योगी कभी और कितना भाजपामय रहे यह शोध का विषय है किन्तु भाजपा की उत्तर प्रदेश में वर्तमान जीवन्तता योगीमय होने से है, यह स्पष्ट धारणा जनता की है। यही वजह है कि चार साल शासन के बाद भी भाजपा जनता के बीच लोकप्रिय है। आज कल योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाने की अफवाह अब उतार पर है। पार्टी की सोच व सच्चाई चाहे जो हो, लेकिन जनमत इसके उलट है। पिछले 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली अपार सफलता में केशव प्रसाद मौर्या का श्रम सर्वोपरि था, किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस को ऐसे मुख्यमंत्री की तलाश थी जिसका प्रदेश में अपना आधार हो। कर्मठ व तेज तर्रार हो। अपनी फायर ब्रांड राजनीति के कारण योगी शुरू से ही पूर्वांचल में हिंदुओं के प्रभावशाली नेता रहे हैं और ध्यान रहे विधानसभा की ज्यादा सीटें भी पूर्वांचल में ही हैं। इन्हीं विशेष कारणों से चुनाव बाद मुख्यमंत्री पद पर योगी की ताजपोशी की गई।
उनकी कार्य शैली उन्हें अन्य नेताओं और मुख्यमंत्रियों से अलग व विशिष्ट बनाती है। ‘विधि-विधान’ व ‘हठयोग’ से ओतप्रोत उनका ‘योगी जीवन’ उनके शासकीय कार्यों में भी पूर्णत: परिलक्षित व प्रतिविम्बित है। बिना लाग-लपेट के अपराधियों, माफियाओं, बाहुबलियों, गुंडा, बदमाशों और ठेका-परमिट के अवैध धंधेबाजों के खिलाफ योगी के ‘यलगार’ (युद्ध के एलान) से आम जनता खुश है, मन्त्रमुग्ध है। अपराधियों का सफाया या जेल, मुख्तार अंसारी व अतीक अहमद सहित अन्य कुख्यात बाहुबलियों की हनक पर चलते योगी-बुलडोजर से अपराधियों व सियासत के बीच की ‘गलबहियां’ औंधे मुंह हांफ़ रही है। योगी की यह जीवट-प्रतिबद्धता प्रदेश व देश के लोगों को शासन के तरीके के प्रति चुम्बक की भांति आकर्षित कर रही है। सुख दे रही है।
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निश्चय ही यह पहला शासन है जिसमें ‘ट्रांसफर-पोस्टिंग’ का उद्योग मृत्यु प्रायः हो चुका है। स्थानांतरण या तैनाती कराने को अपने-अपने जनपदों से ‘मुर्गों’ के साथ मंहगी गाड़ियों पर सवार होकर आने वाले टनाटन कुर्ता पायजामाधारी पुरुषार्थयों की आमद राजधानी में लगभग नगण्य है। सत्ता के गलियारों और दारुलशफ़ा से उनका रेला गायब है। पिछले चार साल से ‘ट्रांसफर-पोस्टिंग’ उद्योग लगभग ‘लॉकडाउन’ के तहत है। धंधेबाज ‘आइसोलेट’ हैं।
सता का विरोध करना किसी भी विपक्ष का अपना धर्म है। वह अपने धर्म का पालन कर रहा है और करना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे, विपक्ष योगी का नहीं भाजपा शासन का विरोधी है। उसे योगी से नहीं भाजपा शासन से दिक्कत है। वह योगी को नहीं भाजपा शासन को पलटना चाहता है।
किन्तु विडम्बना देखिए भाजपाई नेता, मंत्री और पदाधिकारियों को भाजपा शासन से नहीं मुख्यमंत्री योगी से दिक्कत है। ‘अथाह दिक्कत’। रही जनता की बात तो वह कहीं कम तो, कहीं पर्याप्त प्राप्ति से आबाद है। लेकिन आकंठ मलाई न डकार पाने से भाजपाई नेता बेचैन हैं, उम्मीद बर्बाद है। तिल-तिल कुंठित हैं। योगी की कार्यशैली उनकी कुंठा का कारण है।
ट्रांसफर-पोस्टिंग धंधे के लगभग बन्द होने का जिक्र ऊपर हो चुका है। यह धंधा बन्द हुआ तो क्या हुआ? सत्ता की मलाई काटने के जुगाड़ और भी हैं। अपने चहेतों, भाई-भतीजों, चिंटू-पिंटुओं को लाखों-करोड़ों का ठेका दिलवाने, नदियों के पाटों का अवैध खनन करवाने, करोड़ों-अरबों की सरकारी जमीनों को अपनी सरहज या समधी के नाम कराने, अपने गुर्गों को बड़ी-बड़ी एजंसियां दिलवाने, अपने चहेते डीएम, एसपी, सीएमओ को अपने जिलों में तैनात कराने जैसे कामों में भरपूर मलाई है। लेकिन भोग के इन सभी उपायों को तो योगी ने कंटेनमेंट जोन’ में डाल दिया है। योगी के इस जोग (जादू-टोने) से जनता प्रसन्न है और हो सकती है। लेकिन मंत्री, पार्टी पदाधिकारी और उनकी चरण मण्डली कैसे? उनमें तो अंदर तक मातम है।
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पूण:श्च, कोरोना की उफनती दूसरी लहर में मुख्यमंत्री स्वयं संक्रमित होकर क्वारंटइन हो गए। चारों ओर मौत और मौत से बचने का कोहराम था। सत्ता के ही मंत्री और विधायक व्यवस्था के पंगु हो जाने का एलान करने लगे। कोई 7-8 दिन क्वारंटइन रहने के बाद योगी ने पुनः मोर्चा संभाला। शहर-शहर, नगर-नगर तूफानी दौरा शुरू किया। प्रकृति भी साथ हो गई। कोरोना और दहशत का मीटर धीरे-धीरे लुढ़कने लगा और कमजोर होकर लुढ़कने लगी योगी को हटाने की विह्वलता। यही सब कुछ, वह तिलिस्म (रहस्य) है जो फिजाओं में योगी को मुख्यमंत्री पद से हटाने या उनकी शक्ति को कम कर उन्हें कागजी मुख्यमंत्री बना देने की चर्चा रूप में तरंगित है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)