बहुत उदास मन नहीं लिख पाता सुंदर कविताएँ
ना ही गुनगुना पाता है कोई मधुर गीत
जो दे सके सुकून अंतरात्मा को
बहुत उदास मन
चाहता है मुक्ति स्वयं की व्यथा से
जैसे पतझड़ की सूखी पत्तियाँ चाहती हैं
पेड़ से अलग हो जाना
बहुत उदास मन
नहीं तलाशता पेड़ की ठंडी छाँव
और ना ही बहाता है आँसू
सब कुछ हार जाने पर
बहुत उदास मन
भूल जाता है अंतर करना
सुख और दुख में
और ओढ़ लेता है दोनों को एक साथ
किसी रफ़ू की गई पोशाक की तरह
बहुत उदास मन
चाहता है बन जाना
अंधेरे में जलता हुआ मंदिर का दिया
बहुत उदास मन
चाहता है हंस बन जाना
और वैराग्य की ओर उड़ जाना
या किसी मेघ की तरह
आसमान से गायब हो जाना
बहुत उदास मन चाहता है
सब कुछ त्याग देना
बुद्ध बन जाना
– वरुण दुबे
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