अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

वाह! रे मदिरा तेरी तो,
है महीमा अपरम्पार!
तुम्हीं चलाते अर्थव्यवस्था,
तुमसे है सरकार!!

श्रम, संकट, संताप भूल नर,
सपनों में खो जाता है।
रंक पीये जो एक घूँट तो
भू-महीपति हो जाता है।

सेठ,साहू, औ मंत्री नेता
सबसे साथ तुम्हारा है।
हर चुनाव के जीत हार मे,
पहला हाथ तुम्हारा है।

तू चाहे तो, ताज बदल दे,
बीताकल औ आज बदल दे।
मुर्ग़ा साथ जो तेरे हो तो,
चमचों का मिज़ाज बदल दे।

दो घूंट तेरा, ज्यों अन्दर जाये,
स्वर्ग उतर धरती पर आये!
संताप, शोक या हो अभाव,
रंक तुरत राजा हो जाये!!

सोम सुरा रस देवलोक में,
मदिरा दानव दल कहते!
अंगूर की बेटी नाम वारूणी,
तुम्हें धरातल पर कहते!!

अर्थ अभाव हुआ जब जग में,
मदिरालय ने साथ दिया!
गिरती अर्थव्यवस्था को,
पल में कुबेर का हाथ दिया!!

विद्वान वर्ग ने शोध किया है,
मेहनत से यह खोज किया है।
मंथन से निकला यह अमृत,
धरती पर प्रभु भेज दिया है।

गुंगे को भी कंठ दिया है!
हर समाज को लंठ दिया है,
फिर भी शिव संग रहे सदा हम,
हमको औघड़ पंथ दिया है!!

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