नई दिल्ली। पं. दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा होना लाजिमी है। अगर आप आचरण और शब्दों में एकता बनाए रख सकते हैं, तो आप एक बेहतरीन कम्युनिकेटर बन सकते हैं। दीनदयाल उपाध्याय इस बात को अच्छे तरीके से जानते और समझते थे, इसलिए उनकी ‘कथनी’ और ‘करनी’ में कभी अंतर नजर नहीं आया। दिल से दिल का संवाद ही उनकी खास विशेषता थी। उक्त विचार हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने आज भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) की तरफ से आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ में व्यक्त किए। इस कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी विशेष तौर पर उपस्थित थे।

‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय: एक संचारक’ विषय पर अपने विचार व्यक्त रखते हुए प्रो. कुलदीप अग्निहोत्री ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय एक कुशल संचारक और भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक थे। दीनदयाल जी ने सरलता, सहजता और सादगी द्वारा भारतीय जनता से संवाद स्थापित किया। उनका मानना था कि समाज में मीडिया अपनी उद्देश्यपूर्ण भूमिका निभाए, समाज हित और राष्ट्रहित को हमेशा प्रथामिकता में रखे और सनसनी फैलाने की जगह तटस्थ रहते हुए सूचनाएं समाज तक पहुंचाए।

प्रो. अग्निहोत्री के मुताबिक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय दर्शन को आधार बनाकर आधुनिक भारत की नींव रखी और आज एकात्म मानववाद और अंत्योदय इसी नए भारत का महत्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। उनका कहना था कि गलत मार्ग से सही लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं है। भारतीय दृष्टि से हमें भारत का विकास करना होगा। प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि दीनदयाल जी के विचारों पर चलकर ही सबका विकास किया जा सकता है। एकात्म मानवदर्शन में संपूर्ण जीवन की एक रचनात्मक दृष्टि है। एकात्म मानवदर्शन में भारत का अपना जीवन दर्शन है, जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को टुकड़ों में नहीं, समग्रता में देखता है।

प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि संचार के उद्देश्य लोक कल्याण निहित रहता है। दीनदयाल उपाध्याय इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कठिन विषयों पर भी सहजता से संवाद करते थे। सही मायने में दीनदयाल उपाध्याय को राष्ट्रीय पत्रकारिता का पुरोधा कहा जा सकता है। उन्होंने पत्रकारिता में अपनी दूरदर्शी सोच से ऐसी ही एक भारतीय धारा का प्रवाह किया।

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इस मौके पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि दीनदयाल जी सिर्फ एक राजनेता नहीं बल्कि वे एक पत्रकार, लेखक, इतिहासकार और अर्थशास्त्री भी थे। उनके चिंतन ने देश को एकात्म मानवदर्शन जैसा भारतीय विचार दिया। उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी ने सही मायने में भारत को समझा और उसकी समस्याओं का हल तलाशने का सार्थक प्रयास भी किया। इस कार्यक्रम का संचालन प्रो. प्रमोद कुमार ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह ने किया।

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