जिसके जीवन में राष्ट्र प्रथम,
जिसके उर में था पला ताप।
क्षण-क्षण राष्ट्र समर्पित था जो,
रण बांकुरा अमर राणा प्रताप।।
सब सुविधाएं त्याग जो बढ़ा,
झुका न टूटा कभी कहीं।
आज राष्ट्र हित पुनः चाहिए,
भ्रम का अवसर शेष नहीं।।
जंगल जंगल भटके वे थे,
अब न भटकाना पड़े तुम्हें।
घास की रोटी खाई बच्चों ने,
वे दिन न देखना पड़े तुम्हें।।
आओ उसको नमन करें हम,
संगठन सूत्र का ले संकल्प।
हम अब न बटेंगे नहीं घटेंगे,
एक्य भाव का नहीं विकल्प।।
बृजेंद्र पाल सिंह
राष्ट्रीय संगठन मंत्री लोकभारती
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