अरविंद केजरीवाल (Twitter Arvind Kejriwal) गिरोह उसी तरह से उछल-कूद कर रहा है, जिस तरह से उछल-कूद कभी संजय राउत करते थे, कभी नवाब मलिक करते थे। (Twitter Arvind Kejriwal) संजय राउत बात-बात पर केन्द्रीय सरकार को धमकी देते थे और ललकारते थे कि ईडी, सीबीआई और अन्य केन्द्रीय एजेंसियों की शक्ति है तो मुझे हाथ लगा कर देख ले, गिरफ्तार कर देख लें। महाराष्ट में आग लग जायेगी। केन्द्रीय सरकार की चूलें हिल जायेगी, जनता बगावत पर उतर आयेगी। कहावत है कि जिसके घर शीशे के होते हैं वह दूसरे के घरों में पत्थर नहीं फेकते हैं। (Twitter Arvind Kejriwal) जिनके हाथ पूरे तरह से भ्रष्टचार में रंगे हुए हैं, जिनके खिलाफ गबन के प्रमाणिक आरोप है, जिनके खिलाफ जांच एजेंसियां सबूत जुटा चुकी हैं अगर वैसे व्यक्ति न केवल उछल-कूट करेगा बल्कि चोरी और सीना जोरी की कहावत को चरितार्थ करेगा तो फिर उसका दुष्परिणाम निकलना स्वाभाविक है।
दुष्परिणाम यह निकला कि संजय राउट जेल में पहुंच गए और आगे उसकी पत्नी भी जेल की हवा खा सकती हैं। संजय राउत जेल गए पर उसके समर्थन में कहीं कोई प्रदर्शन नहीं हुआ, कहीं कोई बवाल नहीं कटा, कहीं कोई आग नहीं लगी, कहीं कोई दंगा नहीं फैला। ठीक इसी प्रकार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायक और उद्धव सरकार में मंत्री नवाब मलिक भी अराजक राजनीति और बयानबाजी की कसौटी पर हिंसक राजनीतिक व्यवहार कर रहे थे। उन्हें मंत्री होने की जवाबदेही का भी भान नहीं था। बात-बात पर उफान पैदा करते थे, धमकी में बात करते थे। चुनौती देते थे, जबकि राजनीति की काली कोठरी में उनका हाथ फंसा हुआ था।
माफिया डॉन दाउद इब्राहिम के साथ उसके संबंध थे। कबाड़ी वाला से सीधे अरबपति बन गये हैं। दाल में काला कुछ तो था। नवाब मलिक भी जेल चले गये। जांच एजेंसियां गंभीर और खतरनाक सबूत जुटा कर रख दीं, जिसके कारण इनकी जन हैसियत पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया।
ठीक इसी प्रकार आम आदमी पार्टी उछल-कूद कर रही है। मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हुए अरविन्द केजरीवाल उछल-कूछ कर रहे हैं। शराब घोटाले में फंसे मनीष सिसौदिया उछल-कूद कर रहे हैं। हद तो तब हो गयी जब संजय सिंह ने उप राज्यपाल की कानूनी नोटिस को फाड़ दिया। इतना ही नहीं बल्कि उप राज्यपाल को चोर, भ्रष्ट तक कह दिया। संजय सिंह ने यह बोल दिया कि उप राज्यपाल भ्रष्ट हैं, और चोर हैं। इसलिए हम उसकी नोटिस को फाड़ कर उसकी हैसियत दिखा रहे हैं।
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संजय सिंह की ऐसी करतूत सिर्फ उनकी अकेली करतूत नहीं है। इसके पीछे का दिमाग किसका होगा? इसके पीछे का दिमाग सीधे तौर अरविंद केजरीवाल का होगा। अरविंद केजरीवाल ने ही उप राज्यपाल को मीडिया के सामने बेइज्जत करने की नीति अपनायी होगी और इसके लिए संजय सिंह को मोहरा बनाया होगा। आम आदमी पार्टी सिर्फ अरविंद केजरीवाल की निजी कंपनी है जहां पर अन्य दूसरों की कोई हैसियत ही नहीं है।
इसका प्रमाण तो प्रशांत भूषण है, योगेन्द्र यादव हैं, आशुतोष हैं, कुमार हंं जो थोड़ा बहुत स्वतंत्र ख्याल रखते थे और अरविंद केजरीवाल को आतंरिक लोकतंत्र की याद कराते थे। कैसी दुर्गति हुई इन सब की? इन सभी लोगों को केजरीवाल ने लात मारकर आम आदमी पार्टी से बाहर कर दिया। इसलिए संजय सिंह की हिम्मत नहीं हो सकती है कि वह अपने बॉस केजरीवाल की अनुमति के बिना इतनी बड़ी करतूत को अंजाम दे सके।
नोटिस फाडू प्रकरण क्या है? दिल्ली के उप राज्यपाल सक्सेना ने अपनी मानहानि और झूठे आरोप लगाने के खिलाफ अरविन्द केजरीवाल गिरोह के लोगों को कानूनी नोटिस दिया था। उपराज्यपाल ने धमकी दी थी कि यदि नोटिस का जवाब नहीं दिया तो फिर कोर्ट में जायेंगे। कानूनी नोटिस का जवाब देना ही पड़ता है। कानूनी नोटिस का जवाब देने की न्यायिक बाध्यता है।
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अगर इस बाध्यता के बावजूद भी आपने जवाब नहीं दिया, तो फिर कोर्ट में इस पर प्रश्न किये जाते हैं और कोर्ट संज्ञान लेने के लिए स्वतंत्र हो जाता है। इसलिए नोटिस को फाड़ कर फेंकने की सार्वजनिक करतूत की भी न्यायिक परीक्षण हो सकती है। कानूनी नोटिस को फाड़ कर फेंकने की करतूत को भी कोर्ट संज्ञान ले सकता है।
राज्यपाल एक संवैधानिक पद है। इसलिए राज्यपाल पद की अपनी गरीमा है। संवैधानिक पद की गरीमा हर स्थिति में बनी रहनी चाहिए। सभी पक्षों की जिम्मेदारी होती है कि वह संवैधानिक पद की गरिमा को अक्षुण रखें। यह सही है कि पक्ष-विपक्ष की राजनीति में संवैधानिक पदों की गरीमा गिरी है, संवैधानिक पदों की विश्वसनीयता भी घटी है। पर दिल्ली के उप राज्यपाल के प्रकरण पर इसकी पूरी जिम्मेदारी अरविंद केजरीवाल की पार्टी की है। बदले की भावना से उपराज्यपाल पर भ्रष्टचार के आरोप लगाये हैं, भ्रष्टचार के आरोपों की कोई प्राथमिक सबूत भी आप आदमी पार्टी के पास नहीं है। फिर किस आधार पर उपराज्यपाल पर भ्रष्टचार के आरोप लगाये गये हैं?
