प्रदीप तिवारी
लखनऊ। लोगों की प्रथमिकता उनका परिवार होता है। अपने परिवार और बच्चों को हर सुख-सुविधा देने की व्यवस्था करने में इंसान की पूरी उम्र निकल जाती है। लेकिन कौन किसका है संकट के इन दिनों में देखने को मिल रहा है। आए दिन गंगा व अन्य पवित्र नदियों में उतराते शव बताने के लिए काफी है कि लोगों की इंसानियत मर चुकी है। हालांकि इंसानियत पहले ही नहीं बची थी नहीं तो यह नौबत आती ही नहीं। क्योंकि जब सभी जगह दवा और ऑक्सीजन की किल्लत मची हुई थी तो लोग इसका कालाबाजारी करने में लगे थे। वहीं इन दिनों गंगा में लाशों के उतराने का सिलसिला चल निकला है। इसको लेकर कुछ लोग सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या सरकार ने इन लाशों को गंगा में फेंकवाया है।
गंगा में उतराती लावारिश लाशें इंसानों की पोल खोल रही हैं। वह बता रही हैं उनका भी कोई वारिश था, जो अंत समय में उन्हें लावारिश छोड़ दिया है। क्योंकि कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शव को अस्पताल प्रशासन द्वारा उनके परिजनों को सौंपा जाता है। किसी वारिश के ना आने पर लाश की अंत्योष्टि कराने का जिम्मा प्रशासन पर आता है। प्रशासन कितना जिम्मेदार और जिंदा है, यह हर किसी को पता है। लेकिन कोरोना के दौरान उनके अपने कितना जिंदा हैं। इसका भी एहसास मुर्दों की आत्माओं को हो रहा होगा। मुर्दे हैं बोल नहीं सकते इसलिए उनकी वेदना को समझना होगा। जिनके लिए उन्होंने उपनी पूरी जिंदगी निकाल दी वहीं परिजन आज उनकी मौत पर अस्पताल से उनकी लाश तक लेने नहीं आ रहे हैं।
बलरामपुर से जो हृदयविदारक दृश्य देखने को मिला वह पूरी मानवता को शर्मसार करने वाला रहा। यहां मनकौरा गांव निवासी कोरोना संक्रमित प्रेमनाथ मिश्र की लाश को उनका भतीजा बताने वाले संजय ने तो इंसानियत की सारी सीमाएं ही लांघ दी। उसने अस्पताल से प्रेमनाथ मिश्र की लाश लेकर राप्ती नदी में फेंक दिया। संजय की इस हरकत ने पूरी मानवता को शर्मसार कर दिया है। उसका अगर यही करना था तो लाश लेने की जरूरत ही क्या थी? लेकिन जो अपने नहीं हैं वह अपना बनने की कोशिश में पूरे मानव समाज को कलंकित करने में लगे हुए हैं।
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यूपी में ही क्यों आ रहे मामले
यहां यह सवाल जरूरी हो जाता है कि आखिर गंगा में शवों को फेंके जाने का सिलसिला उत्तर प्रदेश में ही क्यों हो रहा है? इसमें विपक्ष की साजिश तो नहीं है? विपक्ष लोगों से ऐसा न करने की अपील की जगह सरकार को घेरने में ही क्यों लगा हुआ है। क्या सरकार इन लाशों को नदियों में फेंकवा रही है। इन सब सवालों के जवाब हमें खुद से ही तलाशने होंगे। क्योंकि हमारे यहां के सियासत दां चिता पर रोटी सेंकने में लगे हुए हैं। नदी के घाटों की पुरानी फोटो तक लोग शेयर कर सरकार के खिलाफ माहौल बनाने वाले उतराते शवों को लेकर कितना गंभीर है यह समझने की जरूरत है।
पानी में भी फैल रहा है कोरोना
गांगा में लाशों के मिलने के बाद पानी के सैंपल के परीक्षण से यह साबित हो गया है कि कोरोनावायरस पानी में भी फैल रहा है। ऐसे में नदियों में शवों को फेंकने वाले पूरे मानव समाज के दुश्मन है। जोकि न अपनों के हुए और न ही समाज से उनका कोई सरोकार है। फिलहाल गंगा में उतराती लाशें किसकी हैं। इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। क्योंकि ये लाशें लोगों को दिखती हैं, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों को नजर नहीं आती। अधिकारियों को नजर नहीं आएंगी तो योगी सरकार को बिल्कुल भी नजर नहीं आएगी। क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वहीं नजर आता है, जितना उन्हें अधिकारी दिखात या बताते हैं।
इसका ताजा नजीर उन्नाव जनपद का है। यहां रविार को लोगों ने नदी में नाव उतराते हुए देखा। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें भी वायरल हुई थीं। लेकिन वायरल तस्वीरों के आधार पर प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे तो उन्हें कोई लाश नहीं मिली। सवाल मौजूं तब हो जाता है कि इन अधिकारियों ने लाश ढूंढने की जगह यह दावा कर देते हैं कि नदी में कोई लाश नहीं थी। यानी योगी राज में तस्वीरें भी झूठ बोल रही हैं।
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