Acharya Vishnu Hari Saraswati
आचार्य विष्णु हरि

भाजपा की आत्मघाती और अनैतिक कदम ने एक साथ दो विलुप्त होने के कगार पर खड़े राजनीतिज्ञ नीतीश कुमार और लालू यादव को जिंदा कर दिया है। भाजपा के साथ आकर नीतीश कुमार भी अब लंबे समय तक राजनीति में बने रहेंगे, वहीं लालू यादव का खानदान अब बिहार में और शक्तिशाली बन सकती है। सत्ता विरोधी लहर का लाभ लालू खानदान को मिल सकता है। ऐसे नीतीश कुमार ने स्वयं के साथ ही साथ लालू खानदान को भी ताप दिया था, लेकिन भाजपा की मूर्खता से बाजी पलट गयी।

बिहार का दुर्भाग्य ही है कि उसे लालू और नीतीश के जंगलराज और सत्ता खोरी से मुक्ति नहीं मिल रही है। कोई एक साल नहीं बल्कि 30 साल से अधिक समय लालू और नीतीश ने राज कर बिहार को गर्त में ढकलने का काम किया है। भाजपा को नीतीश कुमार की चरणवंदना का कितना लाभ होगा, यह कहना मुश्किल है पर बिहार की जनता को विकल्प के अभाव में जंगल राज के प्रतीक लालू खानदान से दोस्ती करनी पड़ सकती है।

नीतीश कुमार की वर्तमान आया राम-गया राम की राजनीतिक पैंतरेबाजी को क्या नाम दिया जाना चाहिए? तल्ख शब्दों में कहें तो फिर अविश्वनीय और अस्वाभाविक भी नहीं है, आश्चर्य की कोई बात नहीं है, अनहोनी की कोई बात नहीं है। आखिर ऐसा क्यों समझा जाना चाहिए? इसलिए कि नीतीश कुमार की राजनीतिक मानसिकता और स्वभाव कुछ ऐसा ही है, पलटी मारना, धोखा देना और स्वार्थ की पराकाष्ठा को बार-बार प्रदर्शित करना, इसमें उनकी कोई तुलना नहीं है। जार्ज फर्नाडीस से लेकर शरद यादव और अली अनवर तक दर्जनों नाम हैं जिन्हें नीतीश कुमार ने अवसर मिलते ही गिरगिट की तरह रंग बदला और एक झटके में हाशिये पर फेंक दिया।

बिहार में राजनीतिक नैतिकता, शुचिता और स्वच्छता के समर्थक राजनीतिज्ञ और बुद्धिजीवी स्पष्ट तौर पर नीतीश कुमार को टग, विश्वासघाती और घोर अनैतिक तथा पैंतरेबाजी का पर्याय मानते हैं। अपनी कुर्सी के लिए किसी भी कीमत और किसी भी स्थिति में कोई भी समझौता करने के लिए नीतीश तैयार रहते हैं। इसी कारण नीतीश कुमार को कुर्सी कुमार भी कहा जाता है। नीतीश कुमारा के हमाम में सब नंगे हैं। सिर्फ दोष नीतीश कुमार का ही नहीं है, राजनीतिक तौर पर अनैतिक, ठग व अविश्वसनीय और विश्वासघाती की श्रेणी का बदबुदार उदाहरण सिर्फ नीतीश कुमार का ही नहीं, बल्कि लालू प्रसाद यादव का वंशवादी घराना भी है और भाजपा भी है।

अब आप यहां यह प्रश्न उठा सकते हैं कि लालू का वंशवादी घराना और भाजपा भी ठग, अनैतिक और पैंतरबाज कैसे हैं? धोखा तो बार-बार नीतीश कुमार देते हैं? क्या लालू के वंशवाद घराने और भाजपा को यह मालूम नहीं है कि नीतीश कुमार अविश्वसनीय है, अनैतिक है, ठग भी है, अपनी कुर्सी के लिए कुछ भी कर सकते हैं, फिर भी लालू का राजनीतिक घराना और भाजपा बार-बार नीतीश कुमार की चरणवंदना क्यों करते हैं? सच तो यह है कि भाजपा और लालू का वंशवादी घराना भी अपने-अपने राजनीतिक लाभ के लिए ठगे जाने के बाद भी नीतीश कुमार से लात खाते रहे हैं।

