स्मृति श्रीवास्तव

सरल, सहज, मिसरी सी ये,
शब्दों से अमृत बरस,
ये अपनत्व जताती है,
स्वराष्ट्र प्रेम दर्शाती है,
“हिंदी” अभिमान बढ़ाती है”

मीठी, सरल व सहज “हिंदी”, भारतीय जनमानस की भाषा है। यद्यपि “माना थोड़ी क्लिष्ट है पर हमारे लिए अति विशिष्ट है”। इसकी वैज्ञानिकता विश्व प्रमाणित है। हिंदी के प्रचार – प्रसार में लगे हुए सभी विद्वत जनों को मेरा प्रणाम है । ‘हिंदी’ को विश्व स्तर पर प्रथम स्थान दिलाने की हमें भरपूर कोशिश करनी है। भारतीयों के लिए हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं हमारी पहचान है, हमारा अभिमान है। वैश्विक स्तर पर इसका मान बढ़ाना हमारा दायित्व है, इस काम के लिए ‘थोड़ी भागीदारी की जिम्मेदारी’ हमारी भी है।

आज के आधुनिक युग में जबकि हम दुनिया से कदम ताल मिलाने की होड़ में नयी तकनीक, नये विचारों, पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता को अपनाने की कोशिश में लगे हैं और इसी आधार पर स्वयं को आधुनिक समाज का प्रतिनिधि मानते हुए अपनी मातृभाषा हिंदी के साथ तिरस्कृत और निरादरपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं, ये हमारे लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है।

“हिंदी” हमारी आत्मा है, और हमें यह बात याद रखनी होगी कि जब तक आत्मा हमारे साथ है तभी तक हमारा मूल अस्तित्व सुरक्षित है, यदि हमसे हमारी आत्मा अलग हो जाएगी तो हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, पारंपरिक और व्यावहारिक पहचान मृतप्राय होकर रह जाएगी। अपनी आत्मा हिंदी का स्वयं भी सम्मान करें और उसको वैश्विक स्तर पर सम्माननीय स्थान दिलाने का सार्थक प्रयास करें। एक भारतीय होने के नाते हर भारतीय से मेरा ये अनुरोध है।

“हिंदी अपनाने का निर्णय, आज हमें तो करना है,
इसका परचम फहराएंगे, ऐसा अपना सपना है”

(लेखिका ब्लॉगर एवं फ्रीलांस राइटर हैं)

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