इनकी हर बात लोकहित को समर्पित होती है। लोक के लिए जीना। लोक के लिए मरना। संविधान की शपथ लेना और सत्ता सुख के लिए विचार से भी समझौता। गजब की ढीठता और अद्भुत आत्मविश्वास, जैसे ये नहीं होंगे तो उन जातियों का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। इनसे पहले जैसे वे जातियां थी ही नहीं और इनके न रहने पर रहेंगी भी नहीं। हाँ, एक बात है कि यदि इनके बेटे, बेटियों और रिश्तेदारों को पार्टियां टिकट और पद देती रहें तो फिर सब ठीक है। जैसे स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे को जब भाजपा ने ऊंचाहार से पिछली बार टिकट दे दिया तो भाजपा ठीक थी। यह अलग बात है कि इनके सुपुत्र जीत ही नहीं पाए। बेटी अभी भी कमल निशान लेकर ही लोकसभा में है। बात केवल स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी भाषा की ही नहीं है। आज जिन चेहरों ने सपा की साइकिल पकड़ी है उन सभी को देखिए। सब साफ-साफ दिख जाएगा। कहाँ तो हल्ला किया गया कि ब्राह्मण भाजपा से नाराज हैं और भगदड़ के इस झुंड में एक भी ब्राह्मण नहीं। ये पूरा झुंड तो एक खास किस्म के उन प्राणियों का दिख रहा, जिनको जनता की सेवा का अद्भुत नशा है। बिना सेवा किये, ये रह ही नहीं सकते।
जहां तक ब्राह्मण का प्रश्न है तो जो राजनीति और समाज को ठीक से पढ़ते हैं, वे भली प्रकार से जानते हैं कि ब्राह्मण के लिए राजनीति हमेशा मुद्दा और विचारधारा आधारित होती है, जिसमें कोई जातीय भावना कभी होती ही नहीं। यदि कोई ऐसा अवसरवादी चेहरा कभी उभरता भी है तो उसे कोई बड़ा जातिगत आधार नहीं मिल पाता। इस विषय को श्रृंखला की आगे की कड़ियों में देखा जायेगा और चर्चा होगी। अभी तो उनको देखा जाय जो अपनी अपनी जातियों के मसीहा बन कर धरती पर आए हैं। ये अवसरवादी जनता सेवक शायद यह भूल गए हैं कि जिस गरीबी, उपेक्षा, उत्पीड़न, बिजली, पानी, शिक्षा आदि के विषय छेड़कर जातियों को एकत्र करते थे, पिछले दो वर्षों में नरेंद्र मोदी ने ऐसा कर दिया है कि वे सभी विषय इन जातियों के लोगो के लिए खत्म से हो गए हैं। ये जातियां भी खूब ठीक से जान चुकी हैं कि यह भगदड़ जाति के कल्याण के लिए कदापि नहीं है। यह सब खुद को और अपने बेटे बेटियों की स्थापना की कवायद है।
दरअसल दलबदल की राजनीति से खुद को चमकाने वाले ये चेहरे इस बार कुछ ज्यादा ही मुगालते में हैं। उन्हें अभी आभास भी नहीं हो रहा कि वह जहां से निकल रहे हैं, वहां इनकी उपयोगिता एक सीढ़ी की थी, जिसकी जरूरत उस समय भाजपा को थी जब इन्हें लाया गया था। चाणक्य नीति बहुत स्पष्ट कहती है कि सीढ़ी केवल तब तक आवश्यक है जब तक संबंधित शिखर नहीं मिल जाता। शिखर प्राप्ति के बाद होशियार साधक सीढ़ी की सुरक्षा में अपनी ऊर्जा नहीं लगाता, बल्कि सीढ़ी को तोड़ देता है, ताकि उसका कोई प्रतिद्वंदी उसके पीछे न पहुंच जाय। इन दलबदलू मसीहाओं को यह पता भी नहीं कि नरेंद्र मोदी खुद इनसे बहुत बड़े वास्तविक मसीहा बन कर इनकी जातियों को कब के भाजपा से जोड़ चुके हैं।
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जरा ठीक से गौर कीजिए। स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ पूर्व मंत्री डा. धर्म सिंह सैनी, विधायक भगवती प्रसाद सागर, विनय शाक्य, रोशनलाल वर्मा, डा. मुकेश वर्मा, ब्रजेश प्रजापति व चौधरी अमर सिंह, पूर्व मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल, पूर्व मंत्री रामहेत भारती, पूर्व विधायक नीरज मौर्य, बलराम सैनी, राजेंद्र प्रसाद पटेल, विद्रोही धनपत राम मौर्य, बंशी पहाडिय़ा, अमर नाथ सिंह मौर्य, रामावतार सैनी, अली यूसुफ अली, आरके मौर्य, दामोदर मौर्य तथा बसपा प्रमुख मायावती के मुख्य सुरक्षा अधिकारी रहे पदम सिंह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। भाजपा की सहयोगी अपना दल-एस के सिद्धार्थनगर के शोहरतगढ़ के विधायक चौधरी अमर सिंह भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। साथ में ललकारा भी खूब।
अब बात करते हैं दारा सिंह चौहान की। वह 16 की साइत से सपा अपनाएंगे। याद कीजिये कि 2 फरवरी, 2015 को, वह नई दिल्ली में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। भाजपा में शामिल होने के तुरंत बाद, उन्हें भाजपा ओबीसी मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया और मधुबन निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया, जहां कई लोग भाजपा टिकट पाने के लिए रैली कर रहे थे। उन्होंने मधुबन निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने में सक्षम हुए। उन्होंने भारत सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
चौहान का जन्म 25 जुलाई, 1963 को आजमगढ़ जिले के गलवारा गाँव में उनके पिता राम किशन चौहान के यहां हुआ था। उन्होंने दिशा चौहान से शादी की, उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। 1980 में, उन्होंने माध्यमिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद में भाग लिया और हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की। वह लूनिया जाति से आते हैं, जो ओबीसी कैटेगरी से है। चौहान ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी से की थी। वे 1996 में पहली बार और 2000 में दूसरी बार राज्यसभा सदस्य बने। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में घोसी लोकसभा से 2009 का भारतीय आम चुनाव जीता।
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2015 में, वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए, और 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मधुबन विधानसभा से लड़े । चुनाव के बाद वे उत्तर प्रदेश सरकार में वन, पर्यावरण और प्राणी उद्यान मंत्री बने। 12 जनवरी 2022 को, उन्होंने यह कहते हुए भाजपा और उसके मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया कि योगी आदित्यनाथ सरकार राज्य में पिछड़ी जातियों, दलितों और अन्य हाशिए के समूहों के साथ अन्याय कर रही है। पूरे पांच वर्ष सत्तासुख हासिल कर चुनाव की घोषणा के बाद अब वह समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)