नीतीश कुमार की पैंतरेबाजी से कांग्रेस भी नहीं बची। कांग्रेस का समीकरण भी तहस-नहस हो गया। कांग्रेस के साथ गठबंधन का असली मकसद ही कारण बना। कांग्रेस और नीतीश कुमार को अपना-अपना राजनीतिक स्वार्थ था। नीतश कुमार को प्रधानमंत्री की कुर्सी चाहिए थी और कांग्रेस को अपने युवराज राहुल गांधी के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी चाहिए थी। राजनीतिक अति महत्वाकांक्षा की इस प्रतिद्वंदिता के सामने गठबंधन और एक-दूसरे का साथ कहा तक चलता? नीतीश को गठबंधन का सिरमौर बनाने के लिए कोई तैयार ही नहीं था। कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के कारण इंडिया नामक गठबंधन की रस्सी अपने हाथ से कैसे ढीली करती, कैसे छोड़ती?

कांग्रेस अपने युवराज राहुल गांधी को बलिदान कर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कैसे और क्यों करती? इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य दल भी नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। ममता बनर्जी ने मलिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने का नाम प्रस्तावित कर एक तरह से राजनीतिक वज्रपात कर दिया था। एक तीर से दो निशाने कर दी थी। नीतीश कुमार और राहुल गांधी दोनों की संभावनाओं पर पूर्ण विराम लगा दी थी। ममता बनर्जी के इस प्रस्ताव का समर्थन अरविन्द केजरीवाल ने भी किया था।

कांग्रेस को कहना पड़ा कि लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पद पर सहमति हो सकती है, लोकसभा चुनाव के पूर्व ऐसी सहमति की कोई संभावना या जरूरत नहीं है। इसके अलावा अखिलेश यादव और वामपंथी पार्टियो तथा दक्षिण की राजनीतिक पार्टियों की भी सोच और सहमति विपरीत थी। ऐसी राजनीतिक स्थिति में नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं समाप्त हो गयी थी, प्रधानमंत्री बनने के सपने का संहार हो चुका था। इसके अलावा उनके दल में ही बिखराव के समीकरण बनने लगे थे, बगावत की स्थिति बन रही थी, कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता नीतीश कुमार छोड़ कर भाजपा और राजद के दामन थाम चुके थे।

लालू का खानदान की चमक-धमक के सामने नीतीश कुमार की बोलती बंद थी, भाजपा की तरह राजद समर्पण की स्थिति में कतई नहीं था, राजद तन कर खड़ी थी और हर मंच और मोर्चे पर राजद अपनी बढ़त और शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था। ऐसी विपरीत व खतरनाक परिस्थिति में नीतीश कुमार द्वारा भाजपा की ओर कदम बढ़ाने की पैंतरेबाजी दिखाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। अगर भाजपा की ओर कदम बढ़ाने की पैंतरेबाजी नहीं दिखायी होती तो फिर नीतीश कुमार की राजनीतिक मौत को कोई रोक नहीं सकता था। अति महात्वाकांक्षा को भी लांघ दिया। इसे सिर्फ अति महात्वाकांक्षा नहीं कहा जा सकता है? इसे राजनीतिक पागलपन कहा जा सकता है।

