Sanjay Tiwari
संजय तिवारी

दो वर्ष कोरोना जैसी जैविक महामारी वाले युद्ध से दुनिया ने खूब लड़ा है। अब रूस यूक्रेन युद्ध। जापान में शीर्ष राजनेता की हत्या। ब्रिटेन में प्रधानमंत्री का इस्तीफा। अमेरिका और यूरोप की आर्थिक तबाही। चीन की साजिशें और नीतियां। श्रीलंका में राजनीतिक आग। केवल एक या दो देश नहीं बल्कि दुनिया में अवश्यम्भावी अस्थिरता और आर्थिक संकट। भारत को अस्थिर करने की वैश्विक और भीतरी कोशिशें भरपूर की जा रही हैं। समाज से लेकर शीर्ष न्यायालय तक की अजीबोगरीब टिप्पणियां और हरकतें सभी के सामने हैं। विश्व का परिदृश्य कितना भयावह है, इस पर कोई बात नहीं हो रही। आने वाले दिन कितने खतरनाक हैं, इस पर कोई चिंता नहीं दिख रही। यह संयोग है और शुभ है कि भारत सामाजिक रूप से एक बहुस्तर वाला देश है, यहां का नेतृत्व सजग है और चिंतन सनातन। इसी ने भारत को बचाया है और अब विश्व समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया है। जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के बाहरी धरती से एलान करते हैं कि विश्व की उम्मीदें भारत से ही हैं तो उनके इस एलान को विश्लेषित करने की आवश्यकता है।

आज श्रीलंका में जो भी दिख रहा वैसा भारत के कुछ और पड़ोसी देशों में निकट भविष्य में कभी भी दिख सकता है। इस पर आश्चर्य करने की आवश्यकता नहीं। यह अलग बात है कि भारत या विश्व के स्थापित मीडिया या विशेषज्ञ पंडितों को अभी यह नहीं आभास हो रहा है कि विश्व किस प्रकार से एक भयानक त्रासदी की चपेट में है। यह त्रासदी सबसे ज्यादा उन राष्ट्रों को निगलने वाली है, जिन्होंने चीन पर आश्रित अपनी अर्थव्यवस्था कर दी है। इस त्रासदी के और भी अनेक आयाम हैं, जिनमें वंशवाद की राजनीति, सब्सिडी और लोकलुभावन योजनाएं और मुफ्तखोरी भी शामिल है। विश्व के छोटे राष्ट्र जितने संकट में हैं उनसे अधिक संकट अमेरिका और यूरोप में है। यह अलग बात है कि विकसित और बड़ी अर्थव्यवस्था के कारण वे सब झेल तो रहे हैं, लेकिन उनके यहां अशांति बढ़ रही है।

Sri Lanka

विश्व किस गंभीर संकट में है, इसको समझने के लिए एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। अभी हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) की 2022 की वार्षिक बैठक में दुनिया भर के दिग्गजों ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा को लेकर चर्चा की। विशेषज्ञों ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध से अनिश्चित सप्लाई चेन, उर्वरक की कीमतों में वृद्धि और अनाज के निर्यात अवरुद्ध होने से दुनिया भर में खाद्य असुरक्षा बढ़ गई है। इन लोगों ने वैश्विक खाद्य समस्या को जलवायु संकट के साथ-साथ हल करने का आह्वान किया है। बैठक में दिग्गजों ने कहा कि यूक्रेन में अस्थिरता पहले से ही अनिश्चित वैश्विक खाद्य सुरक्षा परिस्थिति को और गंभीर होने की चेतावनी दे रही है। उर्वरकों की बढ़ती कीमतों और यूक्रेन से निर्यात बाधित होने से स्थिति विकट हो गयी है। क्योंकि इस संकट से अब हर रात 80 करोड़ लोगों के भूखे रहने का अनुमान है। यूक्रेन के बंदरगाहों की रूसी नाकेबंदी ने दुनिया के विभिन्न देशों का ध्यान बढ़ती खाद्य असुरक्षा की ओर खींचा है।

संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बेस्ली ने कहा कि बंदरगाहों को खोलने में विफलता वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर युद्ध की घोषणा है। महामारी ने अकाल और खाद्य असुरक्षा को कम करने के वैश्विक प्रयासों को पहले ही जटिल कर दिया था। अब ये चुनौतियां यूक्रेन में संघर्ष के साथ और तेज हुई हैं। एक परिचर्चा में, विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि खाद्य असुरक्षा न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बल्कि भू-राजनीति और सुरक्षा के लिए भी एक समस्या है। सिंजेंटा ग्रुप के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) जे एरिक फाएरवाल्ड ने कहा कि कृषि को जलवायु परिवर्तन के समाधान और खाद्य सुरक्षा के समाधान का हिस्सा होना चाहिए।

इसे भी पढ़ें: मुलायम की पत्नी होने के बावजूद भी हाशिए पर रही साधना 

यह तो केवल एक उदाहरण भर है। समस्या केवल खाद्यान्न का ही नहीं बल्कि घनघोर विपन्नता का भी है। यह संकट बहुआयामी और चौतरफा है। किसी भी राष्ट्र की शक्ति को यह हर प्रकार से प्रभावित कर रहा है। दृश्य स्पष्ट है। विश्व वास्तव में संकट में है। एक अलग प्रकार का युद्ध छिड़ गया है। इस युद्ध मे केवल सेना नहीं है। लगभग सभी देशों में सभी नागरिक इसमें किसी न किसी रूप में शामिल हैं। स्वाभाविक है कि ऐसी घड़ी में राष्ट्र की राजनैतिक और सामाजिक इच्छा शक्ति ही इस संकट से उबार पाएगी। वास्तव में यह ऐसा समय है जिसका प्रभाव किसी एक देश पर नहीं बल्कि दुनिया पर हो रहा है। श्रीलंका तो एक बहुत मामूली उदाहरण है। आगे स्थितियां और भी भयावह हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Spread the news