कथा-1: परशुराम जी अपने फरसे से तोड़ा गणेश जी का एक दांत
एक बार विष्णु के अवतार भगवान परशुराम जी शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पर आये। शिव पुत्र गणेश जी ने उन्हें रोक दिया और मिलने की अनुमति नहीं दी। इस बात पर परशुराम जी क्रोधित हो उठे और उन्होंने श्री गणेश को युद्ध के लिए चुनौती दे दी। श्री गणेश भी पीछे हटने वालों में से नहीं थे। दोनों के बीच घोर युद्ध हुआ। इसी युद्ध में परशुराम जी के फरसे से उनका एक दांत टूट गया।
कथा-2: कार्तिकेय ने ही तोड़ा उनका दांत
भविष्य पुराण में एक कथा आती है, जिसमें कार्तिकेय ने श्री गणेश का दन्त तोड़ा। हम सभी जानते है की गणेश जी अपने बाल अवस्था में अति नटखट थे। उनकी शरारतें बढ़ती गयी और एक बार उन्होंने अपने ज्येष्ठ भाई कार्तिकेय को परेशान करना शुरू कर दिया। इन सब हरकतों से परेशान होकर कार्तिकेय जी ने उनपर हमला कर दिया और भगवान श्री गणेश को अपना एक दांत गंवाना पड़ा। कुछ फोटो में गणेश जी के हाथ में यही दांत दिखाई देता है।
कथा-3: वेदव्यास जी की महाभारत लिखने के लिए खुद से तोड़ा अपना दांत
एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी को महाभारत लिखने के लिए बुद्धिमान किसी लेखक की जरूरत थी। उन्होंने इस कार्य के लिए भगवान श्री गणेश को चुना। श्री गणेश इस कार्य के लिए मान तो गये पर उन्होंने एक शर्त अपनी भी रखी कि वेदव्यास जी महाभारत लिखाते समय बोलना बंद नहीं करेंगे। तब श्री गणेश जी ने अपने एक दांत को तोड़कर उसकी कलम बना ली और वेद व्यास जी के वचनों पर महाभारत लिखी।
कथा-4: एक असुर का वध करने के लिए गणेश जी ने लिया अपने दांत का सहारा
गजमुखासुर नामक एक महाबलशाली असुर हुआ, जिसने अपनी घोर तपस्या से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसे कोई अस्त्र शास्त्र से मार नहीं सकता। यह वरदान पाकर उसने तीनों लोकों में अपना धाक जमा लिया। सब उससे भय खाने लगे। तब उसका वध करने के लिए सभी ने भगवान श्रीगणेश को मनाया। गजानंद ने गजमुखासुर को युद्ध के ललकारा और अपना एक दांत तोड़कर हाथ में पकड़ लिया। गजमुखासुर को अपनी मृत्यु नजर आने लगी। वह मूषक रूप धारण करके युद्ध से भागने लगा। गणेश जी ने उसे पकड़ लिया और अपना वाहन बना लिया।
श्री गणेश जी के ये नाम कैसे पड़े
एकदंत- महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की। वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया। शिक्षा होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया। सारे देवता उससे प्रताड़ित रहने लगे। मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की।
तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं थीं, एक दांत था, पेट बड़ा था और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया।
महोदर- जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।
लंबोदर- समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर काम मोहित हो गए। उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई। इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया। क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए। वो युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।
विकट- भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया।
विघ्नराज- एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया। शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया।
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धूम्रवर्ण- एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए। उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था, जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।
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