नीतीश कुमार जैसा राजनीतिज्ञ का यह सोचना और समझना की देश की सभी राजनीतिक पार्टिया मेरे गुलाम की तरह मेरे पैरों के नीचे खड़ी रहे और हमें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बठाये। ऐसी सोच और समझ को पागलपन ही कहा जा सकता है। मुंगेरीलाल के हसीन सपने ही कहा जा सकता है। बेशर्मी की हद कहा जा सकता है। खुद की शक्ति का अहसास नहीं। खुद की इनकी शक्ति क्या है? अमीबा की तरह ये परजीवी हैं। इनकी पार्टी जद यू बिहार की भी सिरमौर राजनीति पार्टी नहीं है। अभी संख्या और जनाधार आधारित जद यू की कोई खास शक्ति और स्थिति नहीं है।

बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी है। पहले नंबर की पार्टी राजद और दूसरे नंबर की पार्टी भाजपा है। पिछले विधानसभा चुनावों में नीतीश की पार्टी का प्रदर्शन बहुत ही खराब थी, नीचले स्तर की पार्टी थी, भाजपा के साथ गठबंधन के कारण नीतीश कुमार की लाज बच गयी थी। भाजपा बडी पार्टी होने के बाद भी मुख्यमंत्री का दावेदार नहीं बनी और अपने से छोटे दल यानी जद यू और नीतीश कुमार के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी को छोड दी। इतने बड़े उपकार को नीतीश कुमार ने सम्मान नहीं दिया और अपनी मनमानी चलाने का काम किया। जिसकी पार्टी एक प्रदेश की भी पाटी नहीं है फिर भी उसके नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए सबको ठगने की पैंतरेबाजी दिखाता है। अगर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनना है तो फिर सबसे पहले अपने प्रदेश बिहार में ही राजद और भाजपा से बडी पार्टी का जनाधार हासिल करना चाहिए था, इसके अलावा अपनी पार्टी जद यू का विस्तार पूरे देश में करना चाहिए।

बिहार का दुर्भाग्य ही कहिए। बिहार के लोग जिसको भी अपना भाग्य विधाता मानते हैं, जिसको भी राजगद्दी सौंपते हैं, वही अनैतिक निकलता है, ठग निकलता है, अविश्वसनीय निकलता है, विश्वासघाती निकलता है, सपने को जमींदोज करने वाला निकलता है, प्रतिभा का संहार करने वाला निकलता है, शैखी बघारने वाला निकलता है, विकास और उन्नति को जमींदोज करने वाला निकलता है, जंगलराज कायम करने वाला निकलता है। बिहार में लालू खानदान ने पूरे पन्द्रह साल तक जंगलराज कायम किया, प्रतिभा संहार किया, शिक्षा चौपट कर दिया, बिहार के बच्चे शैक्षणिक देरी की वजह से रोगजार और सरकारी नौकरियों से वंचित हो गये, संपन्न तबका बिहार छोड़कर भाग गया।

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लालू खानदान के पतन के बाद आयी सरकारें भी लालू खानदान के जंगलराज की फोटोस्टेट कॉपी ही साबित हुई। बीस सालों तक नीतीश कुमार कभी भाजपा तो कभी राजद के साथ मिलकर सरकार चलाते रहे, पर बिहार का पतन जारी रहा, कोई उद्योग धंधा क्यों नहीं खड़ा हुआ? जंगल राज समाप्त क्यों नहीं हुआ? जंगलराज में उद्योग धंधे भी खड़े नहीं होते। रोजगार के साधन भी नहीं बढ़े। शिक्षा में भी सुधार नहीं हुआ। बिहार के बच्चों के लिए सुलभ स्तर पर इंजीनियरिंग कॉलेज और मेंडिकल कॉलेज नहीं खुले, बिहार के बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा के लिए देश भर में धक्के खाते रहे और अपमानित होते रहे। बिहार के मजदूर पूरे देश में हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी कलंक और अपमान झेलते रहे, हिंसा का शिकार होते रहे। पलायन क्यों नहीं रुका। यही नीतीश कुमार का सच है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

आचार्य विष्णु हरि
मो… 9315206123

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