उम्मीदें सबकी संभालते हुए
ख्वाबों को टालते लड़के,
पूरा ही खर्च हो जाते हैं
खुद का समय निकालते लड़के
घर का खाना, पिता की तबीयत
यही जांचते लड़के,
कुछ और कहां कह पाते हैं
घर पर फोन लगाते लड़के
मन को मजबूर कर
खुद को मजबूत दिखाते लड़के,
आँसुओं को कहीं छिपाकर
बस मुस्कुराते ये लड़के
मां को अगले त्योहार की
तारीख़े गिनवाते लड़के,
इस छुट्टी घर जाने की
कयास लगाते लड़के
शहर की दौड़ती गली में
एक घर तलाशते लड़के,
घर पर ही छूटे होते हैं
घर से दूर रहते लड़के
जिम्मेदारियों के भार पर
कंधों को समझाते लड़के,
आसमां से हो जाते हैं
ये बादल सरीखे लड़के
इतिहास जानते लड़के,
भूगोल नापते लड़के,
अर्थशास्त्र में फंस जाते हैं
ये कहानियां सुनाते लड़के
डरते-घबराते चलते हैं
बचते-बचाते ये लड़के,
गले लगते ही रो देते हैं
जब प्रेम पाते ये लड़के
बचपन में फिर लौट आते हैं
उम्र में बीते लड़के,
आकाशगंगाएं उतार लातें हैं
प्रेम में जीते लड़के।
– मायशा
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