राघवेंद्र प्रसाद मिश्र
लखनऊ: राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। इसे सपा के कुनबे को देखकर समझा जा सकता है। समाजवादी पार्टी को परिवारवाद की पार्टी के तौर पर जहां देश की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में देखा जा रहा है, वहीं अंदरखाने में जबरदस्त बिखराव भी नजर आ रहा है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव आरोप-प्रत्यारोप को दरकिनार कर अपने कुनबे को लगातार राजनीति में बढ़ाते गए, लेकिन पार्टी में जब से अखिलेश यादव हावी हुए हैं, सपा परिवार बिखरता ही जा रहा है। वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल सिंह यादव और उनके समर्थकों को पार्टी से बाहर कर दिया गया। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने जबरन पिता मुलायम सिंह यादव से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद भी छीन लिया। नतीजा चुनाव में कांग्रेस से हाथ मिलाने के बावजूद भी सपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। 5 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद यूपी विधानसभा चुनाव (UP elections 2022) से पहले अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने शिवपाल सिंह यादव से मुलाकात कर उन्हें साथ चुनाव लड़ने के लिए राजी तो कर लिया, लेकिन इसी के साथ ही उनके वजूद को भी खत्म कर दिया।
भतीजे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के मोहपाश में फंस कर शिवपाल सिंह यादव एक बार फिर सपा कुनबे का हिस्सा तो बन गए, लेकिन उनकी अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का वजूद खत्म हो गया। उनकी पार्टी के कई दिग्गज नेता जो वर्षों से न सिर्फ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, बल्कि पार्टी को खड़ा करने के लिए धन और बल से लगे थे, वे अब दूसरे दलों में जगह तलाशते फिर रहे हैं। क्योंकि सपा ने पार्टी के सिंबल पर शिवपाल को केवल उन्हीं की सीट जसवंत नगर को चुनाव लड़ने के लिए दिया है। ऐसे में समझा जा सकता है कि भतीजे अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव के साथ टिकट देने में भी खेल कर दिया। यानी कुल मिलाकर शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव में कहीं की नहीं रही।
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यह बात शिवपाल सिंह यादव को अब समझ में आई, जब हाथ से सबकुछ निकल गया। उन्होंने अपना दर्द साझा करते हुए कहा है कि मुलायम सिंह यादव के कहने पर उन्होंने सपा से गठबंधन किया था। उनका कहना है कि उन्होंने 100 सीटें देने का भरोसा भी दिया था। लेकिन अखिलेश ने इसे ज्यादा बताते हुए इसे खारिज कर दिया। शिवपाल सिंह यादव को 60 से 65 सीटें मिलने की उम्मीद थी। लेकिन सपा की तरफ से जारी लिस्ट में शिवपाल सिंह यादव की तरफ से दिए गए एक भी नाम को टिकट नहीं दिया गया, बल्कि उनको सपा के सिंबल पर जसवंत नगर सीट दी गई। शिवपाल यादव की मानें तो उनकी तरफ से दी गई लिस्ट के अनुसार अगर टिकट दिया गया होता तो पार्टी की एक तरफ जीत होती। उन्होंने जीतने वाले नेताओं की लिस्ट सपा को सौंपी थी। फिलहाल शिवपाल अब मजबूरी के नेता बनकर रह गए हैं।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की इस चालबाजी को अपर्णा यादव बाखूबी समझती हैं। शायद यही वजह रही है कि उन्होंने चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम लिया है। बता दें कि काफी तेज तर्रार होने के बावजूद भी अपर्णा यादव को लंबे समय से सपा में कोई तरजीह नहीं दी जा रही थी। जबकि अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव जो खुद से एक बयान तक नहीं दे पाती उन्हें कनौज से सांसद भी बना दिया गया। ऐसे में अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने वाले कदम को गलत बताने वालों को अपनी सोच बदलनी चाहिए।
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