नहीं पता कब हो जायेगी,
इस जीवन की शाम।
मानवता के पथ पर चलकर,
आओ सबके काम।
तन का जब तक साथ निभाये,
सांसों की ये डोर।
तब तक बनो सुबह वाली तुम,
सबके घर की भोर।
सूरज सी तब चमक रहेगी,
इस जग में अविराम।
मानवता के पथ पर चलकर,
आओ सबके काम।
रोया रोया दिखे न कोई,
मिटे सभी की पीर।
आगे बढ़कर पोछो सबके,
नयनों से नित नीर।
जग चिंतन में लगो अगर तो,
करो नहीं आराम।
मानवता के पथ पर चल कर,
आओ सबके काम।
सच्चाई की राह चलो तो,
मिटे असत की रात।
उजला उजला जग करने को,
लाओ नया प्रभात।
परहित जो करता है उसका,
निश दिन रहता नाम।
मानवता के पथ पर चल कर,
आओ सबके काम।
एक दूजे में प्रेम बढाओ,
मिट जाये विद्वेष।
किंचित भी न क्लेश बचे तब,
किसी ह्रदय में शेष।
तुलसी सुर कबीर बुद्ध के,
बांटो कुल पैगाम।
मानवता के पथ पर चल कर,
आओ सबके काम।
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