Harishkar Tiwari Passed Away: पूर्वांचल के बाहुबली नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री रह चुके हरिशंकर तिवारी (Harishkar Tiwari) का मंगलवार को निधन हो गया। उन्होंने गोरखपुर स्थित अपने घर पर ही अंतिम सांस ली। उम्र की आखिरी पड़ाव में वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। बाहुबली नेताओं में हरिशंकर तिवारी (Harishkar Tiwari) वह नाम हैं, जिन्हें शेरे पूर्वांचल के नाम से भी जाना जाता था। उनके निधन से पूर्वांचल में बाहुबलियों के अध्याय एक चर्चित नाम और अध्याय समाप्त हो गया है।
हरिशंकर तिवारी (Harishkar Tiwari) को जानने वाले और उनसे संबंधित खबरों को कवर करने वाले पत्रकारों के मुताबिक, हरिशंकर तिवारी (Harishkar Tiwari) पूर्वांचल में पैदा होने वाले बाहुबलियों की नर्सरी कहलाते थे। 70 के दशक में हरिशंकर तिवारी ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी से जिस बाहुबल का आगाज किया, उसका विस्तार कॉलेज से निकलने के बाद सरकारी ठेकों से हुआ। समाज में वर्चस्व कायम होते ही उन्होंने चुनाव में दांव आजमाया और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री तक बने।
चिल्लूपार विधानसभा से 1985 में बने विधायक
आपराधिक इतिहास के बावजूद भी गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी की छवि रॉबिनहुड वाली रही। यही कारण था कि वह 1985 में चिल्लूपार की विधानसभा सीट से चुनाव और विधायक चुने गए। मजेदार बात यह है कि हरिशंकर तिवारी ने यह चुनाव जेल में रहते हुए निर्दलीय लड़ा था। इसके बाद इस सीट से उनकी जीत का सिलसिला बना रहा और वह 6 बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और मंत्री भी बने।
श्रीप्रकाश शुक्ला को मिला था हरिशंकर का शह
हरिशंकर तिवारी का पूर्वांचल में कितनी पकड़ थी उसको इसी से समझा जा सकता है कि उनके बारे में बाहुबलियों की नर्सरी भी कहा जाता है। पूर्वांचल के लोगों ने उनसे पहले न कभी गैंगवार में होने वाली गोलियों की तड़तड़ाहट सुनी थी और न ही ऐसी घटनाओं के बारे में सोचा था। बताया जाता है कि हरिशंकर तिवारी की छत्रछाया में कई खूंखार माफिया बड़े हुए। इन्हीं माफियाओं में एक नाम श्रीप्रकाश शुक्ला भी था। जिसका बाद में हरिशंकर तिवारी से अनबन हो गया था।
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70-80 के दशक में गैंगवार से जूझ रहा था गोरखपुर
हरिशंकर तिवारी के नाम की चर्चा हो तो वीरेंद्र शाही का नाम अपने आप आ जाता है। बताया जाता है कि हरिशंकर तिवारी और विरेंद्र शाही गोरखपुर यूनिवर्सिटी के जमाने से ही एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे थे। 70-80 के दशक में गोरखपुर की सड़कों पर इन दोनों के बीच खूब गैंगवार हुआ। यह दुश्मनी यूनिवर्सिटी के बाद ठेकों में भी रही। इतना ही नहीं राजनीति में भी इन दोनों दुश्मनों की अदावत बदस्तूर जारी रही। बाद में एक ने कांग्रेस का दामन थामा तो दूसरे ने जनता पार्टी में शामिल हो गए। हालांकि इस दुश्मनी का अंत हुआ वीरेंद्र शाही की मौत के साथ हो गया। श्रीप्रकाश शुक्ला ने विरेंद्र शाही की हत्याकर हरिशंकर तिवारी को गुरुदक्षिणा के रूप में दिया।
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