सभी कविताएं पुष्पों की भांति
कोमल नहीं होती
कुछ कविताएं
खूंखार कुत्ते की भांति
काटने को दौड़ती हैं
उनके अंदर करुणा नहीं
आक्रोश भरा होता है।

कविताएं
सीधी गायों की भांति नहीं होती
वो करती हैं प्रहार
इतने प्रचंड वेग से
कि पाठकों की पसलियाँ हिल जाएं!

कविताओं में लगे कांटे
उन्हें खून की उल्टियां करवा सकते हैं
जो इन्हें मधुरस समझ पीने की कामना रखते हैं।

सभी कविता हर एक पाठक के लिए नहीं होती!
कविताएं अपना पाठक स्वयं तलाशती हैं
जिन्हें स्वीकारती हैं, उन्हें देती हैं
अपने ममता की छाव
और जिन्हें नहीं स्वीकार पाती
उन्हें दुत्कार देती हैं।

मैं अपनी कविता की तलाश में
अब तक न जाने कितनी
कविताओं के द्वारा
दुत्कारी जा चुकी हूं
न जाने कब मुझे स्वीकृति मिलेगी।

– कीर्ती पांडेय (केतकी)

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