उपराज्यपाल सक्सेना ने शराब नीति पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए केजरीवाल की सरकार के प्रति सिर्फ नाराजगी ही व्यक्त नहीं की थी बल्कि शराब नीति के खिलाफ सीबीआई जांच की भी सिफारिश की थी। जानना यह भी जरूरी है कि दिल्ली कोई राज्य नहीं है, दिल्ली को सिर्फ राज्य का दर्जा प्रदान है। इसलिए उपराज्यपाल के पास बहुत सारी शक्तियां निहित होती हैं और उप राज्यपाल को ही दिल्ली का असली शासक माना जाता है।
शराब नीति में जमकर घोटाला हुआ है। लाइसेंस फीस लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपये माफ कर दिये गये, बदनाम और अयोग्य कंपनियों तथा व्यक्तियों को भी शराब का लाइसेंसे दिया गया। पूरी दिल्ली को शराब में डूबोने की इनकी नीति थी। एक बोतल, पर एक, दो-तीन बोतल फ्री, एक पेटी पर एक, दो, तीन पेटी फ्री की योजना थी। इतनी सस्ती शराब देश भर में कहीं नहीं थी। उपराज्यपाल द्वारा सीबीआई जांच के आदेश दिये जाने के बाद केजरीवाल सरकार के होश उड़ गये, आनन-फानन में केजरीवाल सरकार ने अपनी शराब नीति वापस ली थी और फ्री शराब योजना स्थतिगत कर दी थी।
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जब आपकी नयी शराब नीति में कोई खोट नहीं थी तब आपने आनन-फानन में अपनी नयी शराब नीति वापस क्यों ली थी। सीबीआई जांच शुरू होने के साथ ही साथ शराब मंत्री मनीष सिसोदिया की गर्दन फंसते नजर आ रही है। सीबीआई पक्के सबूत जुटा चुकी है। अगर शराब मंत्री मनीष सिसौदिया की गर्दन फंसती है तो फिर अरविंद केजरीवाल की भी गर्दन फंसेगी।
आपने झूठे और मनगढंत आरोप लगा कर अराजकता की राजनीति की है। नितिन गडकरी, अरुण जेटली विक्र्रम मजेठिया जैसे अनेक लोगों से अपने झूठे आरोपों के लिए कोर्ट में आपने माफी मांगी है। इसलिए सभी को यह मालूम है कि आपके आरोपों की सच्चाई क्या है? आपने सीबीआई जांच में अपनी गर्दन बचाने के लिए फिर से झूठ और अराजकता की राजनीति शुरू की है। विधायकों की खरीद की राजनीति का झूठा आरोप लगाये हैं, उपराज्यपाल पर भ्रष्टचार का आरोप भी लगाये हैं।
उपराज्यपाल के खिलाफ अगर आपके पास कोई सबूत है तो फिर सीबीआई जांच की मांग करने वाली कोर्ट में याचिका लगायी जानी चाहिए थी। अब आपकी अराजकता और झूठे आरोप लगा कर राजनीति में सनसनी पैदा करने की राजनीति नहीं चलने वाली है। इसीलिए आपके विधायकों की खरीद वाले आरोपों पर जनता ने नोटिस तक नहीं लिया।
क्रिया के विपरीत प्रक्रिया होती है। आप संजय राउत और नवाब मलिक की भाषा बोलेंगे तो फिर आपका हाल भी संजय राउत और नवाब मलिक की तरह होगा। राजनीति की काली कोठरी में निरापद तो बिरले लोग होते हैं। राजनीति की काली कोठरी में केजरीवाल गिरोह के हाथ रंगे हुए हैं। अच्छा तो यह होता कि भ्रष्टचार और अराजकता की राजनीति की जगह आम आदमी पार्टी दिल्ली के विकास पर ज्यादा ध्यान देती।
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उपराज्यपाल की मानहानि पर अदालती प्रक्रिया शुरू होते ही केजरीवाल गिरोह की हेकड़ी टूट जायेगी। क्योंकि अदालती प्रक्रिया में बयानबाजी और बिना प्रमाण के आरोप मान्य नहीं होगें और आप यह भी नहीं कह सकते कि मेरे पास सबूत नहीं है। फिर केजरीवाल गिरोह को उपराज्यपाल से भी माफी मांगनी पड़ेगी या फिर अदालत की सजा को भुगतनी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)