हर दर्द को जो दिल में छुपाता चला गया।
हर मुसकिलों में चुटकियाँ, बजाता चला गया।।
झुका सकी ना मिल के ये दुनिया जिसे कभी।
अपनों का जाना रोज़ रुलाता चला गया।।
रब से दुआ करो की सलामत रहें सभी।।
महामारियों का दौर तो आये ना अब कभी।
हर याद उनकी दिल को रुलाता चला गया।
हर रोज़ दर्द दिल का बढ़ता चला गया।।
चले गये हैं जो वो मिलेंगे ना अब कभी।
जो थे दिल ए अज़ीज़ ना भुलेंगे वो कभी।।
मेर मालिक, ये महामारी का आलम अजीब है।
रहता नहीं है पास जो अपना क़रीब है।।
फैला ज़हर हवाओं में मिलती नही साँसें।
मरते है कितने लोग अब गिनती नहीं लाशें।।
हर गली में मौत बनके क़हर ढाता चला गया।
अपनों का जाना रोज़ रुलाता चला गया।।