लखनऊ। कल 21 मई को सीता नवमी अर्थात माता सीता का जन्मदिवस है। इसे लोग जनकी जयंती के नाम से भी जानते है। हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता सीता का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान श्रीराम और माता सीता की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि माता सीता की पूजा करने से पति को लंबी आयु प्राप्त होती है। घर में सुख-शांति आने की भी मान्यता है। सीता नवमी के दिन हर्षण योग रात 09 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में इस योग को शुभ योग में गिना जाता है। इस दौरान शुभ व मांगलिक कार्य किए जाते हैं। इसके बाद वज्र योग लगेगा। वज्र योग को अशुभ योग में गिना जाता है। इस दिन चंद्रमा रात 09 बजकर 07 मिनट तक सिंह और उसके बाद कन्या राशि पर संचार करेगा। सूर्य वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे।

नवमी तिथि कब से कब तक-

नवमी तिथि प्रारम्भ – मई 20, 2021 को 12:23 पीएम बजे
नवमी तिथि समाप्त – मई 21, 2021 को 11:10 एएम बजे तक।

इस दिन क्या करें

इस दिन सुबह उठकर स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें। देवी और देवताओं का गंगाजल से अभिषेक करें। सीताजी का ध्यान करें। यदि व्रत रख सकें तो उत्तम अन्यथा केवल पूजा ही संपन्न करें। मां सीता और श्रीरामचंद्र, हनुमान सहित रामपरिवार की उपासना करें। श्रीराम और मां सीताजी को सात्विक वस्तुए व नैवेद्य अर्पण करें। यदि पुत्र प्राप्ति की आकांक्षा हो तो सीता स्त्रोत्र का पाठ भी करें।

सीता माई मंदिर

करनाल के पास सीतामाई गांव में स्थित यह एक प्राचीन मंदिर है जिसमे अद्वितीय विशेषताएं हैं। भारत में शायद यह देवी सीता का एकमात्र मंदिर है। पौराणिक कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि सीता माई मंदिर वही स्थान है जहां माता पृथ्वी ने देवी सीता माता को निगल लिया जब उन्होने अपनी पवित्रता साबित करनी थी। यह मंदिर पूरे मूर्ति को कवर करने के लिए विस्तृत सजावट के साथ ईंटों से बना है। यह निलोखेडी से 19 किमी दूरी पर है।

सीता माता अभयारण्य का संबंध

मान्यता के अनुसार सीता माता वन्य जीव अभयारण्य का सीधा संबंध रामायण से है। लोगों का मानना है कि जब रावण वध के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने पर लोगों के सवाल पर माता सीता को वनवास दिया गया था। तब माता सीता ने अपना वनवास इसी अभयारण्य में ही काटा। इसके उदाहरण के तौर पर यहां सीता माता मंदिर के साथ लव-कुश जन्मभूमि, महर्षि विश्वामित्र का आश्रम और ठंडे, गर्म पानी के कुंड भी हैं। जहां आज भी एक कुंड में ठंडा पानी और दूसरे में गर्म पानी आता है। इसके अलावा मंदिर दर्शन को जाते समय प्रकृति की अद्भुत सुंदरता यहां देखने को मिलती है। हरियाली से ढंकी पहाड़ियां और कई प्राकृतिक झरने यहां लोगों को देखने को मिलते हैं।

सीता-कुंड

सीता-कुंड नेपाल सीमा से सटे बिहार के सीतामढ़ी के पुनौरा ग्राम स्थित एक हिन्दू तीर्थ स्थल है। यहाँ एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। सीतामढ़ी से ५ किलोमीटर दूर यह स्थल पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। यह स्थान पौराणिक काल में पुंडरिक ऋषि के आश्रम के रूप में विख्यात था। सीतामढी से ५ किलोमीटर पश्चिम स्थित पुनौरा में ही देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक ने इंद्र देव को खुश करने के लिए अपने हाथों से यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदापात्र में देवी सीता बालिका रूप में उन्हें मिली। मंदिर के अलावा यहाँ पवित्र कुंड है।

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