Bhakti Andolan: सन्त तुकाराम (Saint Tukaram) को भारत में भक्ति आन्दोलन (Bhakti Andolan) के महान सन्तों में पूज्य स्थान प्राप्त है। भारत की सनातन संस्कृति को समाप्त करने का उद्देश्य लेकर संसार के विभिन्न क्षेत्रों से लुटेरे भारत आ रहे थे। इनमें अधिकांश अनपढ़, गंवार यहाँ तक कि गुलाम अनाचारी भी थे। जिनसे किसी भी प्रकार की नैतिकता की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी। भारत में आठवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जब ऐसे आक्रान्ता आने शुरू हुए तब भारत का क्षेत्रफल लगभग 92 लाख वर्ग किलोमीटर तक था। जोकि एक शताब्दी पूर्व तक 01 करोड़ 92 लाख वर्ग किलोमीटर था। दुर्दैव से आज 32 लाख 87263 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
यह कहना सही नहीं है कि आक्रान्ताओं, लुटेरों का सामना करने में भारत के वीरों ने किंचित असमर्थता दिखायी थी। कश्मीर का सम्राट ललिता दित्य, पंजाब के राजा रणजीत सिंह, राणा कुम्भा, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी ही नहीं भारत के प्रत्येक राज्य में वीरों के शौर्य की गाथाएं भरी पड़ी हैं। जिनको भारत के छद्म इतिहासकारों ने न्यून करके आंका। भारतीय गौरवशाली इतिहास को कलंकित करने वालों को पहचान कर केवल निन्दा करने से बात नहीं बनेगी। अपितु सच्चा इतिहास लिखने का स्वधर्म पालन करना होगा। संकट की घड़ी में भारत के स्वत्व को बचाने के लिए महान सन्तों और सूर्यवीरों ने जिस साहस और निष्ठा का परिचय दिया वह अवर्णनीय है।
भारतीयता का अर्थ यह नहीं की इस पावन धरा पर रहने वाले प्रत्येक नागरिक को केवल इस आधार पर समान अधिकार दिये जाय कि लम्बे समय से भोग विलास पूर्ण जीवन जीने के अभ्यस्त हो चुके हैं। नागरिकता के सन्दर्भ में यह सम्बद्धता आवश्यक है कि उनकी निष्ठा इस पावन भूमि के साथ ही यहॉ के पुरखों पर है अथवा नहीं। जो इसे लूट के माल की तरह उपभोग में ला रहे हैं, उन्हें सच्चा भारतीय कहलाने का अधिकार सन्देहपूर्ण नहीं तो और क्या है? भारतीयता का अर्थ यही होना चाहिए कि यहॉ रहने वाला प्रत्येक नागरिक इस धरती को अपनी मातृभूमि के रूप में हृदयंगम करे। ऐसा न करना इस धरा के प्रति अन्याय है।
महाराष्ट्र के सन्त तुकाराम सनातन संस्कृति की पुरोधाओं में से एक थे। भगवान विट्ठल विष्णु के अनन्य उपासक थे। उनके अभंग गीतों, भजनों के साथ प्रेरक कहानियों की भरमार, भारत की विभिन्न भाषाओं के साथ ही पश्चिम तक दिखायी देती है। ऐसी मान्यता है कि सन्त तुकाराम अपने आराध्य से अपने हृदय की बातें कर लेते थे। उनसे हुई वार्ता को गीतों में गाते थे। कभी निजहित की बात करने के स्थान पर दुखी लोगों को पार लगाने के लिए अश्रुपूरित नयनों से भगवान के समक्ष गुहार लगाते।
छत्रपति शिवाजी महाराज प्रायः सन्त तुकाराम से मिलने पण्ढरपुर आया करते थे। शिवाजी महाराज के समक्ष सबसे बड़ा संकट तब आया जब राजस्थान का हिन्दू राजा जय सिंह औरंगजेब की चाकरी करते हुए उसे वचन दे बैठा कि वह शिवाजी महाराज को उनके समक्ष लाकर खड़ा कर देगा। परिस्थितियां बहुत ही विरीत हो गयी थीं। शिवाजी ने मान सिंह को पत्र लिखकर कहा कि एक विदेशी क्रूर शासक के लिए तुम हिन्दू सेना लेकर महाराष्ट्र में हिन्दुओं का रक्त बहाने आये हो। तनिक विचार करो। इतिहास तुम्हारा आकलन एक वीर के रूप में करेगा या एक छुद्र कायार के रूप में देखेगा। मान सिंह के हृदय पर औरंगजेब के कोड़े की चमक झलक रही होगी। तभी उसने छत्रपति शिवाजी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। अन्ततः 05 मार्च, 1666 को शिवाजी को अपने पुत्र के साथ औरंगजेब के समक्ष उपस्थित होने की तिथि तय हो गयी।
