प्रकाश सिंह
लखनऊ: चुनाव के समय महिला सशक्तीकरण, महिला सुरक्षा की बातें खूब होती हैं। महिलाओं को लेकर हमारा समाज काफी चिंतित भी नजर आता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों के लिए हमारा समाज ही जिम्मेदार भी है। महिलाओं को शोषण करने वाले इसी समाज के लोग है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की खूब बातें होती है, पर हकीकत में महिलाओं का साथ कोई नहीं देता। इसका जीता जागता प्रमाण के रूप में यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे हैं। कांग्रेस पार्टी नई सियासी चाल चलते हुए राजनीति में महिलाओं को 40 प्रतिशत आरक्षण देने की वकालत करते हुए प्रत्याशी उतारे थे। कांग्रेस ने 148 महिलाओं को टिकट दिया था, जिसमें एक महिला प्रत्याशी और कांग्रेस विधानमंडल की नेता अराधना मिश्रा मोना (Aradhana Mishra Mona) अपनी बदौलत चुनाव जीतने में सफल रहीं, बाकी 147 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई।
महिलाओं के सहार यूपी चुनाव की वैतरणी पार करने की फिराक में जुटी कांग्रेस ने नारा दिया था कि ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ (Ladki Hoon Lad Sakti Hoon)। लेकिन चुनाव नतीजों ने यह बता दिया है कि यहां महिलाओं की सशक्तीकरण करने की केवल बात की जा सकती है। उन्हें जन प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी नहीं। चुनावी नतीजे ने कांग्रेस के महिला सशक्तीकरण के भरोसे चुनाव जीतने और लड़की हूं, लड़ सकती हूं के नारे की हवा निकाल दिया है।
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कांग्रेस ने प्रदेश की पीड़ित महिलाओं को हथियार बनाकर योगी सरकार को सत्ता से बाहर करने का प्लान बनाया था, लेकिन जनता ने इस प्लान को न सिर्फ पूरी तरह फेल कर दिया, बल्कि कांग्रेस महासचिव को नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने के लिए मंथन-चिंतन करने के लिए मजबूर कर दिया है। कांग्रेस ने उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता की मां आशा देवी को उन्नाव की सदर सीट से प्रत्याशी बनाया था। उनके प्रचार के लिए राजस्थान और मध्य प्रदेश की अपनी टीम भी लगा दी थी।
बावजूद इसके आशा देवी को महज 1555 वोट मिले। ‘मिस यूपी 2014’ और ‘मिस कॉस्मो वर्ल्ड 2018’ रहीं कांग्रेस प्रत्याशी अर्चना गौतम को भी जनता ने नकार दिया है। कांग्रेस ने उन्हें हस्तिनापुर सीट से प्रत्याशी बनाया था। वह कांग्रेस की तरफ से दलित चेहरे का भी प्रतिनिधित्व कर रही थीं। लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तो उन्हें भी महज 1519 वोट ही मिले। इसी तरह खुशी दुबे की बड़ी बहन नेहा तिवारी को भी केवल 2302 वोट हासिल हुए हैं।
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