लक्ष्मणपुरी पुनीत मनभावन,
सुखद सुलक्ष्ण परम सुहावन।
है कर्म साधना की शुभ घड़ी,
पुनि द्वार तुम्हारे आकर खड़ी।।
उठि लक्ष्य का भेदन करिए,
रीते घट मिलिके सब भरिये।
भारतीय गौरव का शुभ क्षण,
उठो साधना का लेकर प्रण।।
– बृजेंद्र
इसे भी पढ़ें: दुख का मीत अंधेरा