सकते। शनि को इंद्र की बातचीत का ढंग खटका। शनि ने कहा, मैंने कभी श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश नहीं की है, फिर भी समय आने पर देखा जाएगा कि कौन कितने पानी में है। इंद्र तैश में आ गए अभी दिखाइए! मैं आपका सामर्थ्य देखना चाहता हूँ। देवराज इंद्र पर आपका असर नहीं होगा।
शनि को भी क्रोध आया। वह बोले, आप अहंकार में चूर हैं, कल आपको मेरा भय सताएगा, आप खाना-पीना तक भूल जाएंगे, कल मुझसे बचकर रहें। उस रात इंद्र को भयानक स्वप्न दिखाई दिया। विकराल दैत्य उन्हें निगल रहा था, उन्हें लगा यह शनि की करतूत है, वह आज मुझे चोट पहुँचाने की चेष्टा कर सकता है। क्यों न ऐसी जगह छिप जाऊं जहाँ शनि मुझे ढूँढ़ ही न सके।
इंद्र ने भिखारी का वेश बनाया और निकल गए। किसी को भनक भी न पड़ने दी। इंद्राणी को भी कुछ नहीं बताया, इंद्र को शंका भी होने लगी कि उनसे नाराज रहने वाले देवता कहीं शनि की सहायता न करने लगें। वह तरह-तरह के विचारों से बेचैन रहे। शनि की पकड़ से बचने का ऐसा फितूर सवार हुआ कि इंद्र एक पेड़ की कोटर में जा छुपे, लेकिन शनि तो इंद्र को खोजने निकले ही नहीं।
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उन्होंने इंद्र पर केवल अपनी छाया भर डाल दी थी। कुछ किए बिना ही इंद्र बेचैन रहे, खाने-पीने की सुध न रही, रात हुई तब इंद्र कोटर से निकले। इंद्र खुश हो रहे थे कि उन्होंने शनिदेव को चकमा दे दिया। अगली सुबह उनका सामना शनिदेव से हो गया। शनि अर्थपूर्ण मुद्रा में मुस्कराए। इंद्र बोले-कल का पूरा समय निकल गया और आप मेरा बाल भी बांका नहीं कर सके। अब तो कोई संदेह नहीं है कि मेरी शक्ति आपसे अधिक है? नारद जैसे लोगों ने बेवजह आपको सिर चढ़ा रखा है।
शनि ठठाकर हँसे, मैंने कहा था कि कल आप खाना−पीना भूल जाएंगे, वही हुआ। मेरे भय से बिना खाए-पीए पेड़ की कोटर में छिपना पड़ा। यह मेरी छाया का प्रभाव था जो मैंने आप पर डाली थी। जब मेरी छाया ने ही इतना भय दिया, यदि मैं प्रत्यक्ष कुपित हो जाऊं, तो क्या होगा इंद्र का गर्व चूर हुआ। उन्होंने शनिदेव से क्षमा मांगी।
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