अमृतसर: पंजाब में कांग्रेस के बीच जारी कलह थमता नजर नहीं आ रहा है। इस मामले में कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी हस्तक्षेप कर चुका है, बावजूद इसके मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जारी तनातनी कम नहीं हो पाया है। कांग्रेस दोनों नेताओं को संतुष्ट करने में लगी हुई है। लेकिन अगर इसी तरह बनी रही तो चुनाव में कांग्रेस को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वहीं पंजाब कांग्रेस के दस विधायकों ने पार्टी हाईकमान से मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को निराश न करने का अनुरोध किया है।
पार्टी विधायकों ने कहा है कि सीएम कैप्टन अभी भी जनता और राज्य के बीच सबसे बड़े और मजबूत नेता हैं। विधायकों ने आगाह करते हुए कहा कि पंजाब में अमरिंदर सिंह के कारण ही 1984 में दरबार साहिब पर हमले और दिल्ली सहित देश में अन्य जगहों पर सिखों के नरसंहार के बावजूद कांग्रेस पंजाब की सत्ता में आ सकी। पार्टी नेताओं ने आधिकारिक बयान में कहा कि मुख्यमंत्री कप्तान अमरिंदर सिंह को निराश मत करो, क्योंकि अथक प्रयासों का नतीजा है कि पार्टी पंजाब में अच्छी तरह से खड़ी है। विधायकों ने कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य पीपीसीसी प्रमुख की नियुक्ति पार्टी आलाकमान का विशेषाधिकार था, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू की बयानबाजी से यहां पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है।
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पार्टी विधायकों ने कहा कि अमरिंदर सिंह ने राज्य में समाज के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से उन किसानों के बीच अच्छी पैठ है, जिनके लिए उन्होंने 2004 के जल समझौते की समाप्ति अधिनियम को पारित करते हुए अपनी कुर्सी को दांव पर लगा दिया था। पार्टी आला कमान से अनुरोध करने वाले इन 10 विधायक हरमिंदर सिंह गिल, फतेह बाजवा, बलविंदर सिंह लड्डी, गुरप्रीत सिंह जीपी, कुलदीप सिंह वैद, संतोख सिंह भलाईपुर, जोगिंदरपाल, जगदेव सिंह कमलू, पीरमल सिंह खालसा और सुखपाल सिंह खैरा का नाम शामिल हैं।
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