शिवाजी महाराज के लिए यह क्षण बहुत भारी थे। उन्होंने पण्ढरपुर जाकर भगवान विट्ठल के दर्शन करने के साथ ही सन्त तुकाराम से मिलना तय किया। शिवाजी वहाँ पहुंचे तो तुकाराम ने कहा, मैं प्रतीक्षारत था। शिवाजी महाराज और तुकाराम के बीच वार्ता चल रही थी कि उन्हें तुकाराम जी ने बहुत प्रेरक भजन सुनाया। उनसे कहा कि भगवान विट्ठल ने कभी भक्तों के आंसुओं को निरर्थक नहीं जाने दिया। भगवान विट्ठल की ओर से मैं तुम्हें आश्वस्त करता हूं कि हर परिस्थिति में तुम विजयी होकर लौटोगे। तुकाराम जी ने शिवाजी को आरती होने तक रोक लिया। प्रसंग के अनुसार कहानी है कि जिस समय सन्त तुकाराम के चरणों में शिवाजी नमन कर रहे थे, उसी समय भगवान विट्ठल के समक्ष रखा शंख अचानक बज उठा।
सन्त तुकाराम ने भगवान के समक्ष दोनों हाथ उठाकर गुहार लगायी- हे विट्ठलल आप कितने महान हो। भक्त का वचन सुनकर व्याकुल हो उठे। उन्होंने शिवाजी पर अपने आशीर्वाद की बौछार करनी प्रारम्भ कर दी। तभी शिवाजी के पास आकर उनके अंगरक्षक ने कहा कि शत्रु के सैनिक मन्दिर के पीछे की ओर जमा हो रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वह आपको पकड़ना चाहते हैं। अचानक एक घोड़े पर शिवाजी का हमशक्ल योद्धा मन्दिर के निकट से दूर की ओर तेजी से जाता दिखायी दिया। सभी को लगा कि शिवाजी मन्दिर से दूर जा रहे हैं। जबकि शिवाजी मन्दिर के भीतर उपस्थित थे। वहां उपस्थित भक्तों ने यह भी देखा कि मन्दिर के पीछे छिपे हुए शत्रु सैनिक उस घुड़सवार का पीछा करने के लिये झपट रहे हैं।
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इस घटना पर स्वयं शिवाजी भी हतप्रभ रह गये। परमभक्त तुकाराम जी ने भगवान विट्ठल के समक्ष सष्टांग दण्डवत करते हुए कहा, रे मेरे प्यारे विट्ठल आज तू शिवा बन गया। धन्य है तेरी दायलु छवि। उन्होंने छत्रपति शिवाजी का आलिंगन करके विजयी तिलक किया और प्रसाद देकर विदा किया। तुकाराम और शिवाजी की इस भेंट को एक चमत्कार की तरह महाराष्ट्र के भक्तगण गीतों में गाते हैं।
सभी जानते हैं कि आगरा में औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी के साथ अच्छा वर्ताव नहीं किया था। उनकी हत्या करने के उद्देश्य से कैद कर दिया। जय सिंह को भी अपमान का स्वाद चखने को मिला। उनके बेटे राम सिंह को खड़ाकर दुत्कार मिली। इतिहास के पन्नों के इन रक्तिम अक्षरों को मिटाकर औरंगजेब का छद्म चरित्र लिखने का प्रयत्न भारत विरोधी वाम मार्गी इतिहासकारों ने किया है। सन्त तुकाराम जैसे महान भक्तों का वरदान छत्रपति शिवाजी के गले का हार बन गया। वह सुरक्षित निकलकर अपनी मां साहब जीजाबाई के समक्ष उपस्थित हो गये थे। ऐसे वीर को भारत सदा नमन करता रहेगा। इतिहास का यह महानायक अमर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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