प्रयागराज। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभुत्व के सामने लोगों का वजूद घटता जा रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी पर छींटकसी करना बेहद आसान हो गया है। हालांकि किसी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करना कानून के दायरे में आता है, लेकिन टिप्पणी करने वाला भी अगर पहुंच वाला हो तो कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है। ऐसा ही मामला यूपी से सामने आया है, जहां इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है, जिसने हाथरस के सामूहिक दुष्कर्म मामले के विरोध में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को मोटी चमड़ी का आदमी कह कर टिप्पणी की थी।

न्यायाधीश अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायाधीश शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने कासगंज जनपद के नीरज किशोर मिश्रा की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 4 हफ्तों में अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही 6 सप्ताह के बाद इस मामले को सूचीबद्ध करने का भी आदेश दिया है। मुख्यमंत्री पर टिप्पणी करने वाले के खिलाफ दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि उसने पुलिस पर निष्क्रियता का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान मुख्यमंत्री पर यह टिप्पणी की थी। एफआईआर में कहा गया है कि याचिकाकर्ता एक हिस्ट्री-शीटर है और कुछ दिन पहले ही उसका आर्म लाइसेंस रद्द कर दिया गया था।

कासगंज जनपद के पतियाली पुलिस स्टेशन में 11 दिसंबर, 2020 को याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के धारा 153-बी, 505 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एक लोकतांत्रिक देश में, सत्ता पक्ष के खिलाफ आंदोलन करना विपक्ष के नेताओं का संवैधानिक अधिकार है। एक दलित लड़की के दुष्कर्म के मुद्दे पर याचिकाकर्ता की तरफ से आंदोलन करना गलत नहीं है। ऐसे में इस मामले पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। इस पर अदालत ने याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि इससे जांच पर किसी तरह की रोक नहीं।

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