जबलपुर: एक सच्चा साहित्यकार कभी अपने सामाजिक और राष्ट्रीय सरोकारों से निरपेक्ष नहीं रह सकता। ऐसे लेखकों की रचनाएं न सिर्फ समकालीन समाज के लिए दर्पण का काम करती हैं, बल्कि आने वाले समय को बेहतर बनाने का मार्ग भी सुझाती हैं। साहित्य का लक्ष्य ही लोकमंगल है। यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने सेंट अलॉयशियस महाविद्यालय, जबलपुर के हिंदी विभाग द्वारा ‘काव्य ऋषि प्रदीप एवं नीरज की रचनाओं में राष्ट्रवाद एवं सामाजिक सरोकार’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ के अवसर पर व्यक्त किए। कार्यक्रम में केंद्रीय हिंदी निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ. दीपक पाण्डेय, मानकुंवर बाई महिला महाविद्यालय की प्रोफेसर स्मृति शुक्ला, सेंट अलॉयशियस महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. फादर जी. वलन अरासू, डॉ. रामेन्द्र प्रसाद ओझा, डॉ. अभिलाषा शुक्ला, डॉ. स्मारिका लॉरेन्स एवं नेहा महावर उपस्थित रहे।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि कवि प्रदीप और नीरज दोनों ऐसे कवि हैं, जो सामाजिक सरोकारों से गहराई से जुड़े रहे। दोनों की कविताएं लोकमन को छूने वालीं और समाज को मार्ग दिखाने वाली हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों और युवाओं के भीतर राष्ट्रप्रेम, उत्साह और साहस के संचार के लिए लिखी गई दोनों कवियों की कविताएं आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार कवि प्रदीप और नीरज ने अपनी रचनाओं में जिन प्रतीकों का प्रयोग किया है, वे जीवन के बहुत ही करीब हैं। उन्होंने भाषा को कभी भी अपनी कविता की बाधा नहीं बनने दिया। बोलचाल की हिंदी से लेकर साहित्यिक हिंदी तक, संस्कृत शब्दों से लेकर उर्दू शब्दों तक, दोनों कवियों ने किसी शब्द से और किसी भाषा से परहेज नहीं किया। उनकी कविताएं, लोककविताएं हैं, लोगों की जुबान पर चढ़ जाने वाली कविताएं हैं। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि बात चाहे राष्ट्रवाद की हो या सामाजिक सरोकारों की, प्रदीप जी और नीरज जी, दोनों ही काव्य जगत की ऐसी महान विभूतियां थीं, जिन्होंने पद्य साहित्य को अपने-अपने अंदाज में समृद्ध किया।
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इस अवसर पर केंद्रीय हिंदी निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ. दीपक पाण्डेय ने कहा कि कवि प्रदीप और नीरज ने कविताओं को जन-जन तक पहुंचाया है। उनका काव्य हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय है। मानकुंवर बाई महिला महाविद्यालय की प्रोफेसर स्मृति शुक्ला ने कहा कि प्रदीप और नीरज ने पीड़ित मानवता की अनुभूति को पूरे दिल से अनुभव किया और जीवंतता के साथ साहित्य में प्रस्तुत किया।
सेंट अलॉयशियस महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. फादर जी. वलन अरासू ने कहा कि महान साहित्यका जीवन की विभिन्न कठिन परिस्थितियों से होकर गुजरते हैं और उनके अनुभव हमारा मार्गदर्शन करने और जीवन को आकार देने में सहायक होते हैं। कार्यक्रम के दौरान संगोष्ठी पर आधारित पुस्तक का भी विमोचन किया गया। इस दौरान ‘कोविड-19 चुनौतियां एवं प्रबंधन’ पुस्तक भी विमोचित हुई।
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