Kahani: राजा की सभा में एक बड़ा सम्मानित राज पुरोहित था। जब वह आता राज्यसभा के सभी सभासदों के साथ राजा भी खड़े होकर उसका स्वागत करते थे। एक दिन राजा ने अपने सभासदो के सामने राजपुरोहित से एक प्रश्न किया… आचरण बड़ा या ज्ञान? राजपुरोहित ने कहा: प्रश्न के समाधान के लिए थोड़ा वक्त चाहिए। राजपुरोहित ने एक प्रयोग किया, कोषागार से दो मोती चुरा लिए। खजांची ने देखा और हैरान रह गया। दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। राजपुरोहित ने फिर से रत्न चुरा लिए। बात राजा तक पहुंचीं और राजा ने जांच कराई, तो राजपुरोहित की सच्चाई सामने आई।
अगले दिन राजा ने राजपुरोहित को सम्मान नहीं दिया, उसके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ, पुरोहित ने मन ही मन कहा, दवा काम कर गई। राजा ने पुरोहित से पूछा आपने मोती, रत्न चुराएं है? जी हां, पुरोहित ने कहा, राजा ने पूछा क्यों? दरअसल, मैं आपको दिखाना चाहता था कि आचरण बड़ा है या ज्ञान? मेरी राज्य सभा में जो प्रतिष्ठा है, सम्मान है, इज्जत है वह आचरण के कारण है या ज्ञान के।
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आपने देखा कि मेरा ज्ञान मेरे पास था, उसमें कोई फर्क नहीं आया, उसमें कोई कमी नहीं आई। फिर भी आपने मेरा स्वागत नहीं किया, खड़े होकर मेरा सम्मान नहीं किया। क्योंकि मैं आचरण से गिर गया था, राजपुरोहित से चोर बन गया था। मेरा आचरण गिरा, आपकी भौंहें तन गई। मैं समझ गया कि आचरण बड़ा है या ज्ञान? मुझे लगता है कि आपके प्रश्न का भी यही उत्तर है। क्या समझें..चिंतन करते रहो।
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